अंततः भुगतना ही पड़ा (kahani)

September 2003

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एक माली ने बगीचा लगाया और उसे हरा-भरा बनाया। एक दिन कोई गाय बगीचे में घुसी और पौधे चर गई। माली ने क्रोध में उसे ऐसे जोर से लट्ठ मारा कि गाय वहीं चक्कर खाकर गिर पड़ी और ढेर हो गई।

गौ हत्या का पाप आया और उसके सामने आकर खड़ा हो गया, बोला- “मैं आ गया और अब तुम्हारा सर्वनाश करूंगा।”

माली घबराया। बचने का कोई उपाय सोचने लगा, उसे एक कथा याद आई। पंडित के मुँह से उसने सुना था कि मनुष्य के हर एक अंग का मालिक एक देवता है, उसी की शक्ति से अवयव काम करते हैं। उस प्रसंग में हाथों का देवता इंद्र को बताया गया था। वह स्मरण आते ही माली की चिंता दूर हो गई।

गौ-हत्या के पाप से उसने कहा- “भाई मैंने नहीं इंद्र ने हत्या की है। तुम उसी के पास जाकर दंड दो।”

पाप चल पड़ा। इंद्रलोक पहुँचा। सारा घटनाक्रम सुनाया और कहा, “जब आपने गौ-हत्या की है, तो दंड भी आप ही को भुगतान होगा।”

इंद्र चकित रह गए। उन्होंने तो वैसा किया नहीं था, फिर माली ने उन पर किस कारण दोष लगाया। वे माली के पास चल पड़े। पाप को कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिए मना लिया।

इंद्र अजनबी रूप बनाकर उस बगीचे में पहुँचे, सुँदर उद्यान की भरपूर प्रशंसा की और उपस्थित लोगों से पूछा, “वह माली कौन है, जिसने इतनी कुशलता का परिचय दिया, देखने का मन है।”

माली के कान में भनक पड़ी तो वह दौड़ा गया और विस्तारपूर्वक बताने लगा, “पहले यहाँ जंगल था। उसने इन्हीं हाथों से भूमि बनाई। दूर-दूर से पौधे लाया। इन्हीं हाथों से उसे सींचा-संजोया। यह मेरा ही पुरुषार्थ है और अब मैं इन्हीं हाथों से फल-फूल की फसल बटोरता और कोठे भरता हूँ। उसने गर्वपूर्वक हाथ बढ़ाए और अपरिचित को दिखाए।

अपरिचित के रूप में आए इंद्र अपने असली स्वरूप में प्रकट हुए और बोले, “जब इन हाथों की कमाई का श्रेय और लाभ आप लेते हैं तो गौ-हत्या के पाप का दंड क्यों इंद्र पर लादते हैं। उसे भी आप ही भुगतिए।”

माली को अपनी जरूरत से ज्यादा समझदारी का दंड अंततः भुगतना ही पड़ा।


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