मृत्यु जीवन का अन्त नहीं

February 1971

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जीन्द (हरियाणा) का कालेज। एक विद्यार्थी के साथ उसकी छोटी बहिन भी कालेज चली आई। एक अध्यापक ने प्रयोगशाला में खड़ी उस बालिका से पूछा- बेटी यह शीशी में क्या रखा है, जानती है इसे छूना मत, नहीं तो जल जायेगी। अध्यापक ने कोई परीक्षा लेने के लिए नहीं पूछा था उसने तो साधारण हिदायत भर दी थी। किन्तु लड़की बोली- हाँ हाँ सर यह “कन्सन्ट्रेटेड नाइट्रिक एसिड “ है मैं इसे नहीं छूऊगी। उसने और भी शीशियों में रखे हुए घोलों को सही -सही बताकर अध्यापक और छात्रों को विस्मय में डाल दिया- इस आयु के बच्चे तो अच्छी तरह बोल भी नहीं सकते फिर इस बालिका ने अंग्रेजी और विज्ञान का यह असाधारण ज्ञान कहाँ से पाया ?

जो बात और अधिक विस्मय में डालती है वह यह है कि उक्त बालिका बिना किसी शिक्षा के पुस्तकें पढ़ लेती है उसे हिन्दी , उर्दू और अंग्रेजी का एक एफ. ए. के विद्यार्थी जितना ज्ञान है ? यह ज्ञान कहाँ से उपलब्ध हुआ ? क्या कोई ऐसी परम्परा भी है जिसमें बच्चों की जन्मजात प्रतिभा को विकसित किया जाता हो इन प्रश्नों पर विचार करने बैठते हैं तो अपने भारतीय दर्शन के उस सिद्धान्त की पुष्टि होती है जिसमें यह बताया जाता है कि मृत्यु के बाद ही जीवन का अन्त नहीं हो जाता है वरन् जीवन एक शाश्वत विकास की प्रक्रिया है वह अनादि काल से चल रही हैं। जीवन की इकाइयां बराबर बनी रहेगी। पाश्चात्य वैज्ञानिकों का यह कथन सत्य नहीं है कि मनुष्य की वृक्ष वनस्पति की तरह एक सामान्य रासायनिक प्रक्रिया है और मृत्यु के साथ उसका अन्त हो जाता है। यहाँ वृक्षों की चेतनता को भी उसी विकास प्रक्रिया का ही अंग माना गया है।

कठोपनिषद् में नचिकेता यमराज से पूछते है- मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है तो यमाचार्य उत्तर देते है-

न प्राणेन नापानेन मर्त्यो जीवति कश्चन । इतरेण तु जीवन्ति यस्मिन्नेता वुपाश्रतौ ॥ - द्वितीय वल्ली ।

योनिमन्ये प्रपद्यन्ते शरीरत्वाय देहिनः । स्थारणुमन्येsनुसंयन्ति यथा कर्म यथा श्रुतम ॥ - द्वितीय वल्ली ।

हे नचिकेता! कोई भी देहधारी प्राण या अपान से ही जीवित नहीं रहता किन्तु जिसमें यह दोनों आश्रित है (कारण शरीर) उसी के आधार पर जीवित रहते हैं। अगले मंत्र में मृतात्मा देहान्त के पश्चात् कैसे रहता उस पर प्रकाश डाला है कहा है- आपने अपने कर्मों के अनुसार जिसने श्रवण द्वारा जैसा भाव प्राप्त किया, उसके अनुसार कितने ही जीवात्मा देह धारण के लिए विभिन्न योनियों को प्राप्त होते हैं और अनेकों जीवात्मा अपने कर्मानुसार वृक्ष, लता, पर्वत आदि स्थावर शरीरों को प्राप्त होते हैं।

हमारे और भी धार्मिक ग्रन्थ और दर्शन पुनर्जन्म की परिकल्पना का समर्थन करते हैं। यों कहना चाहिये कि भारतीय आचार संहिता एक जीवन प्रस्तुत जीवन को ही दृष्टिगत रखकर नहीं की गई वरन् विश्वास के साथ की गई है कि मृत्यु के बाद भी जीव को कर्मानुसार पुनर्जन्म धारण करना पड़ता है जब तक आत्मा पूर्ण रूप से विकसित होकर परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर लेती तब तक वह जीवन-मरण के चक्र में घूमती रहती है।

गीता के अध्याय 2 में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है-

वासाँसि जीणानि यथा विहाय, नवानि गृहाति नरोsपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा, न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ - गीता 2/22

