अनुकरण अच्छा, अन्धानुकरण नहीं

February 1971

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एक गाँव में दो युवक रहते थे। दोनों में बड़ी मित्रता थी। जहाँ जाते साथ-साथ जाते। एक बार दोनों एक धनी व्यक्ति के साथ उसकी ससुराल गये। किसी धनी व्यक्ति के साथ रहने का यह पहला अवसर था सो वे अपने धनी मित्र की प्रत्येक गतिविधि ध्यान से देखते रहे। गर्मियों के दिन थे। रात में उक्त युवक के लिये शयन की व्यवस्था खुले स्थान पर की गई पर्याप्त शीतलता बनी रहे उसके लिए वहाँ चारों तरफ जल छिड़का दिया और रात के ओढ़ने के लिए बहुत ही हल्की मखमली चादर दी गई। अन्य दोनों युवकों ने इतना जाना कि इस तरह का रहन-सहन बड़े बड़प्पन की बात है। कुछ दिनों बाद उन्हें भी अपनी-अपनी ससुराल जाने का अवसर मिला पर वे दिन गर्मी के न होकर तीव्र शीत के थे। नकल तो नकल ही है। दोनों ने अपना बड़प्पन जताने के लिये बिस्तर खुले आकाश के नीचे लगवाया, लोगों के लाख मना करने पर भी उन्होंने बिस्तर के आस-पास पानी छिड़कवाया और ओढ़ने के लिये कुल एक-एक चादर वह भी हल्की ली। रात पाला पड़ गया सो दोनों को निमोनिया हो गया। चिकित्सा कराई गई तब कठिनाई से जान बची। इतनी कथा सुनने के बाद गुरुजी ने अपने शिष्य को समझाया - तात्! उचित और अनुचित का विचार किये बिना जो औरों का अनुकरण करता है वह मूर्ख ऐसे ही संकट में पड़ता है जैसे दोनों युवक।


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