आत्म कल्याण की साधना

February 1971

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एक नवयुवक, एक सिद्ध महात्मा के आश्रम में जाया करता था। महात्मा उसकी सेवा से प्रसन्न हो बोले- ‘ बेटा! आत्म कल्याण ही मनुष्य जीवन का सच्चा लक्ष्य है इसे ही पूरा करना चाहिए। “ यह सुन युवक ने कहा- ‘ महाराज! वैराग्य धारण करने पर मेरे माता पिता कैसे जीवित रहेंगे ? साथ ही मेरी युवा पत्नी मुझ पर प्राण देती है वह मेरे वियोग में मर जायेगी। ‘ महात्मा बोले- ‘कोई नहीं मरेगा बेटा! यह सब दिखावटी प्रेम है। तू नहीं मानता तो परीक्षा कर ले।’ युवक राजी हो गया तो महात्मा ने उसे प्राणायाम करना सिखाया और बीमार बन कर साँस रोक लेने का आदेश दिया। युवक ने घर जाकर वही किया। बड़े-बड़े वैद्यों की चिकित्सा हुई परन्तु दूसरे दिन ही उसने साँस रोक ली। घर वाले उसे मरा समझ हो-हल्ला मचाने तथा पछाड़ खाने लगे। पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये।

तभी महात्मा जी वहाँ आ पहुँचे और युवक को देख कर उसकी गुण गरिमा का बखान करते हुए बोले कि ‘हम लड़के को जीवित कर देंगे, परन्तु तुम्हें कुछ त्याग करना पड़ेगा।’ घर वाले बोले कि ‘आप हमारा सारा धन, घर-बार यहाँ तक प्राण भी ले ले, परन्तु इसे जीवित कर दे।’ महात्मा बोले ‘एक कटोरा दूध लाओ।’ तुरन्त आज्ञा का पालन किया गया। महात्मा ने उसमें एक चुटकी राख डाल कर कुछ मंत्र सा पढ़ा और बोले- ‘ जो कोई इस दूध को पी लेगा वह मर जायेगा, और यह लड़का जीवित हो जायेगा।’ अब समस्या यह थी कि दूध को कौन पीवे ? माता-पिता बोले- ‘कही न जिया तो एक जान और गई। यदि हम रहेंगे तो पुत्र और हो जायेगा।’ पत्नी बोली- ‘इस बार जीवित हो जायेंगे तो क्या है, फिर कभी मरेंगे।’ मरना तो पड़ेगा ही। इनके न रहने पर मायके में सुख से जिन्दगी काट लूँगी। रिश्तेदार बगलें झाँकने लगे और पड़ोसी तो पहले ही नदारद हो गए। तब महात्मा ने कहा- ‘अच्छा, मैं ही इस दूध को पिये लेता हूँ।’ तो सभी प्रसन्न होकर बोले- ‘ हाँ महाराज! आप धन्य है। साधु संतों को जीवन ही परोपकार के लिए है।’ महात्मा ने दूध पी लिया और युवक को झकझोरते हुए बोले- ‘उठ बेटा! अब तो तुझे पूरी तरह ज्ञान हो गया कि कौन तेरे लिए प्राण देता है ?’ युवक तुरन्त उठ पड़ा और महात्मा के चरणों में गिर पड़ा। घर वालो के बहुत रोकने पर भी वह महात्मा के साथ चला गया और साँसारिक मोह त्याग कर आत्म कल्याण की साधना में लग गया।


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