हे अर्जुन- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्रों को ग्रहण करता है वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर दूसरे नये शरीर को प्राप्त होता है।

जीन्द की घटना तो भारतीय दर्शन की उस मान्यता का ही उल्लेख है। 11 वर्षीया बालिका के बारे में यह माना जा सकता है कि बौद्धिक प्रतिभा के कारण उसने अन्य समवयस्कों की अपेक्षा थोड़ा अधिक ज्ञान अर्जित कर लिया होगा पर जो वस्तु उसने कभी पढ़ी ही नहीं वह इस जन्म का विकास कैसे हो सकता है दूसरे उसे धर्म के गूढ रहस्यों का पता ही नहीं फिर भी वह बताती है कि मैं अर्विन अस्पताल दिल्ली के एक डाक्टर की पुत्री थी। हम अग्रवाल जाति के थे। मेरे जीप और कार थी। मेरा नाम सुमन था। मुझे खूब अच्छे-अच्छे मीठे पकवान खाने को मिलते थे मैंने इंटर तक पढ़ाई की थी।

पिछले जन्म के कई संस्कार इस जीवन में अपने आप परिलक्षित हो रहे हैं- 1. तो यही कि उसने बिना पढ़े अंग्रेजी का ज्ञान पाया। 2. उसका डील-डौल सामान्य गति से अधिक तेजी से बढ़ रहा है उसकी वर्तमान माँ बताती है कि बालिका को कोई अतिरिक्त खुराक नहीं दी जाती तो भी उसका शरीर असाधारण रूप से बढ़ रहा है 3. अब चूँकि वह निर्धन घर में है इसलिये उसे अच्छा खाना कभी कभी मिलता है वह उसका अधिकांश अपने बहन-भाइयों को देती है और कहती है कि ये वस्तुएं मैंने भरपेट खाई है 4. दिल्ली, अमृतसर, डलहौजी शिमला आदि स्थानों के वह कई रोचक वर्णन सुनाती है जिसे उसने देखा भी नहीं। यह चारों बाते पूर्व जन्म और पूर्व जन्म के सिद्धान्त को ही पुष्ट करती है।

इस घटना का सबसे आश्चर्यजनक पहलू तब सामने आया जब उसकी माँ के पेट से एक और कन्या जन्मी और जन्म लेते ही बड़ी बहिन फूट-फूट कर रोने लगी ‘- कहा- अरी! पूनम तू जीजाजी को और दोनों बच्चों को किसके सहारे छोड़ आई ? लोग कहते थे कि यह क्या पागलपन है किन्तु इस बालिका ने बताया कि यह छोटी बहिन पहले जन्म में मेरी बड़ी बहिन थी। इसका नाम पूनम था। इसकी शादी भिवानी के एक अध्यापक के साथ हुई थी। पूनम का रंग कुछ साँवला था इसलिए जीजाजी उसे चिढ़ाते रहते थे। पूनम ने उससे दुःखी होकर एक दिन आत्म- हत्या कर ली और इस तरह पूर्व जन्म की दो सगी बहने इस जन्म में भी सगी बहने हुई।

आश्चर्य यह है कि आत्मा की सूक्ष्मता के कारण किसी विशिष्ट व्यक्ति की पहचान संभव नहीं है फिर बालिका ने जन्म लेते ही अपनी बहिन को कैसे पहचान लिया जबकि इस में उसका शरीर उसकी मुखाकृति सब कुछ अलग है। यह यह बालिका भी 4-5 वर्ष की है और जब इस जन्म की बड़ी बहिन किसी को पूर्व जन्म की बाते बतानी लगती है तो छोटी बहिनें उसे रोकती है और कहती है अब यह सब बाते करने से क्या लाभ ? उनकी गंभीरता यह सोचने को विवश करती है कि क्या सचमुच हमारे मर जाने के बाद भी जीवन बना रहता है। यदि नहीं तो क्या हम सामान्य पशुओं जैसा जीवन जीकर ही मर जाया करे या फिर आत्म-कल्याण का कोई मार्ग ढूंढ़े और उस पर चले। यदि हम इन प्रश्नों का सही सही अर्थ ढूंढ़ लेते हैं तो अपना मानव शरीर भी सार्थक होना निश्चित है अविश्वास और अविवेक के कारण तो भटकना ही भटकना है। राजी से भटके या बेराजी से।

जन्म जीवन प्रक्रिया के व्यक्त होने और आगे बढ़ने का नाम है न कि पहली बार अस्तित्व में आने का- पाणिनि

