अब्राहम लिंकन को बचपन में महापुरुषों की जीवनी पढ़ने का बहुत शौक था। गरीबी के कारण पुस्तकें खरीद तो नहीं सकते थे, पर जहाँ-तहाँ से माँगकर लाते, पढ़ते, लौटाते और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान करते थे।
एक बार वे दस मील चलकर एक पुस्तक माँगकर लाए। रात को वर्षा हुई। छत टपकी और पुस्तक भीग गई। सुरक्षित लौटाने की शर्त कैसे निभेगी, लिंकन इस चिंता में डूबे जा रहे थे।
नियत समय पर लौटाने पहुँचे, पर साथ ही उसके खराब होने की बात भी कही। झंझट का फैसला यह हुआ कि लिंकन उस सज्जन के यहाँ इतने दिन मजदूरी करें, जितने में नई पुस्तक खरीदने जितना पैसा चुक जाए। लिंकन खुशी-खुशी तैयार हो गए और पैसे चुकाकर वापस लौटे।