अल्लाह की मर्जी से ऊपर अपनी मर्जी नहीं रखनी चाहिए

March 1972

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कारुँ को अल्लाह ने बहुत बड़ा खजाना दिया और कहा इस दौलत को वह नेकी में खर्च करे।

कारुँ इस दौलत को पाकर फूला न समाया, उसने बिरादरी वालों से कहा-देखो मेरा हुनर मैं हूँ जो कमाता हूँ और उड़ाता हूँ।

लोग क्या कह सकते हैं, कारुँ उस दौलत को वे हिसाब उड़ाता रहा और राग रंग करता रहा।

बहुत दिन बीत गये। खजाना खर्च होता रहा। अल्लाह ने उसे देखा और बहुत दुःख माना।

ऐसा हुआ कि जमीन हिली और कारुँ का मकान मय बची दौलत के उसमें धँस गया। बेचारा चिल्लाया बहुत पर उसे कहीं से मदद न मिल सकी। और खुदा के कहर से निजात न पा सका।

कारुँ की तरह हुनरमन्द बनने की उधेड़ बुन में लगे हुए लोगों ने अपना इरादा बदल दिया और कस्द किया कि हमें अल्लाह की मर्जी से ऊपर अपनी मर्जी नहीं रखनी चाहिए।


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