पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे

December 1996

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अनेक पाठ-परिजन ऐसे है जो विगत कुछ वर्षों में या अभी-अभी ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका से जुड़े हैं। सभी की अपनी-अपनी जिज्ञासाएँ होती है। वे पत्रों के माध्यम से यदा-कदा उनका समाधान पाते रहते हैं।कई शंकाएँ-जिज्ञासाएँ जो पत्रों में उठाई जाती रहती है, सम्भव है वे एक नहीं कइयों की हों,। उनका समाधान यदि पत्रिका में हर माह दिया जाता रहे तो इससे अगणित व्यक्तियों को लाभ पहुँच सकता है ये जिज्ञासाएँ पत्रिका में प्रकाशित विचारों से लेकर गायत्री परिवार, युग निर्माण योजना, मिशन के व्यापक विराट् रूप से प्रकाशित विचारों से लेकर गायत्री परिवार, युग निर्माण योजना, मिशन के व्यापक विराट् रूप से सम्बन्धित होती है। भावी संभावनाओं से भी जुड़ी होती हैं इस माह से यह स्तम्भ यही बात मन में रखकर आरम्भ किया गया है कि बिना किसी का नाम लिए पाठकों के प्रश्नों व अपने उत्तर को प्रकाशित कर एक कमी, एक दूरी मिटा दी जाय। सम्भव है इससे आपके-हमारे समीप अनेक पथ-प्रशस्त हो। आपके सुझावों से हम इस पत्रिका को और भी प्रामाणिक, प्राणवान मार्गदर्शक पत्रिका बना सकेंगे। इस स्तम्भ में इस क्रम में प्रश्नों को जा समय-समय पर उठते रहे है, उनके उत्तरों के साथ दिया जा रहा है। यही औपनिवेशिक प्रणाली भी नहीं है उसी का निर्वाह करते हुए यह धारावाहिक स्तम्भ अब पाठकों के लिए खुले मंच के रूप में प्रस्तुत है।

प्रश्न:- ‘अखण्ड-ज्योति’ पत्रिका में जो लेख लिए जाते हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि वे परमपूज्य गुरुदेव की लेखनी से निस्सृत प्राण−प्रवाह का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्या परमपूज्य गए हैं ? फिर इनमें सामयिक संदर्भ स्थान-स्थान पर देखे जाते हैं, वे कैसे पूर्व से लिखकर रख दिए गए?

उत्तर:- निश्चित ही ‘अखण्ड-ज्योति’ पत्रिका पूज्य गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी (1911-1990) तथा परमवंदनीय माताजी (1926-1994) की विचार चेतना के प्रवाह के मार्गदर्शन में ही लिखी जाती हैं ‘अखण्ड दीपक’ जो शांतिकुंज हरिद्वार में मथुरा से 1971 में आने के बाद से ही प्रज्वलित है, इसकी एवं मिशन की सभी योजनाओं का प्रेरणा स्त्रोत हैं परमपूज्य गुरुदेव ने 1926 में जो अखण्ड दीपक प्रज्वलित किया था वही 1940 से प्रकाशित पत्रिका के ऊर्जा प्रवाह का प्रधान स्त्रोत है एवं आगामी बीस वर्षों में जो भी कुछ लिखा जाना है, उसकी मोटी रूपरेखा पूज्यवर ने महाप्रयाण से पूर्व जनवरी 1990 में बड़े स्पष्ट रूप में लिखकर दे दी थी। उँगलियाँ कोई भी लिखती हो, संपादन कोई भी करता हो, धुरी वही है मानव में देवत्व लाने के लिए-धरती पर स्वर्ग का अवतरण करने के लिए श्रेष्ठ विचारों का ऐसा कल्पतरु विनिर्मित हो, जो चारों ओर ऐसा वातावरण बनाने की प्रक्रिया संपादित करें विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से लेकर सामान्य व गूढ़तम साधना पद्धतियों के मूल में भी पूज्यवर द्वारा 50 वर्ष की अवधि में लिखा गया वह चिन्तन प्रवाह है, जो समय-समय पर परिजनों तक पहुँचता रहा है वह सदैव सामयिक रहा है, रहेगा। संपादन मण्डल द्वारा जी सामयिक संदर्भ दिये जाते हैं वे भी उनके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के अंतर्गत ही लिखे जाते हैं, एक मिलीमीटर भी इधर-उधर नहीं हटकर विगत की व सबकी पत्रिका के प्रवाह में देखकर यह अन्तर नहीं बता सकता कि यह गुरुसत्ता की लेखनी से लिखे गए हैं या नहीं।

प्रश्न:- ऐसा अक्सर कहा जाता है कि वाङ्मय में वह सब आ गया है, जो पूज्यवर द्वारा लिखा गया है या कहा गया है क्या आगामी बीस वर्षों का लेखन भी इसमें आ गया है। जो आगे प्रकाशित होने जा रहा है?

