देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने

December 1996

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सपनों की सार्थकता से इनकार नहीं किया जा सकता पर सामान्य जीवन में जो सपने दिखाई पड़ते हैं। उनमें से अधिकांश स्वप्नों में निरर्थक दृश्यों की ही भरमान होती है। इनसे कैसे बचा जाय और सार्थक एवं सोद्देश्य स्वप्न कैसे प्राप्त किये जाए ? इस दशा में विज्ञान कोई सुनिश्चित हल अभी तक नहीं दे शोधकार्य अवश्य हुए हैं। और शोधकर्त्ताओं ने अपने निष्कर्ष के आधार पर स्वप्न सिद्धान्त भी प्रतिपादित किये हैं मगर इनमें से अधिकाँश ऐसे है जिनमें स्वप्न सम्बन्धी क्रियाविधि की ही चर्चा की गई और मूल उद्देश्य को गौण रखा गया है।

किन्तु अमेरिका के येल विश्व-विद्यालय में इसी उद्देश्य को लेकर अनुसंधान किये जा रहे हैं वहां के वैज्ञानिक निरन्तर इस बात के लिए प्रयत्नशील है कि मानवी स्वप्नों को नियंत्रित कर उच्चस्तरीय स्वप्न कैसे प्राप्त किये जाए? इस दिशा में उन्हें कतिपय सफलता मिली भी है। यही कार्य भारत में विशाखापट्टनम की ‘ड्रीम रिसर्च लैबोरेटरी‘ में भी सम्पन्न हो रहा है। येल युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम बिल्लियों पर प्रयोग कर यह जानने का प्रयास किया गया कि स्वप्नों के लिए मस्तिष्क का कौन-सा अवयव जिम्मेदार हैं इस क्रम में जब शोधकर्मियों ने जब बिल्ली का ब्रेन-स्टेम नष्ट किया, तो पाया कि उसे स्वप्न आने बन्द हो गये। इस आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि स्वप्न सम्बन्धी भाग बगेन स्टेम ही है इतना सुनिश्चित होने के पश्चात् अब वे मनुष्यों पर प्रयोग कर रहे है उनका कहना है कि यही वह हिस्सा है जिसका सीधा संपर्क समष्टिगत चेतना से होता है। और वही से भविष्य सम्बन्धी तरह-तरह की सूचनाएं आती है। शोधकर्ता वैज्ञानिक अब इस बात के लिए प्रयासरत है कि यदि सचमुच ही दिमाग का या भाग स्वप्न के लिए उत्तरदायी है। तो उसका सघन संपर्क वैश्व-चेतना से लगातार कायम कैसे रखा जा सकता है।ताकि सार्थक जानकारियां ग्रहण की जा सके। अनुसंधान कार्य अभी जारी है।

ब्रिटिश मनोविज्ञानी क्रिस्टों-फर इवान्स कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘लैण्डस्केप ऑफ दि नाइट’ में लिखते हैं कि स्वप्न चैतन्यावस्था में ही काम करना शुरू कर देते हैं। यह बात दूसरी है कि इसकी जानकारी हमें निद्रावस्था में मिल पाती है उनका कहना है कि व्यक्ति यदि चाहे तो कठिन समस्याओं का हल इसके माध्यम से प्राप्त कर सकता है। इसका उपाय बतलाते हुए इवान्स कहते हैं कि कुछ समस्याओं पर यदि लगातार गहन चिन्तन किया जाये और कुछ दिन पश्चात् इसका उत्तर निद्रावस्था में संकेत रूप से मिल जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसका समर्थन न्यूयार्क राकफेलर युनिवर्सिटी के तंत्रिकाविज्ञानी डॉ. जोनाथन विन्सन ने भी किया है वे अपनी ‘ब्रेन एण्ड दि साइक ‘ कृति में कहते हैं कि प्रसुप्त की क्षमता को यदि जगाया -उभारा जा सके, तो वह हमें ने केवल सपनों के माध्यम से अनागत की सूचना दे सकती है वरन् पूर्ण चेतना की अवस्था में भी हम उससे उसी स्तर का कार्य ले सकते हैं।

