चुम्बकत्व व्यक्ति और विश्व का आधार

March 1972

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एक दूसरे का आकर्षण ही मनुष्य समाज को परस्पर बाँधे हुए हैं और उसे समुन्नत बनाने में सहयोग कर रहा है। व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति आकर्षण ही प्रेम के रूप में बदलता रहता है और सहयोग का पथ-प्रशस्त करता है। सच्ची मित्रता जहाँ लौकिक दृष्टि से हर दृष्टि से उपयोगी और पारस्परिक अपूर्णताओं को पूर्णता में बदलने वाली होती है वहाँ उसका आत्मिक लाभ भी है। आत्माओं का गहन स्तर पर मिलन एक ऐसे आह्लाद का सृजन करता है जिसकी तुलना संसार की किसी भी सुविधा के कारण मिली हुई प्रसन्नता के साथ नहीं की जा सकती। प्रेम को मानव-जीवन का रस और सार कहा है। उल्लास इस तत्व के अतिरिक्त और कहीं है ही नहीं। पदार्थों में भी यदि कभी कुछ प्रिय लगता है तो वैसा तभी होता है जब उसके साथ ममत्व जुड़ जाय। परायाधन या उपेक्षा भाव रहने से कोई वस्तु कितनी ही अच्छी क्यों न हो अपने लिए तनिक भी उत्साह प्रदान न कर सकेगी।

भावनात्मक क्षेत्र में जिस आकर्षण को ‘प्रेम’ कहते हैं वही प्रकारांतर से समस्त जड़ चेतन में संव्याप्त है। सौर मण्डल के ग्रह उपग्रह सूर्य के साथ उसकी चुम्बकीय शक्ति से बँधे हैं। आकाश गंगा के साथ सौर मण्डल बँधा है। महासूर्य का ध्रुव केन्द्र समस्त आकाश गंगाओं को अपने साथ जोड़े हुए है। सारा ब्रह्माण्ड परस्पर मजबूत रस्सों से बंधा है, उसे चुम्बकत्व ही कहना चाहिए। मानव समाज ही नहीं ब्रह्माण्ड व्यापी ग्रह नक्षत्रों को भी आकर्षण विशेष की शृंखलाओं में प्रकृति ने जकड़ कर रखा है तभी वह यथास्थान टिका हुआ है और यथाक्रम चल रहा है।

जिस धरती पर हम रहते हैं उसके अन्तरंग और बहिरंग समस्त क्रियाकलाप उसके कण-कण में सन्निहित आकर्षण शक्ति पर ही अवलम्बित हैं। पृथ्वी एक बड़ा चुम्बक है। उसकी चुम्बकीय किरणें निरन्तर हर जड़-चेतन को प्रभावित करती रहती है। समुद्र में आने वाले ज्वार-भाटों के पीछे इसी शक्ति का आकर्षण विकर्षण काम करता है। शरीर के कोषाणुओं का निर्माण, परिवर्तन और क्रिया-कलाप गतिशील रखने में यह पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति ही प्रेरक है। इतना ही नहीं हमारा प्रत्येक कीटाणु एक छोटा चुम्बक है जो वायुमण्डल में लहराते हुए शक्ति तत्व की फ्रीक्वेन्सी (आकृति) ग्रहण करते हैं। उनके वाइब्रेट और आसीलेट क्रिया-कलाप इस चुम्बकीय क्षमता के कारण ही चलते हैं। मनुष्य शरीर में इस चुम्बकीय शक्ति का परिचय कहीं भी अनुभव किया जा सकता है। बालों में कंघी कीजिए उस कंघी को लोहे की पिन से स्पर्श कराइये। चुम्बकीय गुण तत्काल प्रत्यक्ष होगा।

यों यह चुम्बक तत्व न्यूनाधिक मात्रा में समस्त भूमण्डल के दृश्य और अदृश्य पदार्थों में भरा पड़ा है पर उसको अधिक स्पष्ट और सशक्त चुम्बक के नाम से पहचाने जाने वाले पत्थर से लोहे में देखा जाता है। प्राकृतिक रूप से वह शिला खण्डों में यत्र-तत्र पाया जाता है। लोहे में विद्युतधारा का प्रवेश कराने से कृत्रिम चुम्बक भी बन जाता है। शोधकर्ताओं का कथन है कि सर्वप्रथम अब से ढाई हजार वर्ष पूर्व-किसी मैगनस नामक गड़रिये के नाम पर उसे ‘मैगनेट’ कहा जाने लगा।

