विलक्षण प्रतिभाएँ- जिनका रहस्य कोई जान न पाया

December 1984

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मनुष्य का मस्तिष्क इस संसार की सबसे सामर्थ्यशाली कृति है जो विधाता ने बनाई है। इसकी समग्र सम्भावनाओं का पता तो क्या अनुमान लगाना भी कठिन है। वैज्ञानिकों के अनुसार मानव के स्मृति कोष में सौ अरब सूचनाएँ संग्रहित रखने की क्षमता होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि “एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका” के सम्पूर्ण खण्डों में जितनी सूचनाएँ रहती हैं, उससे भी पाँच सौ गुना अधिक सूचनाएँ एक वयस्क मानवी मस्तिष्क अपने अन्दर रख सकता है।

मस्तिष्क लगभग दस खरब न्यूटान कोशिकाओं से बना होता है। यदि एक कोशाणु की गिनती करने में एक सेकेंड का समय भी लगे तो सभी की गिनती करने में कुल 300 सदियाँ लगेंगी।

इसमें से बहुत थोड़ा अंश ही काम आता है। पर जो अंश काम करने लग जाय, वह चमत्कार दिखाता है जो अंश निष्क्रिय पड़ा रहे, उसमें मूर्च्छना छाई रहती है। पर जो सक्रिय हो उठे उसकी करामात देखकर दाँतों तले उँगली दबाना पड़ती है। ऐसा भी हो सकता है कि एक ही व्यक्ति के मस्तिष्क का थोड़ा-सा भाग विशेष जागृत या थोड़ा भाग सर्वथा ठप्प हो।

साधारणतः मस्तिष्क की सक्रियता-निष्क्रियता का मापन उसकी दक्षता दर्शाने वाले परीक्षणों के माध्यम से किया जाता है। इसमें आय.क्यू. (बुद्धि-लब्धि परीक्षण) एप्टीट्यूड, लर्निंग, मेमोरी इत्यादि आते हैं। किन्तु अपवाद रूप में कभी-कभी देखा जाता है, कि इन परीक्षणों में आय.क्यू. के कम होने पर भी मस्तिष्क का कोई एक केन्द्र विशेष जागृत होने से वह व्यक्ति असाधारण विभूति सम्पन्न बन जाता है। ऐसे कई घटनाक्रम प्रकाश में आए हैं, जिनमें व्यक्ति मानसिक दृष्टि से असामान्य प्रतिभाशाली निकले जबकि शारीरिक विकास उनका सामान्य से कम था।

न्यूयार्क, अमरीका के लेचवर्थ गाँव में चार्ल्स और जॉर्ज दो जुड़वा भाई सन् 1929 में पैदा हुए। दोनों भाई एक-दूसरे से अत्यंत मिलते-जुलते थे, किन्तु जब वे पैदा हुए तब उनका गर्भकाल पूरा नहीं हो पाया था। वे 3 माह पूर्व ही, अर्थात् जब वे छः माह के थे तभी माँ के पेट से बाहर आ गये। अतः उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें दो महीने तक ‘इन्क्यूबेशन’ की स्थिति में रखा गया। जब वे तीन साल के हुए तो डॉक्टरों ने उन्हें मानसिक रूप से कमजोर घोषित कर दिया और 9 वर्ष की अवस्था में उन्हें इसकी चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब उनके आई.क्यू. की जाँच की गई तो वह 60-70 के बीच पाया गया। आई.क्यू. का यह स्तर सामान्य से भी कम है। वे अपने अधिकाँश कामों में आई.क्यू. का उपरोक्त स्तर प्रदर्शित करते, किन्तु कार्यालयों में सन्देशवाहक के रूप में उनकी निपुणता व दक्षता देखते ही बनती थी।

