हरीतिमा और सूर्य किरणों में जीवन तत्व

March 1972

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सूर्य किरणों में जीवन तत्व भरा पड़ा है। खुली हवा में सूर्य प्रकाश में रहकर हम पौष्टिक आहार की तुलना में भी कुछ अधिक ही प्राप्त कर लेते हैं कम नहीं।

बन्द कमरे, पंखे की हवा, बिजली की रोशनी से भी लोग काम चलाते हैं और उसे सम्पन्नता, सभ्यता तथा सौभाग्य का चिह्न भी मानते हैं पर सच बात यह है कि सूर्य का प्रकाश और उससे उत्पन्न हरीतिमा दोनों ही हमारे स्वास्थ्य संरक्षण, बल, वीर्य और दीर्घ जीवन के लिए आवश्यक हैं।

वनस्पति का विकास हरे रंग को अपनाने के कारण होता है। वनस्पतियाँ हरी होने के कारण शोभायमान ही नहीं जीवित भी हैं। हरा रंग अपने भीतर स्वतः जीवन तत्व की प्रचुर मात्रा भरे हुए हैं।

सूर्य किरणों में उपलब्ध सात रंगों में से एक हरा रंग ही ऐसा है जिसमें जीवन के मूल तत्व का पोषण करने की शक्ति है। पौधे इसी रंग के माध्यम से सूर्य से अपने लिए आवश्यक तत्व प्राप्त करते और कार्बन डाइ- ऑक्साइड का सृजन करते हैं। इस क्रिया के बीच उनका ऑक्सीजन छोड़ने का काम भी चलता रहता है यही मनुष्यों की साँस के काम आती है।

यदि वनस्पति में हरा रंग न हो तो वह क्लोरोफिल के अभाव में सूर्य से अपनी खुराक प्राप्त न कर सके तब फिर इस संसार में वनस्पति रहेगी भी या नहीं यह संदिग्ध है। यदि वह रही भी तो इस योग्य होगी कि शाकाहारी प्राणी उसे खाकर जीवित रहें। क्लोरोफिल के रूप में हरा रंग उस विशाल विश्व में शोभा और शान्ति की हरीतिमा ही नहीं फैलाता प्राणियों का जीवन आधार भी सिद्ध होता है।

हम हरी वनस्पतियों के संपर्क में रहें। खेतों और बगीचों में काम करें, सघन वनों की सैर करें, अपने घरों को फूल-पौधों और बेलों से हरा-भरा रखें तो हरीतिमा का यह संपर्क हमें अधिक जीवन तत्व प्रदान कर सकता है और स्वास्थ्य संवर्धन में लाभ मिल सकता है।

सूर्य के प्रकाश का संपर्क हमारी सुदृढ़ता, स्फूर्ति को बढ़ाता है और प्रजनन में समर्थ बल-वीर्य की वृद्धि होती है। संतान रहित और दुर्बल संतान वाले व्यक्ति सूर्य के संपर्क में रहें तो वे कष्ट मुक्त हो सकते हैं। दिलीप को सन्तान प्राप्ति के लिये गुरु वशिष्ठ ने उन्हें खुली हरीतिमा में दिन-भर घूमते हुए गौएं चराने का उपचार बताया था। किसान और वनवासी लोग अपेक्षाकृत कम ही बीमार पड़ते हैं और उन्हें प्रजनन संबंध कष्ट अवरोध भी नहीं होता।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राणि शास्त्री डॉक्टर वी0 आई॰ सुन्दराज ने मछली पर प्रजनन संबंधी प्रयोग करके यह सिद्ध किया है कि उसे वर्ष में पाँच बार गर्भ धारण के लिए उत्तेजित किया जा सकता है जबकि वह सामान्यतया वर्ष में एक बार ही - जुलाई-अगस्त के बीच प्रसव करती है।

उपरोक्त विज्ञानी ने अध्ययन किया कि अधिक प्रकाश प्राप्त करने का अवसर जब भी मछली को मिलता है तभी वह ऋतुमयी होती है। ग्रीष्म ऋतु में दिन भी लम्बे होते हैं और सूर्य का प्रकाश भी तेज रहता है इसलिये मछली का शरीर प्रकाश का प्रभाव अधिक मात्रा में ग्रहण कर लेता है। और उन हारमोनों को उत्तेजित करता है जो प्रजनन की स्थिति उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।

इस आधार पर उन्होंने सूर्य जैसी विशेषताओं से सम्पन्न विद्युत प्रकाश की व्यवस्था की और अनुपयुक्त ऋतुओं में भी मछली को उसके अंतर्गत रखा। परिणाम यह हुआ कि उन्होंने गर्भधारण केय और साल में एक बार की अपेक्षा पाँच बार प्रसव करने के लिए तत्पर हो गई। शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक सन्तुलन और पौरुष को सुदृढ़ रखने की दृष्टि से सूर्य प्रकाश और हरीतिमा का संपर्क रखा जाना आवश्यक है। जीवन तत्व के अधिक सञ्चय का यह सरल उपाय है।


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