उन दिनों इटली और आस्ट्रिया के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। जीतने की धुन में आगे बढ़ने और शत्रु सैनिकों को मारने का जुनून दोनों पक्षों पर सवार था, पर मृतकों की और घायलों की देखभाल की, किसी पक्ष को चिंता न रहती थी। उन्हें दयनीय दुर्दशा में पड़े रहना पड़ता था।
इस समस्या पर जेनेवा बैंक के एक कर्मचारी जीन हैनरी डूमा ने भावनापूर्ण मनःस्थिति से विचार किया और तात्कालिक उपाय सोचा। उन्होंने नौकरी छोड़ दी। फ्राँसीसी डालजीरिया में एक फार्म खरीदा और दोनों पक्षों से संपर्क साधकर इस बात पर सहमत किया कि घायलों की चिकित्सा और मृतकों की अन्त्येष्टि की सुविधा उन्हें दी जाए। इस प्रयास का नाम रखा गया, ‘रैडक्रास’। उसका आरंभ तो छोटे रूप में हुआ, पर आएदिन होने वाले युद्धों में उसकी उपयोगिता बहुत बढ़ गई। अनेक देशों की सरकारों ने इसमें सहयोग किया। एक आचार संहिता बनी कि युद्ध क्षेत्र में घायलों को उठाने के लिए जाने वाले रैडक्रास वाहनों को कोई रोकेगा नहीं। रैडक्रास की आज बहुत ही समुन्नत स्थिति है। इसका श्रेय डूमा को है, जिन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला।