गायत्री महाविज्ञान

आत्मचिन्तन की साधना - विज्ञानमय कोश की साधना

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प्रथम साधना:—

रात को सब कार्यों से निवृत्त होकर जब सोने का समय हो, तो सीधे चित लेट जाइए। पैर सीधे फैला दीजिए, हाथों को मोड़कर पेट पर रख लीजिए। सिर सीधा रहे। पास में दीपक जल रहा हो तो बुझा दीजिए या मन्द कर दीजिए। नेत्रों को अधखुला रखिए।

अनुभव कीजिए कि आपका आज का एक दिन, एक जीवन था। अब जबकि एक दिन समाप्त हो रहा है, तो एक जीवन की इतिश्री हो रही है। निद्रा एक मृत्यु है। अब इस घड़ी में एक दैनिक जीवन को समाप्त करके मृत्यु की गोद में जा रहा हूँ।

आज के जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि से समालोचना कीजिए। प्रात:काल से लेकर सोते समय तक के कार्यों पर दृष्टिपात कीजिए। मुझ आत्मा के लिए वह कार्य उचित था या अनुचित? यह उचित था, तो जितनी सावधानी एवं शक्ति के साथ उसे करना चाहिए था, उसके अनुसार किया या नहीं? बहुमूल्य समय का कितना भाग उचित रीति से, कितना अनुचित रीति से, कितना निरर्थक रीति से व्यतीत किया? वह दैनिक जीवन सफल रहा या असफल? आत्मिक पूँजी में लाभ हुआ या घाटा? सद्वृत्तियाँ प्रधान रहीं या असद्वृत्तियाँ? इस प्रकार के प्रश्नों के साथ दिनभर के कार्यों का भी निरीक्षण कीजिए।

जितना अनुचित हुआ हो, उसके लिए आत्मदेव के सम्मुख पश्चात्ताप कीजिए। जो उचित हुआ हो उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दीजिए और प्रार्थना कीजिए कि आगामी जीवन में, कल के जीवन में, उस दिशा में विशेष रूप से अग्रसर करें। इसके पश्चात् शुभ्र वर्ण आत्म-ज्योति का ध्यान करते हुए निद्रा देवी की गोद में सुखपूर्वक चले जाइए।

द्वितीय साधना :-

प्रात:काल जब नींद पूरी तरह खुल जाए तो अँगड़ाई लीजिए। तीन पूरे लम्बे श्वास खींचकर सचेत हो जाइए। भावना कीजिए कि आज नया जीवन ग्रहण कर रहा हूँ। नया जन्म धारण करता हूँ। इस जन्म को इस प्रकार खर्च करूँगा कि आत्मिक पूँजी में अभिवृद्धि हो। कल के दिन-पिछले दिन जो भूलें हुई थीं, आत्म-देव के सामने जो पश्चात्ताप किया था, उसका ध्यान रखता हुआ आज के दिन का अधिक उत्तमता के साथ उपयोग करूँगा।

दिनभर के कार्यक्रम की योजना बनाइए। इन कार्यों में जो खतरा सामने आने को है, उसे विचारिए और उससे बचने के लिए सावधान होइए। उन कार्यों से जो आत्मलाभ होने वाला है, वह अधिक हो, इसके लिए और तैयारी कीजिए। यह जन्म, यह दिन पिछले की अपेक्षा अधिक सफल हो, यह चुनौती अपने आप को दीजिए और उसे साहसपूर्वक स्वीकार कर लीजिए।

परमात्मा का ध्यान कीजिए और प्रसन्न मुद्रा में एक चैतन्य, ताजगी, उत्साह, आशा एवं आत्मविश्वास की भावनाओं के साथ उठकर शय्या का परित्याग कीजिए। शय्या से नीचे पैर रखना मानो आज के नवजीवन में प्रवेश करना है।

आत्म-चिन्तन की इन साधनाओं से दिन-दिन शरीराध्यास घटने लगता है। शरीर को लक्ष्य करके किए जाने वाले विचार और कार्य शिथिल होने लगते हैं तथा ऐसी विचारधारा एवं कार्य प्रणाली समुन्नत होती है, जिसके द्वारा आत्म-लाभ के लिए अनेक प्रकार के पुण्य आयोजन होते हैं।


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