उत्तर:- पूज्यवर ने अपने जीवनकाल में स्वयं द्वारा व अपने मार्गदर्शन में औरों से जो कुछ भी लेखन कार्य कराया था, वह 2700 किताबों (छोटी-बड़ी सभी आकार की) के रूप में बिखरा पड़ा था। उसे संग्रहित करे एक स्थान पर वाङ्मय के रूप में अभी 70 खंडों में व बाद में 38 और शीघ्र प्रकाशित किया गया है अब तब के खंडों में बहुसंख्य भाग वह नहीं जो वह आगे के लिए मार्गदर्शन, लिखी हुई थी पढ़ी हुई सामग्री के रूप में दे गए है। यह संभावित है छोटी-बड़ी 500 पुस्तकों के रूप में हो इन्हें पहले ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका में एवं फिर छोटी पुस्तकों तथा बाद में वाङ्मय में दिया जाएगा॥ प्रथम वरीयता। ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका को ही मिलेगी, क्योंकि यह वस्तुतः गुरुसत्ता की प्राणचेतना का वास्तविक प्रतिनिधित्व करती है। एवं जन-जन के लिए सुलभ है।

प्रश्न:- गायत्री परिवार, युग निर्माण मिशन, प्रज्ञ अभियान,प्रज्ञापरिजन, अखण्ड ज्योति परवा नाम से बार-बार जो सम्बोधन दिए जाते हैं, वे अलग-’अलग हैं या एक ही समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले नाम है।

उत्तर:- जो भी ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका का नियमित स्वाध्याय करता है,

वह गायत्री परिवार नामक विराट संगठन का सदस्य है। सदस्यता की और कोई औपचारिक शर्त नहीं है, मात्र नहीं यही है। उद्देश्य एक ही है। श्रेष्ठ विचारों से जुड़े रहने वालों का, अपने में छिपे देवत्व को उभारने को प्रयत्नशील परिजनों का परस्पर संगठित होना। शेष सभी नाम इस के पर्यायवाची है, अगल-अलग नहीं। हरिद्वार स्थित शांतिकुंज रूपी मुख्य चेतना केन्द्र से संचालित सारी गतिविधियों का विस्तार मथुरा स्थित गायत्री तपोभूमि एवं अखण्ड ज्योति संस्थान द्वारा विगत 50 वर्षों से भी अधिक समय से संपन्न होता रहा है व आगे भी प्रकाशन विस्तार क्षरा यह प्रक्रिया जारी रहेगी । समग्र समुच्चय मालाकर एक लाल मशाल से परमपूज्य गुरुदेव व परमवंदनीय माताजी के बाद उनका प्रतिनिधित्व करती है, के रूप में ज्ञान की जाज्वल्यमान ज्योति को प्रतीक मानकर उसके अधीन काम कर रहा हैं मार्गदर्शन उसी गुरुसत्ता का है प्रसाति उसे पांचों केन्द्र-शांतिकुंज एवं ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान हरिद्वार से , युगतीर्थ जन्मभूमि आंवलखेड़ा (आगरा)- से तथा गायत्री तपोभूमि एवं अखण्ड ज्योति संस्थान मथुरा से करते हैं अखण्ड ज्योति, हिंदी एवं अन्यान्य भाषाओं में इसे वैचारिक प्रवाह के प्रतिनिधि के रूप में ‘युग निर्माण योजना’ मासिक लोकशिक्षण व समाज-निर्माण की वाणी के यप् में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिन्दी व गुजराती में इसे कार्यकर्त्ताओं के प्रबन्ध मार्गदर्शन के रूप में जन-जन तक पहुँचाने की प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न:- कुछ व्यक्ति अखण्ड ज्योति को 1926 से एवं आरम्भ हुआ बताते हैं, कुछ 1937 से एवं कुछ 1940 से । इसमें -कौन सा सच है एवं प्रामाणिक है?

