ईरान और तुर्की में लम्बी लड़ाई चली। असंख्यों हताहत हुए। इसी बीच किसी तरह सन्त फरीरुद्दीन तुर्कों के हाथ पड़ गये। उन पर जासूसी का इल्जाम लगाया गया और फाँसी की सजा सुना दी गई। सन्त उन दिनों अत्यधिक लोकप्रिय थे। जन-जन उन्हें प्यार करता था। बचाने के लिए कई उपाय किये गये। धनिकों ने कहा- हम उनके बराबर सोना दे देंगे। सन्त को छोड़ दिया जाय। इस पर भी तुर्क तैयार न थे। वे उन्हें मारने पर उतारू थे।
अन्त में ईरान के बादशाह ने सन्त को छुड़ाने के बदले अपना सारा राज्य तुर्कों को देने का प्रस्ताव रखा। सन्त की गरिमा काम कर गई। लड़ाई बन्द हो गई और सन्त भी वापस लौट आए।