दृश्य और दुनिया सन 2000 की

February 1971

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रूस द्वारा क्यूबा में अणु प्रक्षेपणास्त्र और अड्डे जमा देने की अमरी में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। सन 1962 में एक बार दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने जा डटी। इधर रूसी सैनिकों से जलपोत क्यूबा की ओर भाग चले आ रहे थे उधर अमेरिका के विध्वंसक वायुयान और अणु बमों से लैस मिसाइलें गड़बड़ करने लगी। युद्ध के लिए बस “स्विच” दबाना शेष रह गया था।

उस समय फ्रांस के नेताओं ने प्रसिद्ध फ्राँसीसी भविष्यवक्ता जूल वर्न से पूछा- “ इस युद्ध में विजय किसकी होगी ?” जूल वर्न ने छूटते ही उत्तर दिया- किसी की नहीं- इसलिये कि युद्ध होगा कि नहीं। रूस पीछे हट जायेगा।

इस बात पर उस समय तो किसी ने विश्वास नहीं किया। किन्तु कुछ ही घंटों पीछे जब आकाशवाणी ने घोषणा की - “रूस पीछे हट गया, युद्ध की संभावनाएं समाप्त हो गई। “ तो लोग जूल वर्न की भविष्यवाणी पर आश्चर्यचकित रह गये।

डाक्टर जूल वर्न प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक है पर उनकी सर्वाधिक ख्याति एक भविष्यवक्ता के रूप में हुई। अंतर्राष्ट्रीय जगत में उन्हें भविष्यवक्ता के रूप में जीन डीक्सन, प्रो0 हरार, कीरो, एंडरसन और चार्ल्स क्लार्क से कम महत्व नहीं दिया। उनके कई पूर्वाभास तो इतने सच हुए मानो वह घटनाएं उनके द्वारा ही गढ़ी गई हो। उन्होंने 1963 में चन्द्रमा पर सहमानव अंतरिक्ष यान उतर जाने की भविष्यवाणी दस वर्ष पूर्व की थी। वह सच निकली। उनकी जापान द्वारा मंचूरिया, इटली द्वारा अल्बानिया और इथेपिया पर अधिकार की भविष्यवाणी को किसी ने नहीं माना था पर 1939 से 1942 तक ही यह सब घटनाएं सच हो गई। हिटलर की सेनाएं डेनमार्क, बेल्जियम, लक्सेमबर्ग जीत चुकी थी। तब किसी ने पूछा- “ क्या हिटलर के विरुद्ध फ्राँस की भी पराजय हो सकती है ?” इस पर श्री वर्न ने बताया कि 20 जून 1940 को फ्रांस हार मान लेगा। 20 तो नहीं पर दो दिन बाद 22 को सचमुच फ्रांसीसियों ने आत्मसमर्पण कर दिया।

चीन अणुबम बना लेगा। मध्य पूर्व में आग भड़केगी और अरब की बहुत सी जमीन इजराइल के पास चली जायेगी। यह कथन भी सत्य होते लोगों ने देखे। इन भविष्यवाणियों का ही प्रभाव था कि एक समय फ्रांस और योरोप के अधिकांश नेता ग्रह- नक्षत्रों का पूरा ज्ञान नहीं लेते थे । स्वयं लार्ड माउन्टबेटेन ने माना था कि कोई अदृश्य सत्ता संसार में विचार पूर्वक काम कर रही है। यह प्रसंग मनुष्य के अहंकार कम करते हैं और उसे जीवन के सत्य के प्रति आग्रह शील होने की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं।

