लिंग परिवर्तन- एक सम्भावना

December 1984

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आस्ट्रेलिया के ग्रेटबेरियर रीफ सागर में चमकीली मछलियों की क्लीनर नामक प्रजाति होती है। इस देश में एक खास किस्म की मछली पाई जाती है- लेवरोइस। मादा मछलियाँ 3 मीटर और नर 5 मीटर तक लम्बी होती हैं। नर झगड़ालू प्रकृति के और मादा सौम्य प्रकृति की होती हैं। इनका प्रजनन क्रम ऐसा है जिसकी तुलना संसार भर के कदाचित ही अन्य किसी प्राणी से की जा सके। इनकी गणना उभय लिंगी प्राणियों में होती है। आरम्भ में वे सभी मादा होती हैं। जीवन का दो तिहाई भाग वे मादा के रूप में ही बिताती हैं। प्रौढ़ हो जाने पर वे ही नर बन जाती हैं और नर की भूमिका निभाती हैं।

नर एक हरम बनाता है जिसमें दस तक रानियाँ होती हैं। नर को हर समय चौकस रहना पड़ता है। कभी-कभी कोई दूसरा नर इस हरम पर धावा बोलकर जितनी हाथ पड़े उतनी झपट ले जाता है। कभी-कभी कुछ मनचली मादाएँ एक ही बाड़े में रहते-रहते ऊब जाती हैं और नये घर का आनन्द लेना चाहती हैं। दोनों ओर से रखवाली करना नर का काम है, पर वह इतनी बड़ी जिम्मेदारी अकेले नहीं निभा पाता। इस कार्य में एक मुखिया मछली उसका हाथ बँटाती है। नर के सुरक्षा कार्य में और कई बार युद्ध कार्य में उसे आगे बढ़कर हाथ बँटाना पड़ता है।

समयानुसार मादा मछलियाँ अण्डे देती हैं तो उनकी रखवाली में भी मादाओं की सहायता के लिये नर और मुखिया मिलकर सहायता करते हैं। मुखिया का चुनाव नहीं होता, वह आयु की बढ़ती हुई प्रौढ़ता के कारण अनायास ही युवराज का पद ग्रहण कर लेती है। नर का पौरुष जब तक काम देता है तब तक वह अपना पद सँभाले रहता है पर जैसे ही मुखिया मछली प्रौढ़ होती है यह मादाओं को दुलारने से लेकर धमकाने तक के तरीके काम में लाती है। साथ ही नर से प्रतिद्वन्द्विता करने लगती है। उसकी मनोवृत्ति में यह परिवर्तन होना इस बात का प्रमाण है कि वह नर का पद सम्भालने की तैयारी कर रही है। इन बदली हुई परिस्थितियों में उसकी नर जननेंद्रिय विकसित हो जाती है और मादा अंग सिकुड़कर लुप्त प्रायः हो जाते हैं।

कहा जाता है कि नर की प्रकृति अलग होती है- मादा की अलग। जो एकबार जिस प्रकार के प्रजनन अंगों में और स्वभाव में ढल जाता है वह वैसा ही बना रहता है, पर उपरोक्त मछली इसका अपवाद है। यह न केवल अपना लिंग बदलती है वरन् स्वभाव भी बदल लेती है। मनुष्यों में नपुँसक तो होते हैं, पर वे नपुँसक प्रजनन में सफल नहीं होते। एक ही शरीर में दोनों लिंग की सफल भूमिका निभा सकना प्रकृति का एक विशेष चमत्कार परन्तु अपवाद है।

द्विलिंगी जीव जन्तु कितने ही पाये जाते हैं, पर इस प्रकार की विचित्र परम्परा केवल इनल्डेण्ड्रीयरस जाति की मछलियों में ही पाई जाती हैं। उनमें न कोई पूर्णतया नर होती है और न मादा। आयु वृद्धि के साथ उनका कद और वजन भी बढ़ता है। इस प्रकार मुखिया राजकुमार बनाने की प्रतिद्वन्द्विता में जो आगे रहती है वह कुलपति कहलाती है और शेष कमजोर जैसी-तैसी जिन्दगी गुजारती रहती हैं।

इस विलक्षणता को देखते हुये अनुमान लगता है कि नर और मादा का वर्गीकरण स्थायी नहीं है। बदलती मनःस्थिति और परिस्थिति से उसमें उलट-पुलट होती रहती है। मनुष्यों में लिंग परिवर्तन होते रहते हैं। प्रवृत्ति बदल जाने पर अगले जन्मों में तो यह अन्तर सुदृढ़ भी हो सकता है।


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