जो हो ‘चुम्बक’ एक अति उपयोगी शक्ति है। कल-कारखानों यन्त्रों में उसकी उपयोगिता अत्यधिक बढ़ती जाती है। यदि चुम्बक का प्रयोग शक्य न रहे तो लगभग आधे कल-कारखाने बन्द करने पड़ें और रेडियो ट्राँजिस्टरों का तो अस्तित्व ही शेष न रहें।

चुम्बक की आवश्यकता जहाँ यन्त्र उपकरणों में है वहाँ उसकी उपयोगिता शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के संरक्षण में भी कम नहीं है जिस प्रकार आयुर्वेद के हिसाब से शारीरिक संतुलन वात, पित्त, कफ के ऊपर टिका हुआ है। तिब्वी में जिस प्रकार आबी, वादी, खाकी का बोल बाला है, उसी प्रकार विद्युत विज्ञान वेत्ता शरीरगत चुम्बकीय क्रिया-कलाप को देखते हुए यह कहते रहे हैं कि अंग विशेष में इस चुम्बकीय तत्व की न्यूनाधिकता हो जाने से रोगों की उत्पत्ति होती है और यदि उसके अभाव की पूर्ति एवं विकृति की निवृत्ति कर दी जाय तो रुग्णता से छुटकारा पाया जा सकता है। बायोकेमिकल विज्ञान में बारह लवणों की कमीवेशी से रोगों की उत्पत्ति मानी जाती है और उन क्षारों को देह में पहुँचाकर चिकित्सा की जाती है ठीक उसी प्रकार चुम्बक विज्ञान के ज्ञाताओं का कथन है कि शरीर का सारा क्रिया-कलाप ‘विद्युतमय’ है। उसकी सक्रियता चुम्बकीय आधार पर खड़ी है। वही जीवन का सबसे बड़ा आधार है। रुग्णता का कारण इस विद्युत प्रवाह में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाना ही है। रोगों का निवृत्ति में चुम्बकीय उपचार-दवादारु से कहीं अधिक कारगर हो सकता है। इसी आधार पर इलेक्ट्रोपैथी का एक स्वतन्त्र चिकित्सा विज्ञान खड़ा किया गया है।

शोधकर्ता चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति को नवीन आविष्कार नहीं मानते वे कहते हैं यह विधान प्राचीन लोगों को भली प्रकार मालूम था और वे इसे रोग निवारण के लिए चिरकाल से प्रयुक्त करते रहते हैं। यूनान के चिकित्सा साहित्य में इस उपचार की विस्तृत प्रक्रिया मौजूद है। पन्द्रहवीं शताब्दी में स्विट्जरलैण्ड के चिकित्सक फिलिप्स आरोलस पेरासेल संस ने चुम्बकीय उपचार से कष्ट साध्य रोगों की चिकित्सा करने में भारी सफलता और ख्याति प्राप्त की थी। मिश्र, चीन, यूनान आदि देशों में भी इसी प्रकार के प्रयोगों का प्रचलन रहा है।

मनुष्य का आन्तरिक चुम्बकत्व प्रेम, शिथिल पड़ जाने पर सारा संसार रूखा, नीरस, स्वार्थी, कर्कश और बेतुका प्रतीत होता है उसे छोड़कर कहीं नीरव सुनसान में भाग जाने को मन करता है। और यहाँ सब कुछ ऐसा उलझा बेतुका लगता है कि आत्महत्या करने को जी करता है। आस्था खोकर-हिप्पी दर्शन अपनाने के लिए कदम उठाते हैं-न कोई अपना न हम किसी के वाली दृष्टि तभी उपजती है जब अन्तःकरण में प्रेम का निर्झर सूख जाता है। यह स्थिति मानव-जीवन में कितनी विषम और कितनी भयंकर है इसे प्रेम शून्य हृदयरूपी मरघट की एक झाँकी निकट से लेने पर ही जाना जा सकता है। अगणित मनोविकार तो इस स्थिति में उठ खड़े होते ही हैं। शारीरिक रुग्णता भी धर दबोचने में पीछे नहीं रहती।