शोध के दौरान दोनों अनुसंधानकर्ता एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे है शोधर्थीद्वय का विचार है कि स्वप्न निद्रा का कोई आकस्मिक बाईप्रोडक्ट नहीं है, वरन् नींद की यह उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है दोनों ने जन्तुओं पर ही अपने अनुसंधान कार्य किये। इवान्स ने स्वप्न संबंधी तथ्य एक जलकौवे पर अध्ययन करके ढूँढ़ निकाले। एक बार उन्होंने देखा कि एक जलकौवा शोध का अच्छा अवसर देख वह दबे पाँव कौवे के निकट गये, उसे स्पर्श किया और धीमे स्वर में कहा -” क्या हो रहा है,” तत्क्षण पक्षी जग पड़ा उसे खतरे का एहसास हुआ एक पल तक दोनों की आँखें चार हुई , फिर वह पंख फड़फड़ाते उड़ पड़ा।

इवान्स का कहना है कि ऐसी खतरनाक स्थिति में कोई भी जन्तु अथवा पक्षी स्वयं को नहीं रखना चाहेगा। फिर ऐसा क्यों ? उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि स्वप्न फिजियोलॉजी और जीवन का इतना आवश्यक अंग है कि पशु - पक्षी (विशेषकर उष्णरक्तीय ) नींद की स्थिति में इसके (स्वप्न के) बदले ऐसे खतरे उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

आतव्य है स्वप्न सदा’ रेम स्लीप’ के दौरान ही आते हैं। पर आस्ट्रेलियाई पिपीलिका भक्षी एकमेव ऐसा ज्ञात स्तनपायी है। जिसमें ‘रेम स्लीप’ का सर्वथा अभाव होता है। इस जन्तुओं की तुलना में अपेक्षाकृत अन्य स्तनपायी जन्तुओं को तुलना में अपेक्षाकृत बड़ा होता है। विन्सन इसी विलक्षणता में स्वप्न रहस्य छिपा मानते हैं। उनका कहना है कि यद्यपि सभी जन्तु में ‘ रेम स्लीप नहीं होते किन्तु फिर भी वे इस क्षति की पूर्ति कर लेते हैं। क्योंकि ये जाग्रतावस्था में स्वप्न देखते हैं। फ्रण्टल लोब का प्रयोग जानकारियों के रूप से सक्रिय और क्रियाशील होता है। जबकि दूसरे उष्णरक्तीय जन्तुओं को इसके लिए ‘रेम स्लीग’ का इन्तजार करना पड़ता है।

किन्तु यदि किसी कारणवश किसी व्यक्ति की ‘रेम स्लीप’ में कोई व्यतिक्रम आ जाय, तो क्या होगा? मनोविज्ञानी इवान्स कहते हैं। कि इसके लिए ब्रेन को किसी नये सिरे की प्रोग्रामिंग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वह उस पहले के ही प्रोग्राम में आवश्यक फेर -बदल कर अपना अभीष्ट पूरा कर लेता है। उदाहरण के लिए , मादक द्रव्यों के सेवन करने वालों को लिया जा सकता है। ये द्रव्य उन्हें उसी गहन निद्रा कि स्थिति में पहुंचा देते हैं कि वे भली-भांति स्वप्न नहीं देख पाते। जब यह स्थिति चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाती है (और ही नहीं पहुँच पाता)तो स्वप्न प्रक्रिया स्वतः चालू हो जाती है। जबकि मतिभ्रम होता है। जैसा कि डेलिरियम ट्रिमेन्स की स्थिति में शराबियों में देखा जाता है।

एक शरीरशास्त्री होने के नाते जीनाथन विन्सन ने अनेक वर्षों तक मस्तिष्क और उसकी संरचना व क्रिया का गहन अध्ययन किया है। इससे पूर्व तक शरीर में मन का स्थान अविज्ञात था, पर अपनी श्रमसाध्य शोध के दौरान विन्सन ने मन का सही -सही निवास ढूँढ़ निकालने का दावा किया है। उन्होंने मन का स्थान लिम्बिक सिस्टम के भीतर माना है। उनका कहना है कि यह तंत्र मन के प्रधान कार्यालय की तजरह है तो यह निर्णय करता है कि किन स्मृतियों , घटनाओं आँकड़ों बातों को सुरक्षित रखना है और किन्हें भुला देना हैं विन्सन का मानना है। कि यही स्वप्न प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। वे कहते हैं। कि महत्व के आधार पर जानकारियों की छँटनी स्वप्नावस्था में ही सम्भव है इसके बिना नये-पुराने अनुभवों का मिलन-समागम सम्भव नहीं , न ही दैनन्दिन जीवन में आवश्यक अल्पावधि स्मृति ही सम्भव है। यह सारा कार्य मानी कियी कंप्यूटर की प्रोसेसिंग यूनिट की तरह यहां होता है। विन्सन का कहना है कि यदि हम अपने स्वप्नों को याद रखें। सकें, तो हम अपने आन्तरिक अभिप्राय को, अपनी आभ्यन्तरिक प्रवृत्ति को बहुत कुछ जानने में सफल हो सकते हैं क्योंकि इसमें यथार्थता की एक हल्की झाँकी विद्यमान होती है । विन्सन इसे ‘ स्वप्नद्रष्टा का अचेतन व्यक्तित्व कहते हैं।

