कौरवो की आवभगत (Kahani)

December 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

महाभारत का युद्ध होने की तैयारियां शुरू हो चुकी थी। इस युद्ध के लिए दोनों पक्षों ने अपने राजाओं को निमन्त्रण भेजा। निमन्त्रण पाकर दूर-दूर से राजा महाराजा योद्धा अपने-अपने स्नेहियों के पक्ष में लड़ने के लिए चल पड़े। शल्य पाण्डवों के मामा था पाण्डवों ने सोचा वह तो हमारे पक्ष में आयेगी ही, उनकी अगवानी के लिए विशेष व्यवस्था करने की क्या आवश्यकता?

इस सहज उपेक्षा का दण्ड उनको मिला। दुर्योधन ने शल्य के मार्ग में जगह-जगह सुविधाएं जुटा दी। शल्य उन्हें पाण्डवों द्वारा प्रदत्त मानकर उपयोग करते रहे। बाद में जब यथार्थता का पता चला तो जिसके साधनों का शल्य उपयोग करते आ रहे थे। उसके ही पक्ष में खड़ा होना पड़ा यदि पाण्डव उपेक्षा न बरतते तो यह हानि न उठानी पड़ती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118