नारी केवल साँस पिण्ड का पर्याय नहीं है। अनादि कल से लेकर आज तक पुरुष को गढ़कर उसके विकास में सहायक-अनुगामी बनकर , उसके अभिशापों को स्वयं सहते हुए अपने वरदानों से जिसने उसके जीवन में अक्षय शक्ति का अभिसंचार किया है। वह नारी है।