प्रकृति के कलाकारों से सुरक्षा विधि सीखना

February 1971

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“वाकिंग स्टिक” कीड़ा होता है जिसका शरीर, हाथ पैर और रंग किसी सूखी लकड़ी की टहनी की तरह होता है। क्रियाशील अवस्था में कई दुष्ट व माँसाहारी जीव इस पर आक्रमण कर देते हैं और मारकर खा जाते हैं। शत्रुओं से बचने के लिए अन्ततः उसने ईश्वर प्रदत्त जीवन-सत्य को ही माध्यम बनाया। वह किसी दुश्मन को बढ़ता हुआ देखता है तो निश्चेष्ट लेट जाता है शत्रु आता है और देखता है कि जहाँ उसे कीड़ा दिखा था वह तो सूखी लकड़ी है भ्रम हो गया है यह समझकर वहां से निराश लौट जाता है और वाकिंग स्टिक की सुरक्षा हो जाती है।

अमेरिका में पाया जाने वाला कंगारू इस क्रिया में सबसे अधिक चतुर होता है। दुश्मन को देखते ही वह जमीन में इस प्रकार लेट जाता है मानो बिलकुल मर गया हो। जब तक शत्रु दूर रहता है तब तक तो वह विधिवत् साँस भी लेता रहता है पर जैसे ही शत्रु पास आया कि उसने आंखें भी बन्द की और साँस भी। शत्रु आता है उसे सूँघता है और मरा हुआ समझ कर वहां से चल देता है। कंगारू प्रसन्नतापूर्वक उठता है और अपने काम में लग जाता है।

मनुष्य जीवन में भी शत्रुओं की कोई कमी नहीं। बाहरी शत्रुओं में तो किसी प्रकार रक्षा भी की जा सकती है आंतरिक शत्रुओं से विजय पाना मनुष्य के लिए सबसे अधिक दुःसाध्य रहा है। शरीर रूपी गुफा जिसमें जीवात्मा रहता है और जिसे यह गुफा भगवान ने इसलिए दी थी कि वह उसमें सुरक्षापूर्वक रहकर आत्म-कल्याण और लोकमंगल की आवश्यकता पूरी करेगा उसी में 6 भयंकर शत्रु और अनेक छोटे-छोटे दुश्मन भी आ बैठे। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर यह प्रबल शत्रु मनुष्य की शक्ति निचोड़ते मित्रता और प्रेम पूर्वक रहने न देकर अपने ही लोगों से लड़ाते भिड़ाते रहते, शोषण छल-कपट और न जाने कैसी -कैसी दुष्टता की प्रेरणा देते रहते हैं मनुष्य को उनसे बचना भारी पड़ता है कोई उपाय कारगर नहीं होता जब यह शत्रु प्रबल हो उठते हैं उनसे रक्षा के उपाय प्रकृति के इन कलाकारों से सीखना चाहिए।

उदाहरण के लिए कभी कामवासना का वेग सताये, अथवा किसी के प्रति शत्रुता हो और अहंकार वश प्रतिशोध की भावना भड़क उठे उस समय वाकिंग स्टिक और कंगारू के समान निश्चेष्ट लेट जाइये और अनुभव करिये आप की मृत्यु हो गई। आपका प्राण शरीर छोड़कर बाहर खड़ा है और देख रहा है वह शरीर, वह इन्द्रियाँ जिनके विषय बड़े सुन्दर और सुखद प्रतीत होते हैं उनमें कितनी गंदगी और दुर्गंध भरी है। यह मनुष्य शरीर किसी बड़े काम के लिए मिला था पर उसका दुरुपयोग हुआ शक्तियां इन्द्रिय भोग और बखेड़ों में खर्च करदी- इस तरह के विचार कुछ देर तक इतनी गंभीरता से उठाये मानो आप सचमुच मर गये हो। उस क्षण की कल्पना आपमें वैराग्य भर देगी आप बुराई से बच जाएंगे।

