इस सुन्दर दुनिया को बर्बाद न करें

December 1984

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परमात्मा को सौंदर्य का भण्डार ओर आनन्द का समुद्र कहते हैं। क्यों? इसलिए कि उसने इस विश्व को बनाने में असीम श्रम किया है और अपनी कलाकारिता का परिचय दिया है। यदि वह कुछ भी न बनाता तो कदाचित ही कोई उसे जान पाता।

सृष्टा परमेश्वर का बड़ा भाव-भरा नाम है क्योंकि उसने सृष्टि को सृजा। कितनी सुन्दर है उसकी यह कलाकृति जिसे ध्यान पूर्वक देखने से पुलकन होती है। सृजन किसी की शक्ति और गरिमा का सबसे बड़ा चिन्ह है। जिसने इस संसार में जितने महान निर्माण कार्य किये हैं उन्हें उतना ही सराहा जाता है।

छोटा-सा बया पक्षी एक-एक तिनका बीन कर जहाँ-तहाँ से लाता है। क्रमबद्ध रूप से मनोयोग पूर्वक संजोकर एक सुन्दर घोंसला बनाता है। वह स्वयं उसमें सुखपूर्वक रहता है, गर्व से सिर उठाता और चहचहाता है। उसे देखने भर से दर्शकों की बाँछें खिल जाती हैं। संसार का हर सुन्दर सृजन ऐसा ही आनन्ददायक और सराहनीय होता है। सृष्टा का गुणगान करने में सबसे बड़ी उसकी यह विशेषता है कि कैसी सुन्दर दुनिया उसने बनाई। कैसे अद्भुत प्राणियों की संरचना उसने की। कैसे फूल खिलाये और कैसे हरे-भरे पेड़ पौधे उगाये।

मनुष्यों में सराहनीय वे हैं जिनने उपयोगी सृजनकर दिखाये। रचनाओं में जिसने कला और सौंदर्य का समावेश कर दिखाया। जो बोता है, उगता है और हरियाली का माहौल बनाकर दिखाता है। उसे सराहनीय कृतियों के लिए सदा याद रखा जाता है।

शैतान बदनाम है। क्यों? इसलिए कि वह बने को बिगाड़ता है। बिगड़े का सर्वनाश कर दिखाता है। मनुष्यों में से ऐसे लोगों की कमी नहीं जिन्हें शैतान कहा जा सके और उनकी शैतानी के लिए उन्हें धिक्कारा जा सके।

बिगाड़ना सरल है। माचिस की एक तीली से समूचे गाँव को स्वाहा किया जा सकता है, किन्तु उसे बनाकर खड़ा करना टेढ़ा काम है।

सृष्टा के इस सुन्दर सृजन को कुरूप या बर्बाद कर देना तीली जैसी नाचीज आदमी के लिए भी सम्भव है। किसी विद्वान की हत्या करना कठिन काम नहीं है। किन्तु बुद्धिमान सृजनशील बनने या बनाने में कितना श्रम और समय लगता है इसे वही जानते हैं जिन्हें वैसा करना पड़ा है।

मनुष्यों में कितने ही ऐसे हैं जिन्हें शैतान की तरह बिगाड़ना ही आता है, जो सुन्दर को कुरूप करने में सिद्ध हस्त हैं। पर उन्हें स्मरण कौन रखे? सराहेगा कौन? कितनों ने अपने लिए यही व्यवसाय चुना है कि बर्बादी में लगे रहें और जो कुछ इस दुनिया में अच्छा दीखता है उसे तोड़-फोड़कर विस्मार करते रहें।

जो लोग एक सुन्दर तितली नहीं बना सकते, वे ऐसा क्यों करते हैं कि बतखों के झुण्ड का शिकार खेलें और विनोद को क्रन्दन में बदल दें। जो लोग एक चींटी नहीं बना सकते वे हाथियों के बच्चों को बर्बाद करने की योजनाएँ क्यों बनाते हैं। जो जिन्दगी भर में एक सच्चा दोस्त नहीं बना सकते वे आये दिन जानी दुश्मनों के गिरोह अपने लिए क्यों तैयार करके खड़े रखते हैं।

छोटे बच्चों के मिट्टी के खिलौने तोड़ डालने पर वे कितने मचलते हैं और तोड़ने वाले से बदला लेने के लिए किस तरह दौड़ते हैं। ईश्वर की कलाकृतियों को जो बिगाड़ने भर का ताना-बाना बुनते रहते हैं उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि वे ऐसा अनर्थ करते हैं जिसका दुष्परिणाम उन्हें भुगतना ही पड़ेगा। एक भला आदमी बनाने में कितनों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, फिर जो बुरी शिक्षा देने, बुरे बढ़ाने ओर बुरे कृत्य करने- कराने में लगेंगे, उन्हें आत्मा-परमात्मा और विश्वात्मा का कोप भाजन बनना ही पड़ेगा।


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