स्वर्गीय चितरंजन दास ने महात्मा गान्धी की प्रेरणा से अपनी बहुत भारी आमदनी की वकालत छोड़ दी और देश का काम करने लगे।
एक दिन बापू ने उन्हें सिगरेट पीना छोड़ देने का भी इशारा किया तो उन्होंने तत्काल उस गहरी जमी आदत को भी छोड़ दिया और कहा-बापू, मैं आपका कच्चा शिष्य नहीं। सिगरेट तो क्या आपके इशारे पर प्राण भी छोड़ सकता हूँ।
निरन्तर रहती थी। उनके स्वर्गवास पर साम्राज्ञी को भारी पीड़ा हुई है। इस आघात से इन दिनों वे बहुत दुर्बल हो गई हैं।
शरीर त्याग के बाद भी आत्माओं का अस्तित्व बना रहता है। यदि संपर्क का उपयुक्त माध्यम बन सके तो उनके साथ घनिष्ठ संपर्क ही नहीं वरन् आशाजनक सहयोग भी प्राप्त किया जा सकता है। इस तथ्य की प्रामाणिकता में असंख्य उदाहरणों के साथ ब्रिटेन के राज्य परिवार का विश्वास भी एक कड़ी की तरह जुड़ा हुआ है।