हिंदुओं की बात दूसरी है हमारे जीवन में तो जन्म और पुनर्जन्म के संस्कार गहराई तक जमे है इसलिये अब केवल उतना ही आवश्यक रह जाता है कि हम अपने जीवन लक्ष्य को कैसे प्राप्त करे यह सोचे पर जो थोड़े से विज्ञान और पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित लोग पुनर्जन्म की कल्पना को स्वीकार नहीं करते उनके लिए यह घटनाएँ संभव है कुछ शिक्षा दे। मुसलमान और ईसाई भी पुनर्जन्म नहीं मानते पर पिछले दिनों इन दोनों वर्गों में भी पुनर्जन्म की ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी है कि इन वर्गों के विचारशील लोग भी अपने धर्म को नये ढाँचे और सिद्धांतों पर ढालने की सोचने लगे है। ईसाई और मुस्लिम दोनों अपने सिद्धान्त धीरे-धीरे बदल रहे हैं ऐसा करना ठीक भी है।

तुर्की के मिदित जिले में मुहम्मद नामक एक व्यक्ति आइसक्रीम बेच रहा था। उसके पास से एक 5 वर्ष का बालक गुजरा। बालक ने उसे देखते ही पूछा- क्या तुम मुझे पहचानते हो ? आइसक्रीम वाले ने इनकार कर दिया - मैंने तो तुम्हें पहले देखा ही नहीं। किन्तु बच्चे ने तुनक कर कहा- तुम मुझे भूल गये हो - मैं अबीत हूँ। पहले तुम तरबूज और साग भाजी बेचा करते थे। मुहम्मद ने आश्चर्य वश और कई प्रश्न अबीत से पूछे जिसके उत्तर उसने सही पाये। अबीत बालक ने यह भी बताया कि मुहम्मद की तरफ उसके बहुत से पैसे भी निकलते हैं। मुहम्मद ने तमाम आदमियों के सामने यह बात स्वीकार ली।

अपने को पूर्व जन्म का अबीत बताने वाला यह लड़का तुर्की में ही अदाना जिले में सन 1956 में एक कसाई के घर जन्मा है। पहले जन्म में वह काफी धनी था उसकी दो धर्म-पत्नि बहिन और कई बच्चे थे। उसकी किसी कारण वश हत्या कर दी गई। अभी वह 3 वर्ष का ही हुआ था कि वह अपने पूर्व जन्म की अनेक बाते बताता और घर वालो को अपने पूर्व जन्म के घर ले चलने को मचलता रहता।

एक दिन उसके पिता- उसे मिदित जिले ले गये वहाँ उसने प्रत्येक वस्तु को अच्छी तरह पहचान लिया। उसने अपनी धर्म-पत्नि और बहिन को भी पहचान लिया और अपने जीवन के अनेक संस्मरण सुनाता रहा जिनकी उन सब ने पुष्टि की। इस घटना से मुसलमानों से अपनी पुनर्जन्म न होने की मान्यता के प्रति बड़ी हलचल उत्पन्न हुई सारे एशिया में विवाद उठ खड़ा हुआ और हजारों मुसलमानों ने पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकार कर लिया।

धर्मयुग के 9।4।1967 अंक में छापी गई पूर्व जन्म की स्मृति उल्लेखनीय है। इंग्लैंड के एक नगर में एक व्यक्ति पोलक रहता है। उसकी दो लड़कियां थी। 11 वर्ष की जौआना और 6 वर्ष की जैकलीन में बड़ा प्रेम था। एक बार किसी दुर्घटना में दोनों की मृत्यु साथ-साथ हो गई। इसके कुछ दिन बाद श्रीमती पोलक गर्भवती हुई। उन्होंने इस बार दो जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया। उनका नाम जेनिफर और गिलियन रखा गया। जेनिफर गिलियन से कुल 4 मिनट छोटी थी। थोड़े दिन बाद ही ज्ञान होने पर उन्होंने पूर्व जन्म की बाते बताना शुरू किया। उन्होंने बताया कि वे ही जौआना और जैकलीन थी। अनेक घटनाएं बताई जो सत्य पाई गईं। पोलक का कहना है कि पहली लड़कियों और इन लड़कियों के खान-पान की रुचियों में कोई अन्तर नहीं है यही उदाहरण भारतीय पुनर्जन्म सिद्धान्त की पुष्टि करते हैं आगे तो विज्ञान और भी रहस्य पूर्ण बातों से इस मान्यता का समर्थन करेगा।


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