जीव शास्त्र में इन क्रियाओं को मिमिक्री कहते हैं। डॉ0 वेटसन व फिटज मुलर ने जीवों की इन अद्भुत क्रियाओं पर गहन अनुसंधान किये और ऐसे सैकड़ों उदाहरण देकर जीवों की प्रकृति के रोमांचक पृष्ठ खोले पर इनका सर्वोत्तम लाभ मानव जाति को इन प्रेरणाओं के रूप में ही मिल सकता है। समुद्र के किनारे क्रिप्टी लिथोडस नामक एक केकड़ा पाया जाता है इनके शरीर की ऊपरी सतह कठोर होती है और रंग श्वेत। कोई दुश्मन आया और ये सतह पर बिछे कंकड़ के पत्थरों के बीच जा लेटे। उस समय कोई पास आ जाये तो यही समझेगा कि कोई पत्थर पड़ा है। केकड़ा कुछ बोल नहीं रहा होगा पर उसकी रूह कह रही होगी मनुष्य! तू भी अपने शरीर को कंकड़ पत्थर मिट्टी पानी का समझता और मानता कि इसमें निवास करने वाली जीवात्मा ही रक्षा और विकास के योग्य है तो यह- मानस शत्रु जो हर घड़ी तुम्हारी शक्तियों को खा जाने की ताक में बैठे रहते हैं धोखा खा जाते और तेरे पास आकर भी तेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाते। शत्रुओं से सुरक्षा के कोई एक दो उपाय ही नहीं सैकड़ों कला इन प्रकृति के कलाकारों से सीखी और प्रयोग में लाई जा सकती है। उदाहरण के लिए एक कीड़ा “लीफ इंसेक्ट” शत्रु को देखते ही वह हरी पत्तियों पर बैठ जाता है। शत्रु आता है तो पत्तियां ही पत्तियां देखकर निराश लौट जाता है। कैलिमा नामक तितली फूल-पत्तियों के आकार से इतनी मिलती-जुलती होती है कि उसको पहचानना कठिन हो जाता है उसके पिछले पंख तने और आगे वाले पत्तियों के आकार में होते हैं शत्रु को देखते ही यह किसी फूल वाले की मोटी शाखा को अपने पिछले पंखों से स्पर्श करा बैठ जाती है तब देखने से ऐसा लगता है कि किसी तने पर पत्तियाँ उगी हो। शत्रु धोखा खाकर चला जाता है। हर व्यक्ति के पास एक न एक गुण, कोई न कोई ऐसी विशेषता होती है। कोई चित्रकार होता है किसी संगीत की रुचि, कोई गा अच्छा लेता है तो किसी को व्यायाम का ज्ञान होता है, कोई लेखक हो सकता है और कोई सुन्दर चित्र देखने और सुन्दर पुस्तक पढ़ने की रुचि जाग्रत कर सकता है। यह सब लीफ इंसेक्ट और कैलिमा तितली को मिले प्राकृतिक गुणों के समान है कभी गुस्सा आये, काम विकार सताये स्थिति में मनुष्य इन गुणों से अपनी प्रवृत्ति की न केवल मनोविकारों से रक्षा हो सकती है वरन् रचनात्मक प्रकृतियों के विकास का मार्ग भी खुल सकता है। क्रोध, लोभ आये तो ठण्डा पानी पीकर भजन गाकर ही उन्हें झुठलाया और बेवकूफ बनाकर खाली मार्ग लौटाया जा सकता है।

एक और भी बढ़िया उपाय है मानसिक कुविचारों से उसके दुष्परिणाम की कल्पना। तितलियों की एक जाति ऐसी होती है जिनका माँस कड़वा और जहरीला होता है उन्हें कोई भी जीव खाना पसन्द नहीं करता। पर कुछ तितलियों को खाने वाले भी सैकड़ों शत्रु तैयार रहते हैं। स्वास्थ्य , खूबसूरत होने पर कामवासना के प्रवाह अधिक कराते हैं, पैसा हो तो अपव्यय और अहंकार की दुष्प्रवृत्तियां घेर सकती है, शरीर में बल हो तो ही बदमाशी सूझती है जब कभी ऐसे अवसर आये तब कामवासना से जर्जरित व्यक्तियों के दुर्बल शरीर और वृद्ध लोगों के टूटे शरीरों की कल्पना करके उसी प्रकार बचा जा सकता है जिस तरह गौतम बुद्ध उनसे बच गए थे और अपना जीवन पुण्य परमार्थ और लोक-सेवा में उत्सर्ग कर दिया था। अहंकार आये तो कंस, रावण, जरासंध लोभ आये तो हिरण्यकशिपु की दुर्दशा मोह सताये तो सैकड़ों बच्चे लिये फिरने वाली सुअरिया की कल्पना करके उनसे बचा और संभला जा सकता है। किसी भी घृणित विचार को उसके दुष्परिणाम के चिन्तन से काटने की कला आ जाये तो मनुष्य न केवल उस दुष्प्रभाव से बच सकता है वरन् आत्म- कल्याण की दिशा में भी तेजी से अग्रसर हो सकता है।

इतने पर भी बुराइयों के शत्रु न माने तो उन्हें डराना धमकाना और मारकर भगाना भी नीति संगत तथ्य है। अमरीका में जहरीले सांपों की एक ऐसी जाति पाई जाती है जिनका रंग बहुत ही चमकदार होता है। उसी क्षेत्र में कुछ साँप ऐसे होते हैं जिनमें कोई जहर नहीं होता। इनको जब किसी शत्रु से मुकाबला पड़ जाता है तो यह अपनी आकृति जहरीले सांपों जैसी बना लेते हैं शत्रु डर कर भाग जाते हैं और इस तरह इनकी रक्षा हो जाती है। हमारे मन में भी ऐसे साहस पूर्ण शक्तिशाली विचार जाग जाय तो बुरे विचारो को डांटकर , मारकर भगाया जा सकता है।

इस तरह इन जीवों की निश्चेष्ट करने की क्रियायें, अच्छे विचारो से बुरे विचार काटने की क्रियायें सीखकर आन्तरिक शत्रुओं से बचा जा सकता है। गुणों का विकास किया जा सकता है और आत्म- कल्याण के अवरोधों को दूर कर सुख-शान्ति का जीवन भी जिया जा सकता है।


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