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March 1972

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हमें कल्पना शक्ति प्रकृति प्रदत्त है और इसी शक्ति से हम दृश्य जगत के अन्धकार को प्रकाशमय बना सकते हैं। बद्ध एवं चिन्तन से मिश्रित कल्पना भौतिक अन्वेषणकर्ता का सर्वाधिक शक्तिशाली यन्त्र है।

-जे0 टिन्डल

अपना सूर्य, अपनी मन्दाकिनी आकाश गंगा का एक छोटा सा तारा है। ऐसे लगभग 1 खरब तारे उसमें गुँथे हुए हैं और अपने सूर्य की तुलना में 60 हजार गुने तक बड़े हैं। इनकी दूरी का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि यदि कोई प्रकाश की गति से-एक सैकिण्ड में 1,86,000 मील की चाल से-चले तो उसे अपनी आकाश गंगा में सबसे निकटतम तारे पर पहुँचने के लिए प्रकाश गति से 4 वर्ष लगेंगे और दूर वाले पर पहुँचने के लिए 80 हजार वर्ष चलना पड़ेगा। ऐसी-ऐसी असंख्य आकाश गंगाएं इस अनन्त ब्रह्माण्ड में बिखरी पड़ी हैं। उनकी परिधि और सीमा की कल्पना कर सकना भी मानवी बुद्धि से बाहर की बात है।

कोई समय था जब समझा जाता था कि सृष्टि का केन्द्र यह पृथ्वी ही है। यह स्थिर है और सूर्य चन्द्र तथा तारे इसके आस-पास घूमते हैं। तब धरती को चौकोर या चपटी समझा जाता था। कुछ इसे स्वर्गादपि गरीयसी मानते रहे। कुछ ने माना उसे जन्म-मरण के कुचक्र में बाँधने वाला भव सागर।

दार्शनिक फिरसौदी ने उसे असीम सौंदर्य की देवी कहा और बताया है कि यदि स्वर्ग कहीं है तो इस धरती पर ही है।

वैज्ञानिक भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि यह धरती अन्य ग्रह नक्षत्रों की तुलना में अत्यधिक सौभाग्यशाली है। इसकी सूर्य से दूरी तथा कला इतनी उपयुक्त है कि उससे प्राणियों का जन्म, ऋतु अनुकूलता तथा अगणित शोभा, सुविधा का सृजन सम्भव हो सका। यह स्थिति अन्य ग्रह नक्षत्रों की नहीं है। उनका तापमान, शीतमान इतना भयंकर है कि जीवन की सम्भावना का कोई लक्षण नहीं दीखता।

चूँकि हम इस धरती पर रहते हैं और निकटवर्ती वस्तु की शोभा, उपयोगिता न दीख पड़ती है, न समझ में आती है। उसे देखने समझने के लिए दूरी का अन्तर होना चाहिए। अपोलो 11 अन्तरिक्ष यान के यात्रियों ने दूर से इस धरती की शोभा को देखा तो वे गदगद हो उठे। उन्होंने उस सौंदर्य की अभिव्यक्ति को अनिर्वचनीय और अकल्पनीय बताया।

अब पृथ्वी भूतकाल के ज्योतिषियों की मान्यता के अनुरूप स्थिर नहीं है। वह एक नहीं कई चाल चलती है। पृथ्वी की कुछ चालें पहले से ही विदित थी। पृथ्वी सूर्य मण्डल की परिक्रमा एक वर्ष में पूरी करती है। वह अपनी धुरी पर 24 घण्टे में घूम लेती है। सूर्य-पृथ्वी समेत अपने सौर मण्डल को साथ लिये-महासूर्य की परिक्रमा के लिए दौड़ा जा रहा है। इनके अतिरिक्त पृथ्वी की एक और गति का पता चला है। जिसे ‘थिरकन’ कह सकते हैं।

पृथ्वी की अक्ष और उसके सिरे अपने स्थान में फेर बदल करते रहते हैं। 14 मास में यह विचलन 72 फीट तक होता रहता है।

पिछली शताब्दियों के खगोल वेत्ता जेम्स ब्रंडले और मौलीनो ने यह आशंका व्यक्त की थी कि ध्रुव अपना स्थान बदलते हैं उसका कारण पृथ्वी की एक गति ‘थिरकन’ भी हो सकती है।

ऐसा क्यों होता है, इसके कारणों की खोज करते हुए कई तथ्य सामने आये हैं। अक्ष की विस्थापना, ध्रुव प्रदेशों में बर्फ का पिघलना, समुद्रों की विशाल जल राशि का भटकाव भूगर्भ के तप्त लावे का उद्वेलन और पुनर्वितरण जैसे कारण इस थिरकन के सोचे गये हैं।

तथ्यों का सही निरूपण करने के लिए इंटर नेशनल पोलर योशन सर्विस (अन्तर्राष्ट्रीय ध्रुव चलन सेवा) की ओर से उत्तरी ध्रुव के चारों और 4 डिग्री अक्षाँश पर पाँच वेधशालाएं स्थापित की गई हैं। और उनमें व्यवस्थित रूप से शोध कार्य हो रहा है। यह वेधशालाएं (1) भिजुसावा (जापान) में (2) समर कन्द के निकट ‘केताब’ में (3) इटली के निकट सार्डीनिया के कार्लोफोर्ते में (4) अमेरिका के गैदर्जवर्ग तथा (5) यूक्रिबा स्थानों में कार्य संलग्न हैं। रात्रि के छः घण्टे आकाश निरीक्षण के आधार पर इनमें कार्य होता है और निष्कर्ष भिजुसावा केन्द्र में भेज दिया जाता है। इन सभी वेधशालाओं के यन्त्रों की सम्वेदनशीलता में कोई दोष उत्पन्न न होने देने के लिए


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