उन स्थलों पर कौन यौगिक ग्रन्थिचक्र हैं, इसका परिचय इस प्रकार है—
अक्षर ग्रन्थि का नाम उसमें भरी हुई शक्ति :-
१. तत् तापिनी सफलता
२. स सफला पराक्रम
३. वि विश्वा पालन
४. तुर् तुष्टि कल्याण
५. व वरदा योग
६. रे रेवती प्रेम
७. णि सूक्ष्मा धन
८. यं ज्ञाना तेज
९. भर् भर्गा रक्षा
१०. गो गोमती बुद्धि
११. दे देविका दमन
१२. व वराही निष्ठा
१३. स्य सिंहनी धारणा
१४. धी ध्याना प्राण
१५. म मर्यादा संयम
१६. हि स्फुटा तप
१७. धि मेधा दूरदर्शिता
१८. यो योगमाया जागृति
१९. यो योगिनी उत्पादन
२०. न: धारिणी सरसता
२१. प्र प्रभवा आदर्श
२२. चो ऊष्मा साहस
२३. द दृश्या विवेक
२४. यात् निरञ्जना सेवा
गायत्री उपर्युक्त २४ शक्तियों को साधक में जाग्रत् करती है। यह गुण इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि इनके जागरण के साथ- साथ अनेक प्रकार की सफलताएँ, सिद्धियाँ और सम्पन्नता प्राप्त होना आरम्भ हो जाता है। कई लोग समझते हैं कि यह लाभ अनायास कोई देवी- देवता दे रहा है। कारण यह है कि अपने अन्दर हो रहे सूक्ष्म तत्त्वों की प्रगति और परिणति को देख और समझ नहीं पाते। यदि वे समझ पाएँ कि उनकी साधना से क्या- क्या सूक्ष्म प्रक्रियाएँ हो रही हैं, तो यह समझने में देर न लगेगी कि यह सब कुछ कहीं से अनायास दान नहीं मिल रहा है, वरन् आत्म- विद्या की सुव्यवस्थित वैज्ञानिक प्रक्रिया का ही यह परिणाम है। गायत्री साधना कोई अन्धविश्वास नहीं, एक ठोस वैज्ञानिक कृत्य है और उसके द्वारा लाभ भी सुनिश्चित ही होते हैं।