न्यूयार्क स्टेट साइकियेट्रिक इन्स्टीट्यूट के डॉ. विलियम होरविज जब सन् 1963 में उन दोनों जुड़वा भाइयों से मिले तो उन्हें उनमें कुछ विलक्षणतायें नजर आयीं। इसकी जाँच के लिए उनने उनसे कुछ गणितीय सवाल पूछे पहला सवाल अत्यन्त सरल था। होरविज ने उन भाइयों से 20 में से 10 घटाने को कहा तो उनने प्रश्न को कठिन बताते हुए इसका उत्तर दे पाने में अपनी असमर्थता जाहिर की। इसी प्रकार कुछ अन्य छोटे-छोटे किन्तु सरल प्रश्न किये पर इनमें से किसी का भी उत्तर वे नहीं दे पाये। तब डॉ. विलियम होरविज ने कैलेण्डर गणना सम्बन्धी एक अत्यन्त कठिन सवाल पूछा। डॉ. होरविज ने उन भाइयों को एक जन्म तिथि बतायी और उनसे यह बताने को कहा कि उक्त व्यक्ति अपने अन्तिम जन्म दिन तक कितना समय गुजार चुका और आगामी जन्म दिन तक और कितना समय गुजार लेगा। दोनों भाइयों ने अपने विलक्षण मस्तिष्क द्वारा कुछ ही सेकेंडों में इस प्रश्न को हल कर दिया। यही नहीं वे गणना द्वारा कुछ ही क्षणों में यह बता देते थे कि उक्त तारीख किन-किन वर्षों में रविवार के दिन पड़ेगी अथवा उक्त वर्ष का कौन-सा महीना सोमवार दिन से आरम्भ होगा। दोनों ही भविष्य तथा भूत की गणनाओं को भी बड़ी सरलता से सेकेंडों में बता देते थे, यथा- सन् 7000 के अमुक सप्ताह के अमुक दिन में कौन-कौन-सी तारीख पड़ेंगी अथवा वर्तमान से 100 वर्ष पहले फलां सप्ताह के फलां दिन कौन-कौन सी तारीखें आयेंगी। यद्यपि उन्हें जुलियन अथवा जाँर्जियन कैलेंडर अन्तर का जरा भी ज्ञान नहीं था, फिर भी उनके उत्तर बिल्कुल सही होते थे, हाँ, उनके उत्तर को एक से दूसरे में परिवर्तित करने की आवश्यकता पड़ती थी, पर होते वे अत्यन्त सही थे।

अन्ततः डॉ. विलियम उन्हें अपने साथ न्यूयार्क ले आये जहाँ एक वर्ष तक उन पर गहन अध्ययन परीक्षण किया गया, तरह-तरह के कठिन सवाल पूछे गये, पर सभी का उत्तर वे सही देते। वहाँ जब कभी कोई सवाल उनसे पूछा जाता तो वे सर्वदा यही कहते पाये गये कि, “हाँ, मैं इसे हल कर सकता हूँ” अथवा “इसका उत्तर मेरे दिमाग में है।” जब उनकी विलक्षण क्षमता की जाँच मनोवैज्ञानिकों, मनःचिकित्सकों, एवं गणितज्ञों से करवाने के बाद डॉ. होरविज को यह स्वीकारना पड़ा- “हम लोगों के पास इस रहस्य का कोई जवाब नहीं है।”

सन् 1963 में डॉ. होरविज की ये जो दो पोंगा पण्डित हाथ लगे वे उस पूरी शताब्दी में अपनी जादुई गणना, जटिल मशीनों, व मॉडलों की विलक्षण डिजाइनों, अपनी आकर्षक कलाकारिता द्वारा धूम मचाते रहे किन्तु आश्चर्य की बात कि वे अधिकाँश सामान्य कार्यों में विफल होते देखे गये। “पोंगा पण्डित” की संज्ञा उनके अनुकूल नहीं है क्योंकि वस्तुतः ये जुड़वा भाई न तो मूर्ख ही थे न ही पण्डित-विद्वान, मूर्ख इसलिए नहीं, कि बड़े-बड़े वे कठिन सवालों को मिनटों में हल कर जाते और विद्वान इसलिए नहीं, क्योंकि छोटे-छोटे व सामान्य प्रश्नों में वे पिछड़ जाते। उनकी विलक्षण स्मरण शक्ति तथा एकाग्रता अब तक रहस्य बनी हुई है।