श्री जूल वर्न की भविष्यवाणियों की एक रोचक शृंखला है उनमें से कितनी सच होती जा रही है और कितनी ही सच होने के लिए उत्सुकता बढ़ा रही है। उदाहरण के लिये- 1990 तक सारी पृथ्वी विशेषकर शहरी क्षेत्रों में फैक्ट्रियों तथा कल-कारखानों का धुआँ इतना अधिक बढ़ जायेगा कि 80 प्रतिशत वायु दूषित हो जायेगी। लोगों को अपने वजन से कुछ कम ही भार के शुद्ध आक्सीजन प्रदान करने वाले यंत्र शरीर से बाँध कर रखने पड़ेंगे। इस वायु प्रदूषण के कारण लोग पूरी तरह तो नष्ट के नहीं होगे पर उनकी स्थिति अर्द्ध विक्षिप्तों की सी होगी। बीमारियाँ बढ़ेगी साहस घटेगा। न केवल लोग भारतीयों का अनुगमन, वेष भूषा, खान पान, गृहस्थ सम्बन्धी के रूप में करेंगे वरन् भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रति श्वेत जातियों का आकर्षण इतना अधिक बढ़ेगा कि सन 2000 तक दूसरे देशों में बीसियों हिन्दू देवी- देवताओं के मंदिरों की स्थापना हो चुकी होगी और उनमें लाखों लोग पूजा-उपासना भजन- कीर्तन और भारतीय पद्धति के संगीत का आनन्द लेने आने लगेंगे।

चीन अणुबम बनाकर भी एशिया का प्रभुता सम्पन्न देश नहीं बनेगा। उसकी भारतवर्ष से काफी समय तक शत्रुता रहेगी। भारत न केवल अपनी भूमि छुड़ा लेगा वरन् तिब्बत भी मुक्त हो जायेगा। उसके भारतवर्ष में मिल जाने की संभावनायें भी है। पाकिस्तान का कुछ भाग अफगानिस्तान ले लेगा कुछ भारतवर्ष। इस तरह उसका अस्तित्व अधिक दिन तक टिकेगा नहीं।

मनुष्य चन्द्रमा पर हो आने के बाद अन्य ग्रहों की टोह लेगा। 1985 तक सौरमण्डल के बारे में प्लूटो तक की जानकारियां उपलब्ध हो जायेगी और मानव अंतरिक्ष यान शुक्र या मंगल अथवा दोनों तक जाकर लौट आयेंगे। “गुरुत्वाकर्षण” पर मनुष्य का नियन्त्रण हो जायेगा और अणु शक्तियों से भी शक्तिशाली शक्तियों की खोज हो जायेगी। संसार के किसी सर्वाधिक प्राचीन पर्वत से जो वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है कुछ ऐसी सामग्री, स्वर्ण-मुद्राओं का भण्डार मिल सकता है जो ईसा के पूर्व के इतिहास को बिलकुल ही बदल सकता है। यही नहीं उससे सम्बन्धित देश इतना शक्तिशाली हो सकता है कि रूस, अमरीका, ब्रिटेन,फ्राँस और जर्मनी मिलकर भी उसका सामना करने में समर्थ न हो। इसी प्रकार किसी भू-भाग से एक रहस्यमय शक्ति का अभ्युदय होगा जो आज तक कि इतिहास का सबसे अधिक समर्थ व्यक्ति सिद्ध होगा। उसके बनाये विधान सारे संसार में लागू होगे और सन 2050 तक वह सारी पृथ्वी को एक संघीय राज्य में बदल देंगे।

सन् 1970 से 1980 तक 10 वर्ष भीषण प्राकृतिक हलचलें होगी। वायु दुर्घटनायें, अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़, भूकंप आदि बढ़ेंगे। तुर्की का अधिकाँश भाग भूकंप से नष्ट हो जायेगा। अरब में गृहयुद्ध हो जायेगा उसका लाभ इजरायलियों को मिलेगा। 1972 तक समुद्र के किनारे के कई भूभाग, कई टापू बिलकुल नष्ट हो सकते हैं और कई नये टापू निकलकर आ सकते हैं। नवोदित टापू में किसी शक्तिशाली जाति का अधिकार होगा। उनमें बहुत से रत्नों का ढेर मिलेगा जो उस जाति की आर्थिक समृद्धि बढ़ायेगा।