उत्तर:- 1926 से ‘अखण्ड ज्योति’ के रूप में अखण्ड ज्योति’ के रूप में अखण्ड दीपक परमपूज्य गुरुदेव द्वारा प्रज्वलित किया गया था, जिसके माध्यम से वसंत पर्व रूपी उनके आध्यात्मिक जन्मदिवस की बेला में उन्हें उनकी परोक्ष मार्गदर्शन सत्ता ने हिमालय से आकर दर्शन दिए थे एवं साधना सम्बन्धी मार्गदर्शन दिया था। यह सारा विवरण 1984 की जून-जुलाई तथा 1985 की अप्रैल माह की पत्रिका तथा बाद में हमारी वसीयत ओर विरासत’ में प्रकाशित है। तब से अब तक यही अखण्ड दीपक जल रहा है 1926 से 1941-42 तक यह आंवलखेड़ा व आगरा रहा तथा बाद में 1971 तक ‘अखण्ड ज्योति संस्थान’ मथुरा में । मथुरा में यह कक्ष वैसा ही बनाए रखा गया है एवं घीयामंडी में सभी उसके दर्शन कर सकते हैं। 1971 की 20 जून से यह अखण्ड दीपक परमवंदनीया माताजी एवं परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में प्रत्यक्ष रूप से उनकी उपस्थिति में व बाद में उनके परीक्षा संरक्षण में सतत् शांतिकुंज सप्तसरोवर हरिद्वार में जल रहा है, जहां नित्य नियमित रूप से इसको दर्शन प्रणाम करने हेतु हजारों व्यक्ति आते हैं। जिस दिन से यह मथुरा से हरिद्वार लाया गया है, उसी कक्ष में सतत् प्रज्वलित है। इसी के प्रकाश-मार्गदर्शन में सभी निर्णय इस दैवी मिशन के लिए जाते हैं। यह हुई ‘अखण्ड दीपक’ की बात ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका इसी तप-साधना के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में प्रथम बार 1937 की वसंत पंचमी से हस्तनिर्मित कागज पर हाथ से चलने वाली मशीनों से निकलने के प्यास द्वारा आरम्भ की गयी थी। 1 अंक निकलने के बाद से अनौपचारिक रूपों से पत्रों द्वारा 200 पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास आगरा से चलता रहा है बाद में फ्रीगंज आगरा से नियमित प्रकाशन वसंतपर्व 1940 के प्रथम अंक से हुआ तो 20 जनवरी को प्रकाशित हुआ । यही प्रामाणिक रूप में उपलब्ध प्रथम अंक है। तक से सतत् प्रकाशित है तो रहा हैं 200 पत्रिका प्रतिमाह से छोटे कलेवर में आरंभ हुआ यह ज्योति-पुज आज बड़ा रूप लेकर बड़े आकर्षक फॉरमेट में भारत व विश्व के कोने-कोने में पहुँचता है तीनों वर्ष स्वयं में ऐतिहासिक व प्रामाणिक हैं पर वास्तविक प्रकाशन कब से है इसे परिजन उपरोक्त मार्गदर्शन से समझ सकते हैं।

प्रश्न:- अपनों से अपनी बात’ स्तम्भ जो संपादकीय के रूप में प्रकाशित होता है, कौन लिखता है व इसे एक नये पाठक क्षरा किस रूप में अंगीकार करना चाहिए?

उत्तर:- परमपूज्य गुरुदेव ने प्रारम्भ में ‘गायत्री -चर्चा’ नाम से एक स्तम्भ अखण्ड ज्योति में अपनी बात पाठकों से संपादकीय के रूप में कहने के लिए आरम्भ किया था, जिसे बाद में उनने ‘अपनों से अपनी बात- कॉलम से प्रकाशित करना आरम्भ किया। चालीस वर्ष तक सतत् प्रकाशित यह स्तम्भ या तो पूज्यवर या शक्तिस्वरूपा माताजी की लेखनी से लिखा जाता रहा। बाद में यह लेखनी जिसे सौंपी जाती रही । बाद में यह लेखनी जिसे सौंपी गयी, यह कार्य उन्हीं के मार्गदर्शन में कर रही हैं इसमें प्रत्यक्ष व्यावहारिक मार्गदर्शन परक शिक्षण व भविष्य की गतिविधियों परक शिक्षण व भविष्य को गतिविधियों की जानकारी होते हैं। विगत के उत्साहवर्द्धक विवरण से आगत में क्या कुछ घब्ति होने जा रहा है, इसका विवरण गुरुसत्ता के परोक्ष मार्गदर्शन में लिखा जाता है। लेखनी किसी की भी हो, यह प्रकाश उसी महाकाल के दैवी प्रवाह से उपजना है जो इस विराट मिशन का संचालन कर रहा हैं इसे उसी रूप में अंगीकार किया जाना चाहिए।

प्रश्न:- एक बात बार-बार मन में आती है कि ‘अखण्ड ज्योति’ यदि जन जन की वाणी है तो इसकी भाषा इतनी क्लिष्ट क्यों है? क्या इसे सरल नहीं किया जा सकता?

उत्तर:- जिस दैवी प्रवाह के परोक्ष मार्गदर्शन में यह लिखी जाती है, उसमें यह सहज की विकृष्ट हो जाती हैं पाठकों की इस कठिनाई को समझा जा सकता है। प्रयास यह किया जा रहा है कि क्रमशः इसे और भी सरल भाषा में प्रस्तुत किया जाय संस्कृत निष्ठ शब्द जो लेखों में बहुधा दिखाई पड़ते हैं, अब कुछ सरल रूप में पाठकगण पढ़ सकेंगे। कई बार ढूँढ़ने पर भी उनका कोई उचित पर्यायवाची नहीं मिलता । प्रयास यह किया जा राह है कि वाक्य छोटे हों, सरल शब्द हों भाव गड़बड़ाने न पाएँ व प्रवाह यथावत् बनी रहे, शैली पूर्ववत् ही हो एवं कही आवश्यकता हो तो सरल कथन बना रहे शैली पूर्ववत् ही हो एवं कही आवश्यकता चाहे तो सरल हिंदुस्तानी भाषा में एक गरिष्ठ सरल हिन्दुस्तानी भाषा में एक गरिष्ठ शब्द या कथन को ‘ग्लाँसरी’ या फुटनोट द्वारा स्पष्ट कर दिया जाय। इससे सम्भवतः’ सबको समझने में सुगमता रहेगी एवं भाषा प्रवाह भी नहीं गड़बड़ाएगा।

(और भी प्रश्न व उनके उत्तर अगले अंक में।)


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