बीमारियों के उपचार में परिचर्या और चिकित्सा का भी स्थान है। पर यदि चुम्बक चिकित्सा की व्यवस्था हो जाय, उस प्रयोजन को पूरा करने वाले अस्पताल खुल जायँ तो संसार में से आधी शारीरिक और मानसिक रुग्णता समाप्त होने में देर न लगे। प्रेम, सहानुभूति, सद्भाव, ममत्व की कुछ बूँद पाने पर किसी को भी नव-जीवन संचार का अनुभव हो सकता है। अमृत की चर्चा बहुत होती रहती है। धरती पर यदि अमृत का रसास्वादन करना हो तो सच्चे हृदय से निकली हुई गहरी सहानुभूति ही अमृत का प्रयोजन पूरा करती दिखाई पड़ेगी। उसे पाकर मृतक को जीवन मिल सकता है और सूखे पर हरियाली छा सकती है। रोगों का बहुत बड़ा कारण स्नेह, सहानुभूति से वंचित जीवन ही है। विटामिनों और प्रोटीनों का अभाव नहीं। यदि स्नेह सद्भाव की चुम्बक चिकित्सा का प्रबन्ध इस दुनिया में हो सका होता तो न जाने कितने कराहते व्यक्तियों के चेहरों में मुसकान अठखेलियाँ करती दिखाई देतीं।

पृथ्वी की तरह चुम्बक में भी दो ध्रुव होते हैं। शरीर भी एक मैगनेट ही है उसमें भी दो ध्रुव हैं। मस्तिष्क में उत्तर ध्रुव का काम-जीवाणु क्रिया का नियन्त्रण और दक्षिणी ध्रुव का काम शक्ति परीक्षण करना है। दोनों के सम्मिलन से विविध शक्तिधाराओं का प्रादुर्भाव होता है और फिर उसका प्रभाव विविध विधि काम-क्रिया कलापों को गतिशील करता है।

जब कहीं इस चुम्बकीय क्षमता में न्यूनता, दुर्बलता अथवा विकृति उत्पन्न होती है और अवयवों की संचार व्यवस्था गड़बड़ा जाती है-जिस प्रकार बत्ती, पंखे, रेडियो में करेण्ट कम पड़ जाने से वे मन्द या बन्द हो जाते हैं वही गति शारीरिक अवयवों की होती हैं। कहीं तार ‘शाट’ हो जाय तो वहाँ चिनगारियाँ उड़ने लगती हैं और यदि उन्हें देर तक सम्भाला न जाय तो अग्निकाण्ड जैसी विभीषिका उत्पन्न होती है। उसी प्रकार यह विद्युतीय विकृति शरीर में असह्य एवं कष्ट-साध्य पीड़ाएं उत्पन्न कर देती है और मृत्यु का कारण बन जाती है।

प्रकृतिगत चुम्बकीय प्रवाहों की प्रतिक्रिया भी शरीरों को प्रभावित कर सकती है और भीतरी गड़बड़ न होने पर भी बाहर के प्रभाव स्वास्थ्य को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं यह भी उनका कहना है।

रोगों के घटाने-बढ़ाने में चुम्बकीय शक्ति का कितना हाथ हो सकता है इस संदर्भ में पिछले दिनों शरीर शास्त्री बहुत प्रयोग करते रहे हैं। अमेरिका के डॉक्टर हैराल्ड एस॰ एलेक्जेंडर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि चुम्बकीय उपचार से कैंसर सरीखे भयावह रोगों पर नियन्त्रण किया जा सकता है, हंगरी के डॉक्टर जीन वारनोथी ने भी चुम्बकीय उपचार पर लम्बी शोध की है। उनका यह शोधकार्य “बायोमैग्नेटिक रिसर्च फाउण्डेशन” के तत्वावधान में चला और परिणामों की विस्तृत रिपोर्ट ‘मेडीकल वर्ल्ड न्यूज’ में प्रकाशित हुई। इसमें कितने ही ऐसे मनुष्य और पशु रोगियों की चर्चा है जिन पर किये गये वह मैगनेटिक उपचार आशाजनक रीति से सफल हुए। इस प्रक्रिया में चुम्बक के उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव के हेर-फेर से उत्पन्न परिणामों का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि स्थिति के अनुरूप इस ध्रुवीय सामर्थ्य का उचित नियोजन ही अभीष्ट सफलता प्रदान करता है।

