ब्रह्मांड को परम सत्ता का शरीर रूप माना गया है एवं इसमें संव्याप्त चेतन सत्ताओं को उसी का एक घटक माना जाता है। मान्यता है कि जिस प्रकार सारे वृक्ष की सत्ता एक बीज में, मानवी सत्ता शुक्राणु में तथा पदार्थ की सत्ता अणु में छिपी होती है, उसी प्रकार इस निखिल ब्रह्मांड का संक्षिप्त संस्करण हर चेतन सत्ता में देखा जा सकता है। मानवी चेतन सत्ता के सूक्ष्म शरीर में पाँच कोश अवस्थित बताये गए हैं। आप्त वचनों के अनुसार क्रमशः अन्नमय कोश से विकसित होते-होते चेतना का ऊर्ध्वारोहण होता जाता है एवं आनन्दमय कोश की स्थिति में वह मुक्ति की स्थिति में पहुँच जाता है।
योगीराज अरविन्द ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से सारे ब्रह्मांड के विकास में व्यष्टि सत्ता का विकास मानते हुए समष्टि के भी पाँच भाग किए हैं। उनके अनुसार वनस्पति जगत एक विशेष योनि है जिसे हम ब्रह्मांड का अन्नमय कोश कह सकते हैं। प्राणी जगत इससे ऊँची योनि है जिसे ब्रह्मांड का प्राणमय कोश नाम दिया गया है। मनुष्य के अवतरण के रूप में मनोमय कोश विकसित हुआ है। सृष्टि के विकास की दृष्टि से सोचा जाय तो अभी तीन ही कोश सक्रिय हैं। चौथा विज्ञानमय कोश उन्होंने अति मानस की सत्ता के रूप में माना है जिसका अवतरण होना बाकी है। अन्तिम आनन्दमय कोश ब्रह्मांड के पूर्ण विकास की स्थिति होगी, मानव में देवत्व तथा धरती पर स्वर्ग का वातावरण होने से सतयुगी परिस्थितियाँ होंगी।
वस्तुतः योगीराज की विकासवाद की यह परिभाषा अपने में विलक्षण है एवं विज्ञान सम्मत है। पौधे-वनस्पति, पशु-पक्षी, मनुष्य ये तीनों इस जगत में एक साथ आए किन्तु उनका स्तर अलग-अलग था। मनुष्य स्वभावतः शाकाहारी है। उदर पूर्ति वह वनस्पति समुदाय से करता है। ब्रह्मांड के प्रथम कोश- अन्नमय कोश के रूप में इस प्रकार वनस्पति जगत ने स्थान लिया। पादप-वनस्पतियों में चेतना होते हुए भी हलचल नहीं होती, इसी कारण वे प्रारम्भिक योनि के स्तर पर माने गए।
प्राणियों में चेतना है- हलचल भी। दैनन्दिन जीवन के उदरपूर्णा एवं प्रजनन सम्बन्धी क्रिया-कलाप भी वे चलाते रहते हैं। प्राण विद्युत का स्थूल नियोजन भर कर पाने वाले इन जीवों- पशु पक्षियों को ब्रह्मांड का प्राणमय कोश माना गया। इससे ऊँची स्थिति तक वे पहुँच नहीं पाते।
श्री अरविन्द के अनुसार मानवी चेतना के अन्तराल में ही ब्राह्मी चेतना की परम सत्ता से अतिमानस का अवतरण होगा। तब सभी मनुष्य देवपुरुष होंगे। उनकी भावनाएँ उदात्त होंगी, वे संकीर्ण स्वार्थपरता, कुतर्कवाद, द्वेष-कलह, मनोविकारों से मुक्त होंगे एवं अन्ततः मोक्ष का द्वार खोलेंगे जो आनन्दमय कोश की स्थिति होगी।
सूक्ष्मीकरण प्रकरण में व्यष्टि सत्ता की चर्चा के अंतर्गत पाँच वीर भद्रों के रूप में पाँच कोशों की चर्चा स्थान-स्थान पर की गई है। ये हर व्यक्ति के अन्तराल में प्रसुप्त पड़ी चेतन जगत के भाण्डागार की बहुमूल्य निधि है, जिनकी जागृति हेतु साधना पुरुषार्थ का अवलम्बन लिया जाता है। अभी हम चेतना के बोध के तीन आयामों को ही जान पाये हैं। समष्टिगत स्तर पर ब्राह्मी चेतना के पाँच आयामों की जानकारी इसी कारण हमें विलक्षण लगने लगती है। योगी दिव्य दृष्टि सम्पन्न होते हैं। योगीराज अरविन्द ने मानवी विकास की जिन पाँच योनियों का वर्णन ब्रह्माण्डीय पंचकोशों के रूप में किया है, वह एक अभूतपूर्व किन्तु यथार्थ प्रतिपादन है। जिस दिन मानव अति चेतना, अति मानस की स्थिति को प्राप्त कर लेगा, वह चतुर्थ आयाम में पहुँच जाएगा। प्रस्तुत सन्धिकाल मानवी सत्ता के अति मानवी सत्ता में हस्तान्तरित होने का संक्रान्ति काल है। आनन्दमय कोश की स्थिति, मानव में देवत्व के जागरण की स्थिति इसी का उत्तरार्ध है जो नियन्ता द्वारा निर्धारित मानव के विकास का चरम बिन्दु है।