प्रभाव समाज पर नहीं पड़ता? (kahani)

September 2003

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एक राजा जंगल में भटक गया। प्यास से आकुल व्याकुल होकर वह इधर उधर घूमने लगा। उसे एक झोंपड़ी दिखाई दी। वह वहाँ पहुँचा। वहाँ एक बूढ़ा आदमी बैठा था। पास ही ईख का खेत था। राजा ने पानी माँगा। बूढ़े ने दो चार ईख तोड़े, कोल्हू में उन्हें पेरा, रस से एक कटोरा भर गया। राजा ने वह पिया और उसका मन पुलकित हो गया। उसने बूढ़े से पूछा, “क्या ईख पर कर भी लगता है?” बूढ़े ने कहा, “हमारा राजा दयालु है। वह भला हमसे क्या कर लेगा?” राजा ने मन ही मन सोचा, “ऐसी मीठी चीज पर अवश्य कर लगना चाहिए।” मन में संकल्प विकल्प उठने लगे। आखिर ‘कर’ लगाने का निश्चय कर लिया। राजा ने चलते चलते बूढ़े से कहा, “एक प्याला रस और पिलाओ।” बूढ़े ने फिर दो चार ईख तोड़े। उन्हें कोल्हू में पेरा, पर रस से कटोरा नहीं भरा, यह क्यों?” बूढ़ा दूरदर्शी था। उसने कहा, “लगता है मेरे राजा की नीयत बिगड़ गई, अन्यथा ऐसा नहीं होता!” राजा मन ही मन पछताने लगा।

राजा की नीयत का इतना असर होता है, तो क्या धर्माध्यक्षों, राजनेताओं अधिकारियों एवं गणमान्य व्यक्तियों के आचरण का प्रभाव समाज पर नहीं पड़ता?


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