संयम साधना (kahani)

December 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सन्त एकनाथ के साथ तीर्थयात्रा पर एक चोर भी चल पड़ा। साथ लेने से पूर्व सन्त ने उससे रास्ते में चोरी न करने की प्रतिज्ञा कराई।

यात्रा मण्डली को नित्य ही एक परेशानी का सामना करना पड़ता है। रात को रखा गया सामान कहीं से कहीं चला जाता। नियत स्थान पर न पाकर सभी हैरान होते और जैसे-तैसे जहाँ-तहाँ से ढूँढ़कर लाते।

नित्य की इस परेशानी से तंग आकर कारण की खोज शुद्ध हुई। रात को जागकर इस उलट-पुलट का वजह ढूँढ़ने का जिम्मा एक चतुर यात्री ने उठाया।

खुराफाती पकड़ा गया। सवेरे उसे सन्त एकनाथ के सम्मुख पेश किया गया। पूछने पर उसने वास्तविकता कही। चोरी करने की उसकी आदत मजबूत हो गई है। चोरी न करने की यात्राकाल में कसम निभानी पड़ रही है पर मन नहीं मानता तो तुम्बा पलटी- इधर से उधर सामान रख आने से उसका मन बहल जाता है। इससे कम में काम चल नहीं सका तो वह कौतूहल करने लगा।

सन्त एकनाथ ने मण्डली के साथियों को समझाया कि मन भी एक चोर है उसे बाहरी दबाव से एक सीमित मात्रा में ही काबू में रखा जा सकता है। आत्म सुधार तो हृदय परिवर्तन से ही सम्भव है और उसे स्वयं ही संयम साधना के आधार पर करना होता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118