जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द

December 1996

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अनुभव से गुजरी एक महिला ने अपने अनुभव को शब्द देते हुए कहा -” दर्द चरम सीमा तक पहुंचते ही अचानक रुक गया। छत के नीचे हवा में लटकी मैं नीचे सब कुछ देख व सुन रही थी। पेट को हिला रही नर्सों को मैंने यह कहते हुए सुना है भगवान । यह तो मर गई हैं

मृत्यु अनुभव की तीसरी अवसक्ति में लोग एक अंधेरे मार्ग से गुजरते हैं गुर्दा रोग की पीड़ित मृत्यु के अनुभव से गुजरी एक महिला के बताया ऐसा लग रहा था कि मैं नींद से जाग रही हूं । लेकिन मैं स्वप्न में नहीं थी। मैं एक सुरंग से नीचं जा रही थी। जो आगे से चौड़ी होती जा रही थी। गुर्दा रोग के ही कारण मृत्यु के अनुभव से गुजरे एक पुरुष ने बताया कि वह एक अंधेरी गुफा में तीव्र गति से यात्रा कर रहा था एवं पूर्णतया भार शून्य था। इस तरह के अनुभवों से गुजरे हुए कुछ लोग सुरंग में यात्रा की बात कहते हैं तो कुछ बाह्य आकाश में यात्रा का उल्लेख करते हैं। एक महिला के अनुसार जैसे ही मेरी चेतना विलुप्त हो गयी, मुझे याद है कि मैं काले आकाश से होकर तीव्र वेग से जा रही थी हृदय के आपातकालीन ऑपरेशन से गुजरे व्यक्ति के अनुसार वह आकाश में तीव्र गति से दौड़ रहा था।

सँकरी सुरंग में जाने या काले आकाश में यात्रा करने का सीमित अनुभव कुछ ही लोगों का रहा। अधिकतर लोगों ने स्वयं को न केवल विशाल आकाश में रूप ले लिया, जिसने गति के बढ़ने के साथ उन्हें एक दूसरे छोर की ओर बढ़ाया। यह एक नए आयाम के अनुभव का शुभारम्भ था, जिसे मृत्यु अनुभव की चतुर्थ अवस्था कहा गया है।

मृत्यु संकट से गुजरे एक व्यक्ति के अनुसार-” वह एक बहुत ही आकर्षक प्रकाश की ओर बढ़ रहा था । यह सुरंग के दूसरे सिरे पर था। “प्रसव पीड़ा में मृत्यु अनुभव से गुजरी एक महिला ने बताया वह एक लम्बी, अंधेरी सुरंग में तेजी से नीचे जा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कि वह तैर रही थी। उसे मार्ग में कुछ चेहरे भी दिखें। जो आए व चले गए। वे उसकी ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि से देख रहे थे। लेकिन कुछ बोले नहीं। सुरंग के अन्त में पहुंचने पर वह एक अद्भुत गर्म चमकीले प्रकाश से घिर गयी। एक अन्य व्यक्ति ने इस अवस्था में अनुभव का मार्मिक चित्रण इन शब्दों में किया” सुरंग के अन्त में एक सफेद प्रकाश दिखा। लेकिन यह इतना दूर था कि इसकी तुलना आकाश के किसी सुदूर तारे से की जा सकती है। जैसे-जैसे अत्यंत तीव्रगति से मैं इसके समीप पहुंचता गया , इसका आकार भी बढ़ता गया। सारी यात्रा के अन्त में सामने सुन्दर नीला-सफेद प्रकाश था। जिसकी चमक अन्धा करते वाले प्रकाश से भी तीव्र थी। लेकिन इसके बावजूद आंख को किसी तरह की क्षति नहीं पहुंची उल्टे सुखद अनुभव हुआ। मृत्युकालीन अनुभव की अन्तिम अवस्था में पहुंचे व्यक्तियों का कहना है कि वे उस जगत में पहुंचे जहां से प्रकाश का उद्गम होता है यह जगत अद्वितीय सौंदर्य से परिपूर्ण है। वहां के रंग इस जगत के रंगों से भिन्न हैं इस जगत में पहले मर चुके प्रियजनों को स्वागत करते हुए भी देखा गया। अद्भुत वृक्ष फूल, भवन एवं दृश्यों को देखा। मात्र एक तिहाई लोग ही इस लोक तक पहुंच पाए। अन्यों को रास्ते से वापस अपने शरीर में लौटना पड़ा इस लोक में पहुंचे हुए सभी लोगों ने अपने अनुभव में बताया है उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध शरीर में वापस आना पड़ा

