हमारे सामने ही गा लो (kahani)

September 2003

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पति पत्नी में अनबन हो गई। एक दूसरे को कटु शब्द बोले गए। मनों को चोट पहुँची और बोलचाल बंद हो गई।

उनका एक सात वर्षीय बालक था। वह कहीं से गीत के बोल सुन आया, “मुख से कड़ुवे बोल न बोल।” बच्चे को रुचा, वह उसे पिता के कमरे में बैठकर गुनगुनाने लगा।

पिता का उस पर ध्यान गया तो चौंके, मन में खीझे, “क्या मैं ही कड़ुवा बोलता हूँ?” बच्चे से बोले, “बेटा जा, अपनी माँ के कमरे में जाकर गा।”

भोला बालक वही गीत माँ के कमरे में जाकर गाने लगा। माँ ने सुना तो उसे खीझ भी आई, हंसी भी। वह भी बोली, “जा अपने पिताजी के पास बैठकर गा।”

बालक फिर पिताजी के कमरे में जाकर गाने लगा तो डाँट पड़ गई। बेचारा क्या करता? दोनों कमरों के बीच बरामदे में बैठकर गाने लगा, ‘मुख से कड़ुवे बोल न बोल।’ आवाज सुनकर माता पिता दोनों अपने अपने कमरे से निकले बच्चे को रोकने, पर एक दूसरे को देखकर चुप रह गए।

बालक ने दोनों को देखा, भाव पढ़े और बोला, “आप दोनों को यह गाना अच्छा नहीं लगता तो अलग बैठकर गा रहा हूँ, अब आपको क्या शिकायत है?”

पति पत्नी ने एक दूसरे को देखा, अपनी भूल पर हंसी आ गई। दोनों बालक के पास गए, बोले, “अच्छा भाई, हमें भी अच्छा लगता है। अब हमारे सामने ही गा लो।”


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