इन जुड़वा द्वय के पहले भी ऐसे अनेक विलक्षण मस्तिष्क वाले पैदा हो चुके हैं। इनमें से जदेदिया बक्सटन नामक एक व्यक्ति इंग्लैंड में पैदा हुआ। इसकी मस्तिष्कीय क्षमता जॉर्ज व चार्ल्स जैसी ही थी। यद्यपि इसने गणित कहीं नहीं पढ़ा, पर वह लम्बी-लम्बी जटिल गणनाएँ एक बार में दो-दो ढाई-ढाई महीने तक मानसिक रूप में करता रहता। एक बार जब उसे एक थियेटर में ले जाया गया तो वहाँ पर उसने लोगों को थियेटर के पात्रों द्वारा बोले गये संवादों में अक्षरों की सही-सी संख्या व नर्तकियों द्वारा नृत्य के वक्त चले गये कदमों की संख्या बताकर लोगों को अचम्भे में डाल दिया।

इन्हीं से मिलते-जुलते अद्भुत मानसिक क्षमता वाले एक व्यक्ति का उल्लेख डॉ. श्रीमती डी.सी. राइरन और एल.एच.स्नाइडर करते हैं। वे लिखते हैं कि सन् 1931 में उनके पास एक ऐसा रोगी आया जो चार अंकों वाली संख्या का वर्गमूल व छह अंकों की संख्या का घनमूल मौखिक रूप से क्रमशः चार सेकेंड एवं छः सेकेंड में निकाल लेता था।

यद्यपि अधिकाँश मस्तिष्कीय विलक्षणतायें व प्रतिभाएँ जटिल गणनाओं एवं तरह-तरह की गणितीय समस्याओं के क्षेत्र में ही दिखाई पड़ते हैं, ऐसे भी अनेक उदाहरण हैं जिनने दूसरे क्षेत्रों में ऐसी ही महारत हासिल की। इनमें एक हैं, 19वीं सदी में तहलका मचाने वाले, “जीनियस ऑफ अर्ल्सवुड एसिल्म” के नाम से जाने जाने वाले जे.एच.पुलेन। ‘दि ग्रेट इर्स्टन’ के नाम से प्रख्यात 10 फुट का विशालकाय जलयान का एक अत्यन्त जटिल डिजाइन। वे मॉडल उसने तीन वर्ष के अनवरत प्रयास द्वारा तैयार किया। इस्टर्न जलयान का पुर्जा-पुर्जा उसको पहले से ही तैयार डिजाइन एवं मॉडल के आधार पर अत्यन्त सावधानी पूर्वक बनाया गया। इसके अतिरिक्त पुलेन ने जलयान के फ्रेम में तख्तों को ठोकने के लिए काम आने वाली करीब सवा दस लाख टन लकड़ी की पिनों के निर्माण के लिए एक विशेष प्रकार की मशीन का निर्माण किया।

डॉ. मार्टिन डब्ल्यू. बार ने सन् 1898 में एक 22 वर्षीय एपिलेप्टिक रोगी का अध्ययन किया। उसके सामने ग्रीक, जापानी अथवा डेनिश भाषा में क्लिष्ट-से-क्लिष्ट अंश भी पढ़ा जाता हो वह तत्क्षण उसे हूबहू अन्दाज में दोहरा देता।

गोटफ्रीड माइन्ड भी इसी प्रकार की विलक्षण प्रतिभाओं में से एक था। उसकी बिल्लियों व बच्चों की आकर्षक तस्वीरों ने तत्कालीन यूरोप में खूब धूम मचा रखी थी। उसकी बनायी एक तस्वीर राजा जॉर्ज (छठे) ने भी खरीदी थी। इनके चित्र आज भी बर्लिन, ज्युरिक और बर्न के म्यूजियमों में लटक रहे हैं।

