अपने समय की सर्वोत्तम वस्तुयें भी कालान्तर में विकृतिग्रस्त होकर अनुपयोगी बन जाती है। जाड़े के कपड़े जो उन दिनों शरीर को सर्दी से बचाने के लिए उपयोगी एवं आवश्यक थे, कुछ समय पीछे गर्मी आने पर निरुपयोगी हो जाते हैं। तब कोई यह आग्रह करे कि ‘भूतकाल में उन्हें उपयोगी माना गया था, इसलिए अब भी उन्हें वैसा ही माना जाय और उसी प्रकार धारण किया जाय’ तो यह आग्रह अनुचित ही नहीं, हानि-कारक भी होगा। घोर गर्मी में भला ऊनी, मोटे, गरम कपड़े पहनने से क्या लाभ हो सकता है?
किसी जमाने में उस समय की परिस्थितियों के अनुसार कोई वस्तु अच्छी रही होंगी, पर समय बीत जाने पर जब अन्य प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई तब यह आवश्यक नहीं कि पुरानी कार्य-पद्धति ही ठीक बनी रहे। नई समस्याएँ सुलझाने के लिए नया दृष्टिकोण आवश्यक है। टूट-फूट को सुधारने के लिए मरम्मत की जो उपयोगिता है, वैसी ही पुरानी रीति-रिवाजों में असामयिकता उत्पन्न हो जाने पर उन्हें ठीक करने के लिए भी आवश्यकता होती है। जो समय को नहीं देखते, पहचानते उन्हें कुचलता हुआ जमाना आगे बढ़ जाता है और वे अपनी प्रतिगामिता पर पश्चाताप ही करते रहते हैं।
-ईश्वरचन्द्र विद्यासागर