अब तक आहार व्यवहार को ही आरोग्य का एकमात्र आधार माना जाता था। मिनिरल, विटामिन, प्रोटीन आदि को ही स्वास्थ्य के उत्थान-पतन का कारण माना जाता था पर अब शोधें यह प्रमाणित कर रही हैं कि कुछ सूक्ष्म कारण भी ऐसे हैं जो अप्रत्यक्ष होते हुए भी प्रत्यक्ष पोषणों से कहीं अधिक उपयोगी एवं आवश्यक हैं इनमें चुम्बकत्व की पोषक शक्ति को अब अधिक महत्व मिलने लगा है। अविवाहित युवा लड़कियों को मूर्छा मृगी सरीखे मानसिक रोग हो जाते हैं। इनमें उनकी शारीरिक और मानसिक चुम्बकीय भूख ही प्रधान कारण होती है।

युवा लड़कों में खीज, आवेश, उद्दण्डता, आक्रोश, अवज्ञा जैसे मनोविकार फूटते हैं। शरीर में भी युवा और युवतियों में कई तरह के रोग उठते देखे गये हैं। यह उनकी उसी अदृश्य भूख और अतृप्ति के कारण होते हैं जिसे साथी सहचर की आवश्यकता कह सकते हैं। दाम्पत्य जीवन में शारीरिक और मानसिक चुम्बकत्व का जो आदान-प्रदान होता है उसके कारण अस्वस्थता से बचने और स्वास्थ्य संवर्धन का पथ प्रशस्त होता है। काम-सेवन की नहीं-सान्निध्य सामीप्य और सहानुभूति की महत्ता है।

अभीष्ट प्रकार का यह चुम्बकत्व जिसे भी उपलब्ध होगा वह न केवल शारीरिक वरन् मानसिक दृष्टि से भी परिपुष्ट होता चला जायगा। रोगी की चिकित्सा में दवा-दारु उतना काम नहीं करती जितना चिकित्सक का व्यक्तित्व। चरित्रवान सहृदय, उदार और सद्भाव सम्पन्न चिकित्सक अपनी मधुरता बखेर कर ही रोगी का आधा कष्ट दूर कर देते हैं। साधु-सन्त धूनी की राख भस्म देकर कई बार कीमती दवाओं से भी अधिक अच्छी चिकित्सा कर देते हैं यह उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व और सद्भाव सम्पन्न अन्तःकरण का ही प्रभाव होता है।

अमेरिका की ‘फेट’ पत्रिका के जुलाई 64 अंक में-जोसेफ एफ गुडवेज का एक लेख छपा है जिसमें चुम्बकीय उपचार में निष्णात डॉ0 मेकलीन द्वारा असाध्य रोगों को अच्छा करने के अनेक उदाहरणों का उल्लेख है। चिकित्सक महोदय 64 वर्ष के होते हुए भी 45 वर्ष से अधिक के नहीं लगते। वे प्रतिदिन 3600 गाँस चुम्बकीय शक्ति का लाभ अपने शरीर को देते हैं।

हार्वर्ड डी0 स्टेंगल ने चुम्बकीय शक्ति के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी सर्वसाधारण तक पहुँचाने पर बहुत बल दिया है। उन्होंने कितने ही लेख लिखकर स्वास्थ्य संवर्धन में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति को चुम्बकीय क्षमता से परिचित होने का आह्वान किया है। डॉक्टर फ्रंगनिस विक्टर ब्रोसाइस का अस्पताल यों ऐलोपैथी के आधार पर था पर वे चुम्बक उपचार पर ही अधिक ध्यान देते थे और कहते थे यह पद्धति हानि रहित भी है और शीघ्र फलदायक भी।