डॉ. होरविज द्वारा चार्ल्स और जॉर्ज की खोज से पहले, ऐसे विलक्षण क्षमता सम्पन्नों के बारे में लोगों की धारणा थी कि वह सिर्फ विभिन्न प्रकार के चित्रों को ही याद रख सकते हैं, इसके अतिरिक्त वे कोई अन्य विलक्षण कौशल नहीं दिखा सकते, किन्तु इन जुड़वा भाइयों ने इस मान्यता को खत्म कर दिया। सिद्धान्त के अनुसार जॉर्ज और चार्ल्स अपने मस्तिष्क में अंकित कैलेण्डर टेबल को सवाल हल करने के सिलसिले में उत्तेजित करते और कठिन-से-कठिन सवालों का हल मिनटों में प्रस्तुत करते। यह सही था कि जार्ज और बाद में चार्ल्स घण्टे-घण्टे भर पंचाँगों और कैलेण्डरों से उलझे रहते, पर जॉर्ज ही वर्तमान से 200-400 वर्ष आगे पीछे के सवालों को हल कर पाता। अब प्रश्न यह है कि यदि दुरूह गणितीय सवालों के हल जॉर्ज के मस्तिष्क में स्वतः उभर आते थे तो सामान्य प्रश्नों के हल जॉर्ज क्यों नहीं दे पाता था। जिसमें उसे सर्वदा असफल होते देखा गया।

यह भी कुछ समय तक आम मान्यता बनी रही कि विलक्षण मस्तिष्कीय क्षमता सम्पन्न व्यक्ति सामान्य रूप से सोच नहीं सकता। किन्तु इस मान्यता को तब गहरा आघात पहुँचा जब सन् 1970 में बोस्टन निवासी महिला हैरियट ने इस दिशा में अपने कौशल दिखाये। ‘हेरियट की प्राकृतिक संगीत क्षमता बहुत अद्भुत थी। वह किसी संगीत को सुन कर न सिर्फ उस संगीत-काल के बारे में बता देती, जिस काल में उसकी रचना हुई, वरन् उससे सम्बन्धित और अनेक स्तम्भित करने वाली बातें बताती। उदाहरण के लिए- वह पियानो पर किसी संगीतकार की धुन इस प्रकार बजाती मानों वह किसी दूसरे संगीतज्ञ द्वारा रचित हो, यथा- “हैपी बर्थ डे” की धुन को बदल-बदल कर भिन्न-भिन्न प्रकार से बजा सकती थी, वह इसे मोजार्ट, बीथोवन, स्क्यूबर्ट, डेबूसी, प्रोकोफीव, वेर्डो एवं अन्य संगीतज्ञों के अन्दाज में उस धुन को बजा सकने में समर्थ थी।

आविष्कारों की दुनिया में ग्राह्मबेल का ना प्रसिद्ध है जिन्होंने बीस वर्ष की आयु में अपने यन्त्र का आविष्कार कर मात्र 29 वर्ष की आयु में टेलीफोन का पेटेण्ट करा लिया था। इसी प्रकार वायुयान के आविष्कारक विल्वर राइट और ऑर्विल राइट जिन्हें राइट बम्धु नाम से जाना जाता है, बीस और तीस वर्ष की आयु के बची ही वायुयान बनाकर उस पर उड़ने का परीक्षण करने लगे थे। शक्ति चालित हवाई उड़ान धरने का लक्ष्य जब इन दोनों बन्धुओं ने निर्धारित अवधि में पूरा किया तो सारा संसार आश्चर्यचकित रह गया। तब आर्विल की आयु 32 वर्ष थी एवं विल्वर की मात्र 36 वर्ष।

ऐसे ही वैज्ञानिक आविष्कारों की बिरादरी में फ्रांसीसी ब्लेस पास्कल का अनोखा स्थान है। सन् 1642 की बात है। तब वह मात्र 19 वर्ष का था वे एक दुकान में मुनीम का काम करता था। उसकी सूझ-बूझ ने गणित की मशीन ज्यामिती के आधार पर बनाने की ठानी। घर पर कुछ ठोंक-पीठ उधेड़ बुन करता रहा और अन्ततः संसार का प्रथम परिकलन यंत्र बनाने में इतनी छोटी आयु में भी सफल हो गया।

मनुष्य की मस्तिष्कीय सामर्थ्य उसकी जिजीविषा पर निर्भर है जो सतत् मस्तिष्क को प्रसुप्त को जगाने हेतु उकसाती रहती है। जब तक वह जीवित है तब तक कालिदास के समान हर व्यक्ति में प्रतिभाशाली होने की सामर्थ्य विद्यमान है।


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