पूर्ण सत्य की प्राप्ति तभी सम्भव है जब तुम इच्छाओं से छुटकारा पा लो।
-स्वामी रामतीर्थ
सन्त तुकाराम अपने प्रारम्भिक जीवन में जब अत्यन्त ही अभावग्रस्त हो गये तो उन्होंने लिखा “ हे भगवान्! अच्छा ही हुआ जो मेरा दिवाला निकल गया। अकाल पड़ा यह भी अच्छा ही हुआ। स्त्री और पुत्र भोजन के अभाव से मर गये और मैं भी हर तरह से दुर्दशा भोग रहा हूँ यह भी ठीक ही हुआ। संसार में अपमानित हुआ, यह भी अच्छा ही हुआ गाय, बैल, द्रव्य सब चला गया , यह भी अच्छा ही है। लोक-लाज भी जाती रही यह भी ठीक ही है। क्यों कि इन्हीं बातों के फलस्वरूप तो तुम्हारी मधुरिमामय, शाँतिपूर्ण गोद मिली। “