मानसिक रोगों के उपचार में यह पद्धति अभी भी सर्वोत्तम सिद्ध हुई है, पागलों और अर्ध विक्षिप्तों के मस्तिष्क में ‘इलेक्ट्रिक शाक देने की व्यवस्था प्रायः सभी मस्तिष्कीय अस्पतालों में मौजूद है। हलके मानसिक रोगों में चुम्बकीय छड़ के दक्षिणी ध्रुव को भ्रू मध्य भाग में रखने से लाभ होते देखा गया है। इससे नींद न आने की व्यथा में भी लाभ होता है। स्मरण शक्ति को तेज करना और एकाग्रता का बढ़ना भी इन प्रयोगों द्वारा सम्भव है। हृदय की धड़कन घटाने-बढ़ाने में भी यह प्रयोग कारगर सिद्ध होते हैं। रक्तचाप भी इन प्रयोगों से वैज्ञानिक परीक्षण के समक्ष सिद्ध करके डॉक्टर के हेलाल ने चिकित्सा शास्त्रियों का ध्यान विशेष रूप से उस ओर आकर्षित किया है।

डॉक्टर मैस्कर अपने मैस्मरेजम विज्ञान को एक स्वतन्त्र शास्त्र ही बना गये हैं। उनने प्रतिपादित किया है कि चुम्बकीय शक्ति न केवल शारीरिक मानसिक रोगों को दूर कर सकती है बल्कि प्रसुप्त ‘अतीन्द्रिय’ क्षमता को प्रशस्त करने में भी समर्थ है। उसके आधार पर मनुष्य परोक्षानुभूतियों की दिव्य-शक्तियों से सम्पन्न हो सकता है और मानसिक संस्थान को न केवल रोग मुक्त वरन् प्रतिभा सम्पन्न भी बना सकता है। उन्होंने पाषाण अथवा धातुगत चुम्बक की अपेक्षा मानवीय शरीर में विद्यमान विद्युत शक्ति को अधिक स्वच्छ, प्रभावी और अन्तःस्तल की गहराई तक प्रवेश कर सकने वाली सिद्ध किया है।

चुम्बक उपचार की महत्ता शरीर शास्त्री प्रतिपादित कर रहे हैं, वे इस प्रयोजन के लिये बिजली के उपकरणों में आगे बढ़ रहे हैं। इससे रोग निवारण में अपेक्षाकृत अधिक सफलता मिलने की आशा की जाती है। यह तथ्य सही है। सम्भावना यही है कि अगले दिनों चिकित्सा क्षेत्र में चुम्बक एक नया और प्रभावशाली तत्व बनकर प्रवेश करेगा।

मानसोपचार की दृष्टि से केवल झटका देने वाली बिजली का ही उपयोग पर्याप्त नहीं उसमें इस सद्भावना सम्पन्न और उच्च व्यक्तित्व के साथ सम्बद्ध सचेतन विद्युत चुम्बक का भी समावेश होना चाहिए। स्नेह और सहानुभूति का विद्युत प्रवाह जब पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होगा और उसकी पर्याप्त मात्रा हर किसी को मिलने लगेगी तब न केवल शारीरिक और मानसिक विकृतियाँ समाप्त होंगी वरन् सामाजिक वातावरण भी ऐसा बनेगा जिसमें सर्वत्र स्नेह, और सहयोग की गतिविधियाँ बिखरी पड़ी रहेंगी और हर कोई उल्लास और उत्साह से भरा होगा।

चुम्बकत्व ग्रह नक्षत्रों को बाँधे हुए है। धरती के सारे क्रिया-कलापों का संचार कर रहा है। आरोग्य का आधार है, यह चुम्बकत्व यदि स्नेह सद्भाव की भावनात्मक परिधि में प्रवेश कर सका तो इसी धरती पर स्वर्गीय परिस्थितियाँ समुत्पन्न होंगी।


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