वसन्त पर्व जिस उत्साह से इस बार मनाया गया उसे सराहनीय और सन्तोषजनक ही कहा जा सकता है। आयोजन के साथ मिली प्रेरणा को शिथिल न हो जाने दिया जाय, वरन् उसे अधिक श्रद्धा और तत्परता के साथ विकसित किया जाय।
वसन्त अपना नया वर्ष है। पिछले कार्य का लेखा-जोखा लेने और आगामी कार्य पद्धति निर्धारित करने के रूप में ही इस पर्व का गुरुदेव ने अवलम्बन लिया था। और अब वही परम्परा हम लोगों की है।
हमें आगे के लिये अपने परिवार को अधिक विस्तृत, अधिक संगठित एवं अधिक प्रशंसित करने का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर उठाना चाहिये। क्योंकि उस समर्थ संघ शक्ति के आधार पर ही नव-निर्माण के, मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण के लक्ष्य को पूरा कर सकना सम्भव होगा।
युग निर्माण परिवार के सक्रिय सदस्य वे हैं जो एक घंटा समय और दस पैसा ज्ञान यज्ञ के लिए नियमित रूप से देते रहने का व्रत लेते हैं, यह क्रम अनवरत रूप से चलता रहे, इसलिये इस प्रयोजन के लिए ज्ञान घटों की स्थापना उनके लिए अनिवार्य कर दी गई है। ऐसे सदस्य जहाँ दो चार होते हैं वहाँ भी शाखा तो बना दी जाती है पर उसे पौधा ही माना जाता है। कुछ कहने लायक काम होने की आशा तो उन्हीं से की जा सकती है, जहाँ कम से कम 10 सक्रिय सदस्य हों। 24 सदस्य होने पर समर्थ शाखा मानी जाती है। यह संगठन अगले वर्ष हमें पूरे उत्साह से आगे बढ़ाना है और अगला वसन्त आने तक परिवार का कम से कम दूना कर देने के प्रयास में उत्साहपूर्वक लग जाना चाहिए। अगले वर्ष की यह प्रमुख योजना है।
बिहार प्रान्त में एक किसान था-हजारी। उसने अपने खेतों में आम्र वृक्ष लगाये। दूसरों को प्रोत्साहन तथा सहयोग देकर गाँव-गाँव बाग लगवाये। उस क्षेत्र में दस वर्ष के भीतर एक हजार बाग लग गये। इन वृक्षों की लकड़ी, छाया, प्राणवायु, हरीतिमा, पल्लव, पुष्प एवं फूलों से असंख्य मनुष्यों, पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों ने भारी लाभ उठाया। हजारों किसानों की प्रेरणा से लगे हजार बागों की सर्वत्र सराहना हुई और उस इलाके को ‘हजारी बाग‘ नाम दिया गया। उस किसान का यह ऐसा स्मारक है जिस पर हजार ताज महल निछावर किये जा सकते हैं।
हम में से प्रत्येक को हजारी का अनुकरण करना चाहिए और युग-निर्माण परिवार के सक्रिय सदस्यों रूपी कल्पवृक्ष लगाने चाहिए। आम्र वृक्ष केवल भौतिक शरीरों को ही सुख पहुँचाते हैं पर युग-निर्माण विचारणा से प्रभावित परिजन तो असंख्य मनुष्यों का भावनात्मक कायाकल्प करके उन्हें नर-रत्न बनाते हैं। स्वयं अपने प्रकाश से दूर-दूर तक का क्षेत्र प्रकाशित करते हैं। स्वयं तरते हैं और दूसरों को तारते हैं। इन्हें कल्प-वृक्ष ही कहना तनिक भी अत्युक्ति नहीं है।
हम टोलियाँ बनाकर निकलें। वसन्त पर्व पर जिनने भी उत्साह दिखाया हो उनसे मिले। नया जन-संपर्क बढ़ायें। मिशन का उद्देश्य और स्वरूप समझायें। जहाँ युग-निर्माण परिवार का संगठन नहीं है वहाँ बनायें। जहाँ कम सदस्य हैं वहाँ दस पूरे करें। जहाँ अधिक है वहाँ 24 सदस्यों की समर्थ शाखा बनायें। दस सदस्यों वाली शाखा उपवन (बगीची) चौबीस सदस्यों वाली शाखा उद्यान (बाग) मानी जायगी। ‘हजारी’ की तरह हम जुट पड़ें तो कुछ ही दिनों में कल्पवृक्ष के पौधे, उपवन और उद्यान लगाकर दिखाये जा सकते हैं। वसन्त पर्व के बाद अब इसी के लिए हमारी भावना, श्रद्धा एवं तत्परता नियोजित होनी चाहिए।