राहगीर यहाँ ललचाई आँखों से मत देख। यह सराय है। तेरा घर तो बहुत दूर है। लम्बी मंजिल चल कर ही वहाँ तक पहुँचेगा।
यह सराय एक रात विश्राम के लिए है। सो यहाँ भले मानस की तरह प्रवेश कर-शालीनता के साथ रह और सज्जनता के साथ अपना रास्ता पकड़।
भूल गया-भुलक्कड़। ऐसी कितनी सरायों में ठहर चुका और आगे लम्बी मंजिल पार करने में अभी और कितनी ऐसी ही सरायों में ठहरना पड़ेगा। ललचाने की आदत छोड़। मुसाफिर यदि ठहरने की सुविधा को ही पर्याप्त न मान कर सराय पर अधिकार जताने लगे तो उस मूर्खता की भर्त्सना ही होगी। कुछ हाथ थोड़े ही लगेगा।
सराय वाले को धन्यवाद दे कि जिसने एक रात ठहरने के लिए तेरे लिये व्यवस्था बनाई। सुविधापूर्वक रहा-चैन की नींद सोया, सुविधाओं को भोगा, सेवकों से सहायता प्राप्त की। इतना मिल गया, बहुत है। सन्तोष कर, प्रसन्न हो, कृतज्ञ बन और शान्ति के साथ अगले पड़ाव की तैयारी कर।
गड़बड़ मत फैला, पलंग मेरा, कमरा मेरा, रसोई घर मेरा, बर्तन मेरे, कर्मचारी मेरे, सराय मेरी, मालकी मेरी। मैं ही सबका मालिक, यह सारी मेरी सम्पत्ति। इस पागलपन को छोड़। कोई सुनेगा तो क्या कहेगा? रातभर ठहरने वाला मुसाफिर सराय पर अपनी मालिकी जताता है। समझाने पर मानता नहीं। मेरी-मेरी ही कहे चला जाता है। सराय तेरी कैसे हो सकती है। यह बनाने वाले की है। यहाँ के कर्मचारी तेरी सम्पत्ति कैसे हो सकते हैं। इनका अपना अस्तित्व है। इन्हें खिलाने सँभालने वाला दूसरा है। मूर्ख, बेकार की बकवास मत कर, सुनने वाले सुन लेंगे तो तेरी बुरी दुर्गति बनायेंगे।
बगीचा देख लिया सो ठीक, फूल, सूँघ लिये तो ठीक, पर यह तेरे नहीं है, तेरे लिए नहीं है। दूसरों की तरह तू भी देखले, सूँघले और इतनी देर तक मोद मनाने के सौभाग्य को सराहता हुआ आगे बढ़।
तेरा घर दूर है। उसकी मंजिल लम्बी है। अपनी मंजिल के मील गिन-चलने को कमर कस, रास्ते का जल-पान का प्रबन्ध कर और हल्का-फुल्का होकर चल। सराय की चीजें उठा कर चलेगा तो उसके बोझ से तेरी गरदन-टूट जायेगी, फिर कोई ले जाने भी क्यों देगा।
नेक मुसाफिर की तरह यहाँ रह-जब तक ठहरना है भलमनसाहत बरत-हँस और हँसा। प्यार दे और ले। छोड़ सके तो एक ऐसी याद छोड़ जा जो सराहना के साथ पीछे वालों के मन में उठती रहे। ले जा सके तो यहाँ वालों की श्रद्धा और सद्भावना लेता जा। लेने और छोड़ने को इतना ही काफी हैं। परदेशी मोह का जाल मत बुन। यहाँ न कोई तेरा है-न तू किसी का। रेन-बसेरे में कितने आते हैं-रात ठहरते हैं-दूसरे दिन चले जाते हैं। रातभर हँस बोल लिए-मिलजुल कर रह लिये, यही क्या कम है। मैं उसका वह मेरा-इस ममता में बँधेगा तो रोना और रुलाना ही पल्ले बँधेगा। मत रो, मत रुला, हँसते हुए जा-हँसाता हुआ जा-इसी में तेरी गरिमा है।
मोह नहीं-प्यार का। मोह में बंधन है-प्यार में मुक्ति। मोह अधिकार माँगता है-प्यार कर्तव्य तक संतुष्ट रहता है। असंतोष छोड़ सन्तोष कर।
मन चले, मचलना छोड़। जिस दुकान पर खिलौने देखे वहीं मचल गये। जिस दुकान पर मिठाई देखी अड़ गये, इस बचपन से क्या बनेगा। यह मेला है। यहाँ सब कुछ अनोखा ही अनोखा है। देख और मोद मनाता हुआ घर की राह ले। यह जलपरी का बगीचा है-एक से एक बढ़कर फूल खिले हैं। देखने और खुश होने के लिए हैं।
छूना और तोड़ना सख्त मना है। गलती करने वाले को सख्त सजा भुगतनी पड़ती है। मुसाफिर अपनी मंजिल को याद रख-सफर के उद्देश्य को मत भूल। सरायों में ठहरता हुआ आगे बढ़ता चल। लालच किया और अधिकार जमाया तो बुरी तरह मारा जायगा।