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March 1972

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सद्गुण स्वास्थ्य है और दुर्व्यसन रोग।

-पेट्रार्च

वहाँ का तापमान न बढ़ने देने की कठोर व्यवस्था है। रात्रि में अति मन्द रोशनी, सर्दियों में हीटर तक न जलाना, खिड़कियाँ खुली छोड़ना, कार्यकर्त्ताओं की शारीरिक गर्मी तक बाहर न आने देने जैसी अनेकों सावधानियाँ बरती जाती हैं।

सोचा जाता है कि जिस प्रकार शारीरिक हलचलों का प्रभाव मन पर पड़ता है ऐसे ही पृथ्वी की स्थूल हलचलों का प्रभाव उसकी मनःस्थिति पर पड़ता होगा और उसका हृदय आन्दोलन इस प्रकार थिरकने की गति धारण करता होगा।

ब्रह्माण्ड विस्तार की तरह मनुष्य की चिन्तन परिधि बढ़ती जा रही है। उसकी क्षमताओं का विकास हो रहा है। संपर्क, संबंध, अपनत्व और उत्तरदायित्व भी इसी प्रकार बढ़ रहा है। हमें उसे समझना चाहिए और अपने मनः क्षेत्र को उस विस्तार को स्वीकार कर सकने योग्य उदात्त दृष्टिकोण से युक्त करना चाहिए।


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