सर्पों में अधिकाँश भले होते हैं।

December 1984

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सर्प को सब लोग काल रज्जु के नाम से जानते हैं। चलती-फिरती मौत दीखता है। साँप को देखते ही होश उड़ जाते हैं। हक्का-बक्का हुआ आदमी भी साँप को एक प्रत्यक्ष संकट दीखता है। दोनों के बीच में भय की भयंकरता आ खड़ी होती है। इस भयंकरता के दबाव में ही कितने ही अपने प्राण खो बैठते हैं। कुछ सर्प दंशन से मरते हैं और कुछ आशंका कुकल्पना के शिकार बनकर अपनी धड़कन बन्द कर लेते हैं। हाथ-पैर सुन्न होते देर नहीं लगती।

संसार में छह इंच से लेकर 15 गज तक के चित्र-विचित्र साँप पाये जाते हैं। इनमें से सिर्फ 15 प्रतिशत जहरीले होते हैं। बाकी तो रस्सी का खिलौना जैसे कीड़े-मकोड़े जैसे प्रकृति के प्राणी मात्र होते हैं।

साँप के काटने से संसार भर के वर्ष भर में पन्द्रह इलाज आदमी मरते हैं। किन्तु आदमी एक साल में 50 हजार साँप मार डालता है। 15 हजार जहरीलों में से भी कितने काटने के लिए कुसूरमन्द थे, यह नहीं कहा जा सकता। साँप बेकसूरों को काटता है यह कहना बहुत अंशों में सही है। पर यह कथन और भी अधिक सत्य है कि अधिकाँश बेकसूर साँप डरे हुए आदमियों द्वारा मारे जाते हैं।

साँप शिकार को निगलता है। चबाने लायक उसके दाँत नहीं होते। छोटे साँप एक बार का निगला हुआ एक सप्ताह में पचा पाते हैं। बड़े साँप भी हिरन या बकरी जैसे बड़े शिकार पकड़ लेते हैं पाँच महीने में पचा जाते हैं। बाकी दिन वे ऐसे ही लोट-पोट करने में गुजारते हैं। कोबरा जैसे जहरीले और क्रोधी साँप भी तब हमला बोलते हैं, जब सामने से किसी छेड़छाड़ का खतरा देखते हैं। औसत साँप एक घण्टे में दो तीन मील की चाल से दौड़ सकता है। यदि होश हवाश दुरुस्त हो तो कोई भी दौड़ में उसे पीछे छोड़ सकता है। उसकी डरावनी सूरत अथवा काल रज्जु की मान्यता ही ऐसी है जो डरे हुए आदमी को खड़ा कर देती है ताकि वह मजे में उसे काटकर भाग जाय।

बुरे साँपों की अपेक्षा भले साँप अपेक्षाकृत अनेक गुने अधिक होते हैं। दक्षिण अमेरिका के रैड इण्डियनों का साल में एक दिन सर्प पर्व होता है। वे जहाँ भी साँपों का निवास समझते हैं वहाँ चावल लेकर निमन्त्रण देने जाते हैं। पत्थर की एक छोटी गद्दी उनका पूजा स्थान है। पर्व के दिन सैकड़ों सर्प उस पत्थर के आस-पास जमा हो जाते हैं। उन्हें रैड इण्डियन हाथ से पकड़कर बाहर निकालते हैं और मक्का के दाने से बनी हुई खीर खिलाते हैं। दिन भर यह क्रम चलता है। इस अविश्वसनीय दृश्य को देखने के लिए उस क्षेत्र के गोरे अपने ट्रकों और मोटर गाड़ियों में बैठ कर आते हैं। दिन भर दृश्य देखकर शाम को लौटते हैं। तब साँप भी विदा हो जाते हैं। दूसरे दिन ढूंढ़ने पर भी एक नहीं मिलता। यह पर्व सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है पर आज तक एक भी दुर्घटना नहीं हुई।

ग्रीक द्वीप सीफालोनिया में मार्कोपोलों एवं अर्जीनिया नामक गाँव के समीपस्थ होली स्नेक गिरजे में 6 अगस्त की निश्चित तिथि को, जो वर्जिन मेटी का दिन है बिना बुलाये ही सैकड़ों सर्प मरियम के चित्र का दर्शन करने आते हैं और 15 अगस्त, जो ईसामसीह का दिन है, तक वहाँ रहते हैं। मूर्ति के चरणों पर लौटते रहते हैं। दर्शकों में से कितने ही वहाँ आयें, वे उनमें से किसी की ओर ध्यान नहीं देते।

इस आश्चर्य पर उस देश में भी अविश्वास करने वाले कम नहीं हैं। इसलिए कुछ पूर्व इस दृश्य की एक फिल्म बनाई गई है, ताकि 10 दिवसीय इस आश्चर्यजनक दृश्य को अविश्वासी लोग भी देख सकें।

भारत में नाग पंचमी सर्दी का त्यौहार है। शेष नाग के फन पर पृथ्वी रखी हुई है, ऐसी मान्यता है। उस दिन सर्प का दर्शन शुभ माना जाता है। कहते हैं कि नाग पंचमी को कोई सर्प किसी को नहीं काटता। सर्पों से भय वस्तुतः अवास्तविक है। वे भी भले जीव हैं इस प्राणी जगत के ही एक अंग हैं।


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