हृदय संघात के कारण मृत्यु के इस अनुभव को पा चुकी एक महिला ने माप्रेट को उनकी शोध के दौरान बताया कि वह वहां एक सुन्दर गांव की गली में धीरे-धीरे टहल रही थी। ऐसा लग रहा था कि मैं यहां हमेशा से रह रही हूँ। वहाँ पक्षी बहुत सुंदर स्वर में गा रहे थे। आकाश का रंग चमकीला नीला वहां के सभी रंग चमकदार होते हुए सुखद कोमल थे। वृक्षों का रंग भी चमकीला था परन्तु वृक्ष नहीं था। वहां सूर्य तो नहीं दिख रहा था, लेकिन उसकी प्रकाश एवं गर्मी अनुभव हो रही थी। गली में दूर-दर तक मैं देख रही थी। समय की मुझे कोई प्रवाह नहीं थी। मुझे लगा कि गली के दूसरे सिरे पर कोई मेरा इन्तजार कर रहा है। लेकिन मुझे कोई जल्दी नहीं थी। क्योंकि संसार का सारा समय अब मेरे पास था। हृदय गति रुकने के कारण मृत्युकालीन अनुभव से गुजरी एक अन्य महिला ने बताया कि मैं एक सुन्दर जगह पर थी। वहां की घास पृथ्वी की किसी भी वस्तु से अधिक हरी थी। साथ ही इसमें एक विशेष चमक थी। रंग अवर्णनीय थे। प्रकाश कल्पना से बाहर चमकीला था इस सबका शब्दों में वर्णन नहीं हो सकता। यह स्वर्गीय प्रकाश था। यहां उन लोगों को भी देखा जो मर चुके थे। शब्दों में उनसे कोई बात नहीं हो रही थी। फिर भी मैं उनको समझ रही थी और वे मुझको समझ रहे थे। अपूर्व शान्ति का अनुभव हो रहा था। मैं प्रफुल्लित थी। मुझे वहां की सब चीजों से एकाकार होने का अनुभव हो रहा थे। मैंने वहां ईसा को देखा। उनसे आ रहा प्रकाश इतना तीव्र था कि सामान्यता अन्धा कर देता, लेकिन वह आश्चर्यजनक रूप से सुखप्रद महसूस हो रहा था मेरा वहां हमेशा के लिए रहने का मन था, लेकिन मेरे अभिभावक देवदूत ने कहा कि मुझे वास जाना होगा, अभी मेरा समय पूरा नहीं हुआ हैं तब मैंने विचित्र स्पन्दनों को अनुभव किया और मैं पुनः वापस शरीर में आ गयी।

मार्ब्रेट ग्रे की ही भांति रेमण्ड ए मूडी ने भी 150 ऐसे व्यक्तियों का अध्ययन किया जो बीमारी, दुर्घटना या किसी अन्य कारण से मृत घोषित हो चुके थे। ये सभी अपने मृत्युकालीन अनुभव के बाद आश्चर्यजनक रूप से पुनः जीवित हो गए थे। अपने उस शोधपूर्ण अध्ययन के निष्कर्ष का उन्होंने अपनी पुस्तक ‘लाइफ आफ्टर लाइफ’ में विस्तार से वर्णन किया है