सन् 2000 तक विश्व की आबादी 640 करोड़ रुपये के लगभग होगी उसका अधिकांश अमरीका और एशिया में होगा। परमाणु युद्ध तो नहीं होगे पर वर्ग संघर्ष बढ़ेगा। एक ओर संघर्ष हो रहे होगे दूसरी ओर एक बिलकुल धार्मिक क्रान्ति उठ खड़ी होगी जो ईश्वर और आत्मा के नये रहस्य प्रकट करेगी। विज्ञान उनकी पुष्टि करेगा फलस्वरूप नास्तिकता और वाम पंथ नष्ट होता चला जायेगा और उसके स्थान पर लोगों में आस्तिकता, न्याय, नीति, श्रद्धा और कर्तव्य परायणता के भाव उगते हुए चले जायेंगे। यह परिवर्तन ही विश्व शान्ति के आधार बन सकते हैं।

परिवर्तन की भविष्यवाणी मशीन द्वारा

कैलीफोर्निया (अमरीका) की रैण्ड कारपोरेशन ने “एलेक्ट्रानिक ओरेकल” नामक एक ऐसी मशीन बनाई है जो अब तक की ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक जानकारियों के आधार पर भविष्यवाणी करती है। यह जानकारियाँ इस यंत्र में लगे सैकड़ों कंप्यूटरों में इलेक्ट्रानिक रूप में भरी गई है। इस मशीन द्वारा की गई अधिकाँश भविष्यवाणियाँ सत्य निकलती है। “ओरेकल” का विचार है 1985 के आस-पास पृथ्वी में एक बहुत बड़ी विचार क्रान्ति होगी जो संसार की परिस्थितियों में तीव्र परिवर्तन लायेगी। इस विचार क्रान्ति की रूपरेखा बताने में मशीन ने असमर्थता प्रकट की है।

इस प्रकार परिवर्तन की आवाज कहाँ से उठेगी और कौन उसका संचालन करेगा यह पूछे जाने पर वर्न ने बताया- जैसा कि मुझे आभास होता है यह आध्यात्मिक क्रान्ति भारतवर्ष से ही उठेगी। उसके संचालन के बारे में मेरे विचार जीन डिक्सन से भिन्न यह है कि वह व्यक्ति सन् 1962 से पूर्व ही जन्म ले चुका था। इस समय उसे भारतवर्ष में किन्हीं महत्वपूर्ण कार्यों में संलग्न होना चाहिए। यह व्यक्ति भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी रहा होना चाहिए और उसके अनुयायियों की बड़ी संख्या भी है। उसके अनुयायी देखते ही देखते सारे विश्व में अपना प्रभाव जमा लेंगे और असंभव दीखने वाले परिवर्तनों को आत्म-शक्ति के माध्यम से सरलता व सफलता पूर्वक सम्पन्न करेंगे।

श्री वर्न भविष्य के प्रति उत्सुकता को आत्मा की अविनश्वरता का प्रमाण मानते हैं जो ठीक भी है। कभी नाश न होने का आत्म-विश्वास शरीर को नहीं होता क्योंकि वह तो मरणशील है ही पर आत्मा तो अमर है इसलिए उसकी जितनी जिज्ञासा भूत के अस्तित्व के प्रति होती है उससे अधिक भावी परिवर्तन के प्रति। यदि इनके प्रति मनुष्य अपने बुद्धि-विवेक, सूझ-बूझ और पुरुषार्थ को भी युक्त कर दे तो न केवल एक व्यक्ति वरन् सम्पूर्ण मानव जाति का भविष्य बदल कर उसे उज्ज्वल बनाया जा सकता है। ये कार्य जब मनुष्य अपने आप नहीं कर पाते तब महापुरुष और सहायक जाग्रत आत्मायें पृथ्वी पर आती है और ईश्वरीय इच्छा के अनुरूप संसार का निर्माण करती है। वर्न का विश्वास है अगले दिनों इस इतिहास की पुनरावृत्ति होने वाली है, उस परिवर्तन को कोई रोक नहीं सकेगा।


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