राजा क्वाग ने अपने राज्य का प्रधानमंत्री सुन शू आओ को तीन बार बनाया और तीन बार निकाला, फिर भी उनके चेहरे पर न कभी खुशी देखी गई न उदासी। वे शान्त चित्त से अपने कामों में लगे रहे।
विद्वान कीन बू ने इस अपरिवर्तनशीलता का कारण पूछा।
शू आओ ने कहा-इसमें मेरा क्या बना-बिगड़ा जो मैं उत्तेजित होता।
जब मुझे मंत्री बनने को कहा गया-तो मैंने सोचा उसे अस्वीकार करना ठीक नहीं।
-जब वह पद छिना तो मैंने सोचा जहाँ जरूरत नहीं वहाँ चिपके रहना बेकार है।
-मन्त्री पद ने मेरा कुछ बनाया नहीं उसके न रहने से मेरा कुछ बिगड़ा नहीं। मैं जहाँ था वहाँ का वहीं मौजूद हूँ। - फिर वह सम्मान जो मिला, मेरा था या कुर्सी का?
-यदि कुर्सी का था तो उससे मुझे क्या लेना देना?
यदि वह मेरा सम्मान था तो उसमें कुर्सी के रहने न रहने से क्या अन्तर पाया?
कीन बू का समाधान हो गया। और वे समझ गये कि किस मनःस्थिति का मनुष्य हर हालत में खुश रह सकता है।