इस विवरण के अनुसार सभी का अनुभव आदि से अन्त तक एक नहीं रहा। शोध विज्ञानी रेमण्ड मूडी ने सभी के अनुभवों का सार अपनी पुस्तक के एक मॉडल के रूप में व्यक्त किया है मूडी की वह अभिव्यक्ति कँनेथ रिंग एवं मार्गेट ग्रे के प्रतिपादन से बहुत मिलती -जुलती हैं इस मॉडल के अनुसार मर रहे व्यक्ति की शारीरिक पीड़ा की चरम सीमा पर उसके मृत होने की घोषणा की जाती है वह एक तीव्र घण्टी या अन्य किसी तरह संगीतमय ध्वनि सुनता है उसी क्षण वह स्वयं को एक लम्बी अंधेरी गुफा में तीव्र गति से प्रवेश करते हुए पाता है। यहां का शरीर भौतिक शरीर से भिन्न तरह का होता है। शीघ्र की उसकी मृत सम्बन्धियों एवं मित्रों से मुलाकात होती है। अन्त में एक स्नेह प्रेम की गरमाहट से भरा प्रकाश पुँज सामने प्रकट होता है। जो पहल कभी नहीं देखा गया था वह बिना किसी शब्द के प्रश्न पूछता है व जीवन के सभी घटनाचक्रों की फिल्मांकित करते हुए उनका मूल्याँकन करता है मूडी के अनुसार शायद इसी का प्रतीकात्मक चित्रण हिन्दू धर्मशास्त्रों में चित्रगुप्त के रूप में किया गया है। उनके अनुसार इसी प्रसंग में कभी कभी मृतात्मा एक बाधा के रूप में एक संकेत द्वारा महसूस करती है कि उसे धरती पर वापस जाना चाहिए, लेकिन वह वापस नहीं जाना चाहती। क्योंकि वहां वह प्रेम, शान्ति एवं आनन्द की तीव्र अनुभूति से अभिभूत हो उठती हैं । इसके बावजूद वह किसी तरह शरीर में आ जाती है।

मृत्युकालीन अनुभवों की शोध परम्परा में’ इवेन्स वेन्टल’ का नाम भी उल्लेखनीय है। उन्होंने ‘द तिब्बेतन बुक ऑफ द डेड’ में तिब्बत के ऐतिहासिक ऋषियों द्वारा प्रतिपादित मृत्युकालीन अनुभवों का विवेचन किया है। इसके अनुसार सर्वप्रथम मृत व्यक्ति की जीवात्मा शरीर से अलग हो जाती है। इसके पश्चात् वह अब एक बेहोशी में प्रवेश यहां उसे तरह−तरह की ध्वनियाँ सुनायी देती है। ऐसी स्थिति में जीवात्मा एक धूसर कुहरेदार प्रकाश से घिरी रहती है।

शरीर से विलग होने के प्रारम्भिक क्षणों में जीवात्मा कुछ पलों के लिए हैरान होती है। वह अपने शरीर के अन्तिम संस्कार की तैयारी कर रहे भिन्न सम्बन्धियों को रोते−बिलखते देखती है। साथ ही वह स्वयं की भौतिक शरीर से भिन्न एक नवीन चमकीले शरीर में पर्वत -पहाड़ के आर पार बिना किसी बाधा के आ-जा सकती है। उसकी यात्रा सहज हो जाती हैं अपनी इच्छा भर से वह चाहे जहां पहुंच जाती है। नया शरीर, पुराने शरीर के अंधेपन, लंगड़ेपन बहरेपन, आदि दोषों से मुक्त होता है। उसकी इंद्रियां अधिक सूक्ष्म व सजग होती है। विचार अधिक तीक्ष्ण होते हैं। अब वह अपनी तरह के शरीरधारियों से मिल सकती है। इवेन्स वेन्टज ने अपनी पुस्तक में मृत्यु के समय एवं उसके बाद मिलने वाली घनीभूत शान्ति एवं सन्तोष की अनुभूति का भी वर्णन किया है। उन्होंने एक ऐसे शीशे का भी उल्लेख किया है। जिसमें समूचे जीवन के अच्छे-बुरे कर्म स्पष्ट रूप से प्रकाशित होते हैं। और उच्चतर प्रकाशित आत्मा उनको देखकर निर्णय देती है। इस संदर्भ में न कोई झूठ सम्भव होता है और न ही किसी तरह की चूक की गुँजाइश रहती है।

