अन्दर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है

March 1972

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अन्दर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है। अन्तर को घटाकर जीवन को बाहर से बनाना, सजाना ठीक उसी प्रकार की क्रिया है जैसे कोई विद्यार्थी किसी प्रश्न के मूल उत्तर को छोड़कर उसकी भूमिका के बल पर परीक्षा पास करना चाहता है।

मनुष्य जीवन की बाह्य बनावट उसे कब तक साथ देगी। जो कपड़े अथवा जो प्रसाधन यौवन में सुन्दर लगते हैं, यौवन ढलने पर वे ही उपहासास्पद दीखने लगते हैं। मनुष्य को जीवन का शृंगार ऐसे उपादानों से करना चाहिए जो आदि से अन्त तक सुन्दर बने रहें और मनुष्य को आकर्षक बनाये रहें।

मनुष्य जीवन का वह अक्षय शृंगार है, आन्तरिक विकास। हृदय की पवित्रता एक ऐसा प्रसाधन है जो मनुष्य को बाहर भीतर से एक ऐसी सुन्दरता से ओत-प्रोत कर देता है जिसका आकर्षण न केवल जीवन पर्यन्त अपितु जन्म-जन्मान्तरों तक सर्वदा एक सा बना रहता है।

-अश्विनीकुमार दत्त


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles