हम अन्य प्राणियों को भी बौद्धिक उत्कर्ष में सहयोग प्रदान करें

March 1972

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ज्ञान अनायास ही किसी को प्राप्त नहीं हो जाता। प्रयत्न, परिश्रम, इच्छा और परिस्थिति के आधार पर उसे पाया और बढ़ाया जाता है। मनुष्य को बुद्धिमान कहा जाता है; पर यह बुद्धिमता सापेक्ष है। ग्रहण करने का-समझने का तन्त्र दूसरे प्राणियों की अपेक्षा विकसित भले ही हो पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि ज्ञान पर उसी का पूर्ण अधिकार है। यदि दूसरे प्राणियों को भी अवसर और साधन मिलें तो वे भी विकासोन्मुख हो सकते हैं और क्रमशः आगे बढ़ते हुए आज की अपेक्षा कहीं आगे पहुँच सकते हैं।

कुत्ते को अपनी श्रेणी के दूसरे जानवरों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान माना जाता है। उसने यह स्थिति अकस्मात ही प्राप्त नहीं कर ली। मुद्दतों से वह मनुष्य का साथी बनकर रहता चला आया है। कुछ तो मनुष्य ने अपनी आदतों और आवश्यकताओं के अनुरूप उसे ढाला है। कुछ वह अपने अन्नदाता का अनुग्रह पाने के लिए स्वयं ढला है। संयोग और परस्पर आदान-प्रदान ने उसे इस स्थिति में पहुँचाया है। जंगली कुत्ते अभी भी योरोप के कई देशों में झुण्ड के झुण्ड पाये जाते हैं। नस्ल उनकी भी लगभग वैसी ही है पर स्वभाव में जमीन आसमान जितना अन्तर। पालतू और जंगली कुत्तों की शकल भले ही मिलती-जुलती है आदतों में जरा भी साम्य नहीं होता। पालतू बिल्ली और जंगली बिल्ली में भी यही अन्तर मिलेगा। पालतू बिल्ली ने मनुष्यों की आदतों को पहचान कर अपने को बहुत कुछ अनुकूलता के ढाँचे में ढाला है। जबकि जंगली बिल्ली बिल्कुल जंगली ही बनी हुई है। इसे शिक्षण प्रक्रिया का श्रेय कहना चाहिए।

भारत के अतिरिक्त अफ्रीका आदि देशों में ऐसे कई बालक भेड़ियों की माँद में पाये गये हैं जो उन्होंने खाये नहीं, पाल लिये। इन बालकों को जब बड़ी उम्र में पकड़ा गया तो उनमें मनुष्य जैसी कोई प्रवृत्ति न थी। वे चारों हाथ-पैरों से भेड़ियों की तरह चलते थे। कच्चे माँस के अतिरिक्त और कुछ खाते न थे, आवाज भी उनकी अपने पालन करने वालों ही जैसी थी। अन्य आदतों में भी उन्हीं के समान। ज्ञान ग्रहण का माद्दा बेशक उनमें रहा होगा पर परिस्थितियों की अनुकूलता के अभाव में उसका विकास सम्भव ही न हो सका।

दूसरी और अल्प विकसित पशु-पक्षी समुचित शिक्षण प्राप्त करके ऐसे करतब दिखाते हैं जिन्हें देख कर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। मदारी लोग रीछ, बन्दरों को सिखाते हैं और उनके तमाशे गली, मुहल्लों में दिखाकर लोगों का मनोरंजन करते हुए अपनी जीविका कमाते हैं, सरकसों में सिखाये-सधाये शेर, हाथी, घोड़े, ऊँट, बकरे, रीछ, बन्दर आदि ऐसे कौतुक करते हैं जैसे मनुष्य भी कठिनाई से ही कर सके। इससे यही सिद्ध होता है कि शिक्षा का-शिक्षक का-शिक्षा पद्धति का महत्व असाधारण है। उसके द्वारा अल्प बुद्धि या बुद्धिहीन तथा उपयोगी बनाया जा सकता है और जंगली आदतों वाले जानवरों को सभ्यता अनुशासन तथा जानकारी की दिशा में अधिक शिक्षित किया जा सकता है। लगभग हर प्राणी में ज्ञान प्राप्त कर सकने की मूल प्रवृत्तियाँ मौजूद हैं मनुष्य का कर्त्तव्य है कि उन्हें भी अपना छोटा भाई माने और बौद्धिक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने में सहयोग प्रदान करें।

प्रसन्नता की बात है कि इस दिशा में अब अधिक ध्यान दिया जा रहा है और विभिन्न पशु-पक्षियों को इस योग्य बनाने में प्रयत्न किया जा रहा है कि वे अधिक बुद्धिमान बन सकें और मनुष्य के लिए अधिक सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हो सकें। जर्मनी के मुन्स्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रेन्स तथा उनकी सहयोगी कुमारी उकर इस विषय में बहुत दिनों से अनुसन्धान कर रहे हैं और पशुओं को प्रशिक्षित करने की विधियों का आविष्कार करने में निरत हैं।

मलाया में पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की बिल्ली ‘सियेट’ तथा ‘मंगूस’ नाम के एक अन्य पशु को उन लोगों ने प्रशिक्षित करने में बड़ी सफलता पाई। वे रंगों की भिन्नता तथा दूसरी कई बातों में प्रवीण हो गये।

कोहलर ने पक्षियों को गिनती सिखाने तथा वस्तुओं की भिन्नता स्मरण रखने में शिक्षित कर लिया। वे शब्दों का भावार्थ भी समझने लगे।

प्रोफेसर सन्स की छात्रा ‘सियेट’ निरन्तर रुचिपूर्वक पढ़ती रही और करीब 30 प्रकार के पाठ पढ़ कर उत्तीर्ण होती रही। उससे 34 हजार बार प्रयोग कराये गये जिसमें वह 70 से लेकर 84 प्रतिशत तक सफल होती रही। प्रोफेसर महोदय ने अपनी पुस्तक में उपरोक्त बिल्ली को पढ़ाने और उसकी भूल सुधारने की विधियों पर विस्तृत प्रकाश डाला है।

हाथी को दिखाई देने वाली वस्तु और सुनाई देने वाली ध्वनियों का सही तरीके से विश्लेषण करना नहीं आता पर वह इशारे समझने में बहुत प्रवीण है। संकेतों के आधार पर उसे भविष्य में बहुत आगे तक प्रशिक्षित किया जा सकेगा और उसे मनुष्य का उपयोगी साथी, सहायक बनाया जा सकेगा। बन्दर के बारे में भी ऐसी ही आशा की जा सकती है। उसकी चञ्चल प्रकृति और अस्थिर मति को सुधारा जा सकता है और मानव परिवार में कुत्ते की तरह, उपयोगी जीव की तरह सम्मिलित किया जा सकता है।

कुत्ते का भौंकना सुनकर उसका मालिक यह आसानी से बता सकता है कि उसके चिल्लाने का मतलब क्या है। भूख, प्यास, थकावट, शीत, गुस्सा, चेतावनी आदि कारणों को लेकर भौंकने के स्वर तथा स्तर में जो अन्तर रहता है उसे पहचान लेना कुछ कठिन नहीं है। कुत्ते की भाषा मनुष्य समझता हो सो बात ही नहीं है। कुत्ते भी मनुष्य की भाषा समझ सकते हैं। अभ्यास कराने पर उन्हें 100 शब्दों तक का ज्ञान कराया जा सकता है और उन आदर्शों के आधार पर उन्हें काम करने के लिए अभ्यस्त किया जा सकता है। 60 शब्द समझने तक में तो अभी भी कई कुत्ते सफलता प्राप्त कर चुके हैं। शब्द के साथ-साथ उसके कहने का विशेष ढंग और भाव मुद्रा का स्वरूप मालिक को भी सीखना पड़ता है। कानों से बहरे लोग सामने वाले के होठों का सञ्चालन तथा मुखाकृति का उतार-चढ़ाव देखकर लगभग आधी बात पकड़ लेते हैं। उसी प्रकार कुत्ते को आदेश देते समय, मात्र शब्दों का उच्चारण ही काफी नहीं वरन् मालिक को अपना लहजा, अदा और तरीका भी शब्द के साथ मिश्रित करके आदेश की एक नई शैली का आविष्कार करना पड़ता है। कुत्ते को ऐसी ही भाव और शब्द मिश्रित भाषा से ही आज्ञानुवर्ती बनाया जा सकता है।

कुत्ते रास्ता चलते बीच-बीच में पेड़-पौधे, खम्भे आदि पर बार-बार पेशाब करते चलते देख गये हैं। इस आधार पर वे अन्य साथियों को उस मार्ग से गुजरने की सूचना देते हैं। यह मूत्र गन्ध उस क्षेत्र पर उस कुत्ते के आधिपत्य की सूचना देती है और लौटते समय उसी रास्ते का संकेत देती है।

लन्दन चिड़ियाघर के अधिकारी डॉ0 डंसमंड मारिस का कथन है कि कुत्ते का दुम हिलाना, उसके मनोभावों के प्रकटीकरण से संबंधित है। विभिन्न मनःस्थितियों में उसकी पूँछ अलग-अलग ढंग से हिलती है। उसे समझा जा सके तो स्काउटों की ‘झण्डी संकेत पद्धति’ के अनुसार कुत्ते के मनोभावों को समझा जा सकता है।

कुत्ते में एक अद्भुत क्षमता निकटवर्ती भविष्य ज्ञान की है। वे ऋतु परिवर्तन की पूर्व सूचना दे सकते हैं और कई बार तो दैवी विपत्तियों की पूर्व सूचना भी देते हैं। कुछ समय पूर्व लिन मॉडल के डेवन प्रदेश में विनाशकारी बाढ़ आई थी। जिसमें भारी धन जन की हानि हुई। दुर्घटना से 4 घण्टे पूर्व सारे नगर के कुत्तों ने इकट्ठे होकर इस बुरी तरह रोना शुरू किया कि लोग दंग रह गये और तंग आ गये। जब बाढ़ आ धमकी तब समझा गया कि कुत्तों का इस प्रकार सामूहिक रूप से रोना विपत्ति की पूर्व सूचना के लिए था।

बिल्लियाँ भी कुत्तों से पीछे नहीं। मस्तिष्कीय सक्षमता की दृष्टि से वे कई बातों में और भी आगे हैं। उन्हें सिखा पढ़ाकर उपयोगी बनाया जाना अन्य छोटे पशुओं की अपेक्षा अधिक सरल है।

पशुओं में ज्ञान के मूल तत्व ही विद्यमान नहीं हैं वरन् उनमें भावों की अभिव्यक्ति का भी माद्दा है। टूटी-फूटी उनकी भाषा भी है, जिसके आधार पर वे अपनी जाति वालों के साथ विचार-विनिमय कर सकते हैं। इस भाषा को और अधिक विकसित किया जा सकता है। इस विकास के आधार पर मनुष्य के साथ अन्य प्राणियों के विचार विनिमय का द्वार भी खुल सकता है।

वैटजेल नामक एक प्राणी प्रेमी ने सन् 1801 में कुत्ते, बिल्ली तथा कई पक्षियों की भाषा का एक शब्द कोष बनाया था। फ्राँस निवासी द्यूपो नेमर्स ने कौओं की आवाज पर एक पुस्तक प्रकाशित की थी। योरोप के कई विश्वविद्यालय इस सम्बन्ध में अपना अनुसन्धान कार्य कर रहे हैं इनमें केम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एक ‘शब्दकोष’ तो लगभग तैयार भी हो चला है।