इस क्रम में उनका यही कहना है। कि मृत्युकालीन अनुभव मनुष्य की अन्तः स्थिति पर निर्भर हैं वह आजीवन जैसा सोचता रहा है, अन्तिम क्षणों में जीवन की समस्त अनुभूतियों का सारतत्व प्रकट हो जाता है इसी के अनुसार किसी को प्रकाश दिख पड़ता है, किन्हीं को मृदुल संगीत की ध्वनि सुनायी पड़ती है। कुछ को नशा चढ़ने जैसी स्थिति अनुभव होती

यह सुनकर युवक स्तब्ध रह गये। तभी निवेदिता बोली-” भाषण के दौरान प्रसन्नता प्रकट करना आवश्यक ही हो तो स्वभाषा में प्रकट करो। बोली सच्चिदानन्द परमात्मा की जय। सद्गुरु की जय।”

हैं जिनका चिन्तन एवं जीवन स्तर हेय स्तर का रहा हैं उनको दम घुटने एवं डूबने जैसी अकुलाई भी होती है। लेकिन जिन्होंने जीवन दर्शन को समझा है, उन्हें मरण सुखद की लगता है तभी तो प्राणिशास्त्री विलियम हण्टर ने मरने से पूर्व मन्द स्वर में कहा था,” यदि मुझ में लिखने की ताकत होती तो विस्तार से लिखता कि मृत्यु कितनी सरल और सुखद हैं ।”

यदि मनुष्य आरम्भ से ही मृत्यु को जीवन का अन्तिम अतिथि मानकर चले उसकी अनिवार्यता को समझे और अपनी गतिविधियां आध्यात्मिक स्तर की बनाए रखें तो उसे मृत्यु के समय जीवन के व्यर्थ चले जाने का पश्चाताप न होगा। मृत्यु भी उसके लिए सरल और सुखद ही साबित होगी। थकान मिटाने के लिए निद्रा की गोद में जाना जब अखरता नहीं तो कोई कारण नहीं प्रतीत होता कि कुछ अधिक लम्बी नींद प्रदान करने वाली शान्ति एवं नव उल्लास देने वाली मृत्यु से हम डरें अथवा घबराएँ ।

महात्मा कबीरदास के शब्दों में कहें तो जिसने जीवन जीने की आध्यात्मिक शैली विकसित कर ली मृत्यु उसके लिए पूर्ण परमानन्द ही प्रदान करती है। तभी तो उन्होंने कहा था।

शायद यही कारण है कि आध्यात्मिक जीवन दृष्टि रखने वाले सभी महापुरुषों को मृत्यु ने एक सा आनन्द दिया, फिर चाहें वे पश्चिम के हो अथवा पूर्व के। जार्ज वाशिंगटन मरने लगे तो उन्होंने कहा-” मौत आ गई, चलो अच्छा हुआ, विश्राम मिला। “हेनरी थोरी ने शान्त और गम्भीर मुद्रा में मृत्यु का स्वागत करते हुए कहा-” मुझे संसार छोड़ने में पश्चाताप की नहीं आनन्द की अनुभूति हो रही हैं ।” महाकवि विलियम वर्डससवर्थ ने और भी अधिक प्रसन्नता व्यक्त की तथा कहा-” लगता है मेरे बदन पर फूल ही फूल छा गए हैं। “ दार्शनिक इमानुएक काण्ट ने मृत्यु के समय अलंकारिक भाषा में कहा-”बत्तियां जला दो, मैं अन्धकार में नहीं जाऊँगा । “अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा “ मरना कितना सुखद है। “स्वामी दयानन्द ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए मरण के क्षणों का स्वागत किया और कहा “ईश्वर तेरी इच्छा पूर्ण हुई।” हन महापुरुषों की भांति अपने जीवन में आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित करने वाले हर किसी के लिए मृत्यु जीवन के अन्त की दुःखद सम्भावना बनकर नहीं विश्राम , शान्ति एवं उल्लास के महापर्व के रूप में आती है।


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