क्या यह अचेतन व्यक्तित्व हमारे कुछ काम आ सकता है? इससे व्यावहारिक कठिनाइयों का हल प्राप्त किया जा सकता है? दोनों शोधकर्मी इसका सकारात्मक जवाब देते हैं उनके अनुसार सपने ग्रहण करते की यदि बहुत उच्चकोटि की क्षमता -योग्यता रही तो व्यक्ति उनसे लाभ उठा सकता है और जीवन का अपेक्षाकृत अधिक आनन्द ले सकता है।

समय -समय पर ऐसे व्यवहारिक सपनों द्वारा लोग जीवन की जटिलताओं का हल पाते रहे है कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित प्रसिद्ध उपन्यासकार ग्राहम ग्रीन की आत्मकथा ‘वेज ऑफ एस्केप’ में इस बात का उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार को एक अन्य पुस्तक ‘एक्पीरियेन्स एण्ड एक्सप्रेशन ‘ अभी-अभी प्रकाशित हुई है। इसमें मूर्धन्य लेखक एक आँगरैक ने बड़े विस्तार से इस बात की चर्चा की है कि किस प्रकार उसे अपनी व्यक्तिगत उलझनों का हल स्वप्नों के माध्यम से बराबर मिलता रहा। ,

विन्सन का कहना है कि हमारे मन के हृदय केन्द्र में ही अचेतन मन स्थित है। यह एक ऐसी सतत् क्रियाशील मानसिक संरचना है जो हमारें जीवन के अनुभवों से नोट लेती रहती हैं और इसकी प्रतिक्रिया व अभिव्यक्ति को अपनी योजनानुसार सांकेतिक भाषा में प्रकट करती रहती है। रात में स्वप्नों के माध्यम से यही प्रतिक्रिया अभिव्यक्त होती हैं इवान्स ने भी स्वप्नों को मानसिक जीवन का एक आवश्यक अंग माना है और कहा है कि अनागत भविष्य की जानकारियों का यह इतना विशाल भण्डार है कि यदि व्यक्ति चाहे तो इससे लाभान्वित हो सकता है।

एक स्थान पर विवेकानन्द ने कहा है कि हम उन्हीं वस्तुओं और ध्वनियों को देख - समझ सकने में समर्थ हैं जिनकी आवृत्ति हमारे प्रण के समतुल्य है। इससे कम और अधिक दोनों ही आवृत्तियों में से किसी को भी हमारी इंद्रियां ग्रहण करने में सक्षम नहीं है। वे कहते हैं कि हमारे चारों ओर कितनी ही सूक्ष्म सत्ताएं हो सकती है। किन्तु हम उन्हें सिर्फ इसलिए नहीं देख पाते कारण कि हमारी प्राण चेतना के कम्पन उनकी आवृत्ति से मेल नहीं खाते। योगियों के देखते-देखते अदृश्य हो जाने के पीछे यही निमित्त कसाध्सश्रसूत है। अविज्ञात के गर्भ में पक रहे घटनाक्रम को एक सामान्य व्यक्ति नहीं ग्रहण कर पाता पर दिव्यदृष्टा महापुरुष उसे यही सरलता से पकड़ लेते हैं। इसके पीछे था प्राण - चेतना के स्पन्दन की ही मुख्य भविष्य है।

सामान्य निद्रा में प्राण स्पन्दन कुछ तीव्र हो जाता है फलतः हमें निरर्थक स्वप्नों दीख जाते हैं। जो भावी जीवन की क्रिया महत्वपूर्ण घटना की ओर संकेत करते हैं। ज्ञातव्य है कि घटनाएं घटित होने से बहुत समय पूर्व की प्रकृति की उदारजनों में आ जाती है। यदि प्राण -गति को नियुक्त करने की विधा हस्तगत की व्यक्ति जाग्रतावस्था में भी सार्थक सपने देख सकता है। योगी-यती इसी प्रकृति पक्षी प्राप्त करते और की महत्वपूर्ण घटनाओं बनाने में सफल होते हैं।


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