‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे

December 1996

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(पाठकों की संख्या बढ़ाकर परिजन पुण्य के भागी बनें)

आज के वैचारिक प्रदूषण के युग में भी बहुसंख्य व्यक्तियों में श्रेष्ठता को अंगीकार करने की चाह है, सत्प्रवृत्तियों के बारे में पढ़ने व जीवन में उतारने की उमंग है, यह परिजनों की अखंड ज्योति पत्रिका में अभी व्यक्त विचारों से बढ़ती अभिरुचि से प्रकट होता है । कोई यह सोचता का नवनिर्माण कैसे होगा? तो उसके लिए 1926 से सतत् प्रकाशित चहुँओर अपनी ऊर्जा बिखेरती 60 वर्ष पुरानी यह पत्रिका विधेयात्मक चिन्तन का स्वरूप लेकर आती है। प्रतिमाह परिजनों के घरों में ज्ञान का आलोक लेकर पहुँचने वाली यह आध्यात्मिक पत्रिका मात्र एक अखबार या लेखों का पुलिंदा नहीं अपितु प्रचाण् प्राण ऊर्जा के मान है, जो परमपूज्य की लेखनी मातृसत्ता के ममत्व भरे मार्गदर्शन का निर्वाह यथावत् करती आ रही है। जैसे प्रतिया के लिए अपनी अनिवार्यता को स्पष्ट करता जा रहा है।

महाकाल ही युग परिवर्तन के देवता हैं एवं उन्हीं की प्रेरणा से निस्सृत यह विचार प्रवाह आज कितना जरूरी हैं, होना चाहिए। तनद दैनंदिन जीवन की समस्याओं का समाधान पर मार्गदर्शन लेपन जीवन जीने की कला का शिक्षण एवं एवं विशिष्ट सभी प्रकार की पद्धतियों के वैज्ञानिक विवेचन से व्यक्ति, परिवार

अखण्ड ज्योति की पाठ्य सामग्री की मूलभूत पृष्ठभूमि है गायत्री एवं यज्ञ के रूप में भारतीय संस्कृति के दो की धुरी पर पूरा भारतीय अध्यात्म देवसंस्कृति का लोक शिक्षण परक मार्गदर्शन टिका से लेकर कथा साहित्य द्वारा सद्गुणों की अवधारण का शिक्षण एवं सामयिक सभी समस्याओं का गहराई से विवेचन ‘अखण्ड ज्योति पख्का से तत दिया जाता रहता है विगत वर्षों में इस साहित्य ने जीवन संजीवनी के रूप में जो भूमिका निभाई है उससे की अधिक आज की मूर्च्छित मानव जाति के लिए यह अगले दिनों निभाने जा रही है।

अखण्ड ज्योति पत्रिका के मार्गदर्शन के रूप में वे अपने उत्तराधिकारियों को उपलब्ध करा गए इस पत्रिका से सतत् सान्निध्य इसमें दिये गए विचारों का नियमित स्वाध्याय परमपूज्य गुरुदेव एवं परमवंदनीय माताजी से साक्षात्कार करने के समान है यह हर किसी के लिए हर पल सहज ही उपलब्ध हैं इस पत्रिका को स्वयं पढ़ना व औरों को प्रेरित करना ऋषियुग्म की सत्ता के मानस पुत्रों में वृद्धि में वृद्धि करने के समान हैं इस संधिवेला में सभी का यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि इन मानस पुत्रों में और वृद्धि हो एक पाठक न्यूनतम पाँच नये जपजसम मज पाठक तैयार करे पच्चीस सहयोगी पाठक तैयार करे।

इस वर्ष अपने उसी रूप में ओर भी आकर्षक स्तम्भों के साथ नवीनतम शोधपरक सामग्री से सजी यह पत्रिका पाठकों तक पहुंचती रहेगी अपना प्रयास यही है कि यह सब तक सही समय पर पहुँचती रहे । पूर्व वर्ष की भाँति इसका चन्दा आठ रुपये वार्षिक होगा। परिजनों पर किसी प्रकार का आर्थिक भार न आए इसलिए इसी राषी में बढ़जपजसम मज पृष्ठों व चित्र युक्त सामग्री के साथ पत्रिका को प्रकाशित करते रहने का निश्चय किया गया हैं विज्ञापन न देने की पूज्यवर की नीति पर हमेशा से टिके रहा गया है। आगे अपने पाठकों की सहृदयता व श्रेष्ठता के प्रति विश्वास तथा गुरुसत्ता के आदर्श के प्रति अटूट निष्ठा के साथ।

अगले वर्ष पूर्वोत्तर पश्चिमोत्तर भारत एवं सुदूर दक्षिण में स्थान-स्थान पर संस्कार महोत्सव सम्पन्न हो रहे हैं इनका शुभारंभ अल्मोड़ा (कुमायुं) एवं भद्रकाली (पं. बंगाल) के कार्यक्रमों से हो गया हैं इन संस्कार महोत्सवों की ऊर्जा राष्ट्र की परिधि को पार कर विदेश की धरती पर सम्पन्न होने वाले लन्दन व न्यूजर्सी के विशिष्ट संस्कार ज्ञानयज्ञों के रूपों में चहुंओर विस्तरित होती नजर आएगी। इस सम्बन्ध में जानकारी एवं रूप में विराट रूप लेने का विवरण पाठकगण देव संस्कृति के विश्व संस्कृति के रूप लेने का विवरण पाठकगण देव संस्कृति के विस्तृत विवेचन के साथ पढ़ सकेंगे।

भावनाशील परिजनों से अनुरोध है कि ‘अखण्ड ज्योति‘ के आलोक प्राणऊर्जा के दिव्य प्रवाह को घर-घर पहुँचाने के अपने में अद्भुत इस आध्यात्मिक पंख्का का वार्षिक चंदा 60 रुपये,विदेशों में 500 रुपये जपजसम मज वार्षिक है अपनी व स्वजनों की आगामी वर्ष की राशि तुरन्त भेज दी जाय, ताकि प्रवाह अवरुद्ध न हो आराध्य की जुलाई ज्योति ज्वालमाल बन घर-घर फैले, यही हमारी मंगल कामना है।


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