कोई भी परिजन इस वर्ष इस श्रेय सौभाग्य से वंचित न रहें

December 1984

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विगत एक वर्ष में परिस्थितियों ने बड़ी तेजी से मोड़ लिया है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे परिवर्तन हुए हैं जिनके विषय में प्रत्यक्षवादी बुद्धिजीवी समुदाय को कभी अनुमान भी नहीं था। आने वाले दिन और भी विषम होंगे। तब सृजन की तैयारी के साथ-साथ जटिलताएँ, प्रतिकूलताएँ भी बढ़ती चली जाएँगी। प्रज्ञा परिजनों के लिये अखण्ड-ज्योति प्रतिपादन एक प्रकार की आत्मिक पोषण-अभिपूर्ति की भूमिका अपने जन्मकाल से निभाते चले आए हैं। विषमताओं के मध्य संकल्प बल बढ़ाने, दैनन्दिन जीवन में व्यावहारिक मार्गदर्शन देने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इस पत्रिका ने प्रारम्भ से ही उठायी व निष्ठा पूर्वक निभायी है। इसमें परिजनों का भी योगदान है जिन्होंने इस प्रतिपादनों को अन्य अनेकों तक पहुँचाकर पाठकों की संख्या लक्षाधिक पहुँचा दी है।

यह वर्ष पूज्य गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण साधना का वर्ष रहा है। उनकी लेखनी का प्रसाद जिस प्रकार परिजनों को मिलता रहा है, उसमें पिछले अन्य वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष विशिष्ट भूमिका निभाई है। यह क्रम रुकने वाला नहीं है, अनवरत चलेगा। साधना से सिद्धि के रहस्यों का उद्घाटन, मानवी अन्तराल में देवत्व का जागरण, संव्याप्त परिस्थितियों में आमूल-चूल परिवर्तन, सन्धिकाल की बेला में निभाए जाने वाले उत्तरदायित्वों सम्बन्धी मार्गदर्शन आगे उनकी मनीषा के माध्यम से ही प्राप्त होता रहेगा। प्रत्यक्षतः दर्शन देने का, परामर्श का क्रम जो पहले चलता था, उस पर अब पटाक्षेप पड़ चुका है। उनसे वार्तालाप करने, मार्गदर्शन पाने एवं संरक्षण अनुदान ग्रहण करने का माध्यम अब “अखण्ड-ज्योति” एवं “युग निर्माण योजना” ये दो ही पत्रिकाएँ हैं। जो परिजन जितने अधिक व्यक्तियों तक इस लेखनी प्रसाद को पहुँचाएँगे, वे प्रकारान्तर से पूज्यवर की वाणी एवं परोक्ष शक्ति सामर्थ्य के प्रसार-विस्तार के जन-जन तक इसे पहुँचाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। इस तरह उन्हें भी गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण साधना में सहभागी बनने का सौभाग्य मिलेगा।

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि व्यावहारिक अध्यात्मिक का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन देने वाली एवं परिवार- समाज- राष्ट्र निर्माण की दिशाधारा देने वाली इन दोनों पत्रिकाओं की तुलना में अन्य कोई विचारोत्तेजक साहित्य सामग्री इन दिनों और कोई है नहीं। प्रयास तो यह भी किया जा रहा है कि जहाँ हिन्दी मुख्य संपर्क भाषा नहीं है, वहाँ भी प्रज्ञा आलोक फैले। यदि बन पड़ा तो आगामी बसन्त से ही अन्यान्य भाषाओं में इस नवनीत का अनुवाद कर उन क्षेत्रों में मिशन की विचारणा को व्यापक बनाने का प्रयास किया जाएगा, जहाँ भाषा की कठिनाई के कारण यह सम्भव नहीं हो पाया है। गुजराती व उड़िया भाषा में तो इन पत्रिकाओं का सार प्रकाशित होता ही रहा है। इंग्लिश, बंगला, पंजाबी, तेलगू एवं तमिल ये पाँच अन्य ऐसी भाषाएँ हैं जिनमें विस्तार की असीम सम्भावनाएँ हैं।

परिजनों ने वर्ष 1984 में बढ़ी हुई सामग्री एवं बदले कलेवर में अखण्ड-ज्योति पत्रिका को देखा, सराहा एवं अपनी सम्मतियाँ केन्द्र को भेजी हैं। पाठ्य सामग्री में सम्मिलित कई नए विषयों की गुणवत्ता की प्रशंसा करते हुए लागत मूल्य में प्राप्त होने वाली इस सामग्री को बढ़े हुए चन्दे के साथ सभी ने सहर्ष स्वीकार किया है। आगामी वर्षों में इस सामग्री को और भी सरस, बोधगम्य बनाने का प्रयास किया जाता रहेगा एवं यथा सम्भव इसी वार्षिक मूल्य व कलेवर में परिजन पत्रिका को पाते रहेंगे। अब पत्रिका अड़तालीसवें वर्ष में प्रवेश कर रही है। ऐसी प्रौढ़ परिपक्व, ठोस एवं उच्चस्तरीय मार्गदर्शक प्रेरणाप्रद सामग्री का लाभ अन्य अनेकों को भी मिले, इसका प्रयास हर परिजन को करना चाहिए। नये ग्राहक बनाना व पुरानों से चन्दा वसूल करके शीघ्र भिजवा देना प्रारम्भ से ही पूज्य गुरुदेव के जन्मदिवस बसन्त पर्व की श्रद्धाँजलि के प्रतीक रूप में माना जाता रहा है। यह वर्ष तो कई कारणों से विशिष्ट भी है। चौबीस जीप गाड़ियाँ इन दिनों ढाई हजार कार्यक्रम सारे देश के ग्रामीण कस्बाई क्षेत्रों में सम्पन्न कर रही हैं। इससे मिशन का कार्यक्षेत्र बढ़ा है। नये संपर्क में आये सभी व्यक्तियों को पत्रिका की पाठ्य सामग्री से लाभान्वित करने का श्रेय प्राप्त करने का सबसे अच्छा अवसर यही है।

वर्ष 47 संस्थापक -वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य दिसम्बर 1984 वि.सं. आश्विन कार्तिक-2050 अंक-12 उपासना विशेषाँक वार्षिक चंदा :- भारत में 40/- आजीवन -550/- विदेश में 350/


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