“इस संसार में स्वभाव से कोई भी पुरुष किसी भी पुरुष के प्रति न तो उदार होता है, न कोई किसी के प्रति दुष्ट होता है। संसार में मनुष्य के अपने कार्य ही उसको गुरुता अथवा लघुता पर पहुँचा देते हैं। (अर्थात्) उत्तम कार्यों से ही मनुष्य महान बन जाता है, और अधम तथा निकृष्ट कार्यों से लघु बन जाता है। जो जैसा कार्य करता है वैसा बन जाता है।”
-हितोपदेश