‘चिंपैंजी इंटेलीजेंस एण्ड इट्ज वोकल एक्सप्रेशन’ पुस्तक लेखक द्वय श्री ईयर्कस और श्रीमती लर्नेड ने चिंपैंजी बन्दरों की लगभग 30 ध्वनियों का संग्रह और विश्लेषण करके एक प्रकार से उनका भाषा विज्ञान ही रच दिया है।

हर हर मन फ्रेबुर्ग ने अपनी पुस्तक ‘आउट ऑफ अफ्रीका’ में ऐसे अनेक संस्मरण लिखे हैं जिसमें गोरिल्ला और मनुष्य के बीच बात-चीत-भावों का आदान-प्रदान और सहयोग संघर्ष का विस्तृत परिचय मिलता है। साधारणतया जानवर अपनी ही जाति के लोगों से विचार विनिमय कर पाते हैं पर यदि सिखाया जाय तो न केवल मनुष्य के साथ हिलमिल सकते हैं वरन् एक जाति का दूसरी जाति वाले अन्य जीवों के साथ भी व्यवहार-संपर्क बनाया और बढ़ाया जा सकता है।

जानवरों का भाषा कोष तैयार करने में कई संस्थाओं ने बहुत काम किया है और कितने ही अन्वेषक निरत हैं। कैंब्रिज की ‘दी एशियाटिक प्राइमेट एक्स पेडीशन’ संस्था ने इस सम्बन्ध में बहुत खोज की है। इस संस्था के शोधकर्त्ता विश्व भर में घूमे हैं और विभिन्न पशुओं की आवाजें रिकॉर्ड की हैं। मोटे तौर पर यह आवाज कम होती है पर बारीकी से उनके भेद-प्रभेद करने पर वे इतनी अधिक हो जाती है कि उनके सहारे उन जीवों के दैनिक जीवन की-पारस्परिक सहयोग के लिए आवश्यक बहुत सी जरूरतें पूरी हो सकें। पैरिस के प्रो0 चेरोन्ड और अमेरिका के डॉ0 गार्नर ने अपनी जिन्दगी का अधिकाँश भाग इसी शोधकार्य में लगाया है।

बन्दरों की भाव भंगिमा उनकी मनःस्थिति को अच्छी तरह प्रकट करती है। जरा गम्भीरता से उसके चेहरे पर दृष्टि जमाई जाय तो सहज ही पता चल जायगा कि वह इस समय किस ‘मूड’ में है। उसके डरने, प्रसन्न होने, क्रोध करने, थक जाने, दुःख व्यक्त करने, साथियों को बुलाने आदि के स्वर ही नहीं भाव भी होते हैं जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।

चिंपैंजी बन्दर तो हँस भी सकता है। बच्चों के वियोग में चिंपैंजी मादा रोती देखी गई है। नीचे वाला होठ आगे निकला हुआ देखकर-आँखों को ढके बैठी हुई मादा चिंपैंजी को शोकग्रस्त समझा जा सकता है। इस स्थिति में उससे सहानुभूति प्रकट करने वाले दूसरे साथी भी इकट्ठे हो जाते हैं और संवेदना प्रकट करते हैं।

गोरिल्ला अपने क्रोध की अच्छी अभिव्यक्ति कर सकता है। गिब्बन बन्दर सवेरे ही उठकर शोर करते हैं जिसका मतलब है कि यह सारा क्षेत्र हमारा है। कोई दूसरे इस क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रयत्न न करें।

अन्य प्राणियों को उपेक्षा के गर्त में पड़ा रहने देने या उनके शोषण करते रहने में मनुष्यता का गौरव बढ़ता नहीं। अपनी प्रगति से ही सन्तुष्ट न रहकर हमारा यह भी प्रयत्न होना चाहिए कि अन्य प्राणियों के बौद्धिक उत्कर्ष में समुचित ध्यान दें और सहयोग प्रदान करें।


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