अपनों से अपनी बात - इस वर्ष के क्षेत्रीय कार्यक्रमों का योजनाबद्ध स्वरूप

September 2003

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गायत्री परिवार एक विशिष्ट लक्ष्य लेकर विशिष्ट कार्ययोजना के साथ विनिर्मित एक ऐसा संगठन है, जिसे हिमालयवासी सूक्ष्मशरीरधारी सत्ताओं का संरक्षण प्राप्त है। इसकी संस्थापक सत्ता परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं शक्तिस्वरूपा माता भगवती देवी ने जीवन भर वाणी, लेखनी और अपने आचरण से दिव्य प्रेरणाएँ संचरित कीं। हम सबको विरासत में अपने विराट ज्ञान एवं भाव संवेदनाओं की पूँजी दी। यह समिति लक्ष्य लेकर चलने वाले अन्य गैर सरकारी अथवा धार्मिक संगठनों की तरह नहीं है। इसका तो ध्येय ही युग का नए सिरे से निर्माण करना हैं ऐसे में उन सैनिकों की भूमिका विशिष्ट हो जाती है, जो इस संगठन रूपी विराट भवन की नींव के पत्थर हैं, वे ईंटें हैं, जिन्हें परस्पर जोड़कर भवन खड़ा किया गया है मिशन के सभी शुभेच्छु, मिशन की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने वाले पर्यवेक्षकों एवं अन्य संगठनों के मूर्द्धन्य आदि यही अपेक्षा रखते हैं कि युग सैनिक जो भी कार्य करेंगे उस गुरुसत्ता की गरिमा के अनुरूप ही करेंगे। सारे समाज व भारतवर्ष ही नहीं, पूरे विश्व को ‘अखिल विश्व गायत्री परिवार’ से बड़ी भारी अपेक्षाएँ हैं।

हम मिशन के प्रौढ़ताकाल के प्रारंभिक समय से गुजर रहे हैं। 1926 में अखण्ड दीप प्रज्वलन के साथ आरंभ हुआ यह संगठन अपनी शतसूत्री युग निर्माण योजना के साथ एक लंबी यात्रा पूरी कर इस मुकाम तक आ पहुँचा है, जहाँ अपने वाले नौ वर्ष विषम परिवर्तनों से भरे हुए हैं। साधनात्मक स्तर पर यदि हमारी अच्छी तैयारी नहीं होगी तो हम उस कार्य को कर पाने में समर्थ नहीं हो पाएंगे, जो हमें गुरुदेव की सत्ता सौंप गई है। प्रस्तुत नवरात्रि की पावन मेला (26 सितंबर-4 अक्टूबर 23) में भी हमें अपने आपको बार-बार यह याद दिलाना चाहिए कि साधना की धुरी पर ही हमारा व्यक्तित्व परखा गया था एवं में एक विराट अभियान का अंग बनाया गया था। गायत्री उपासना एवं जीवन साधना जिसकी जितनी गहरी होगी, उतना ही वह गुरुसत्ता के उच्चस्तरीय अनुदानों का भागीदार बनेगा। व्यक्तित्व में जब जीवन-साधना फलीभूत होने लगेगी तब हम आराधना प्रधान विभिन्न आँदोलनों को गति दे सकेंगे।

छोटे-छोटे रूपों में स्थान-स्थान पर साधना की धुरी पर हमारे शेष छहों आँदोलन चल पड़े है। जिसने भी साधनात्मक अवलंबन छोड़ा है, वह भटका है। आँदोलन समूह अपने स्तर पर अपना प्रभाव दिखा भी रहे है। सातों जोन्स के माध्यम से उनका सुनियोजन हो सके, यह प्रयास भी केन्द्र द्वारा सतत किया जा रहा है। अभी प्रशिक्षण की आवश्यकता सभी ओर अनुभव की जा रही है, जिसकी पूर्ति नवरात्रि के पूर्व वर्षा ऋतु के विशेष क्षेत्रीय सत्रों द्वारा करने का प्रयास किया जा रहा है।

अब बारी आती है हमारे इस वर्ष के अक्टूबर माह से आरंभ होने वाले क्षेत्रीय आयोजनों की। सामान्यतः हर वर्ष माह अक्टूबर से मार्च अंत तक ये कार्यक्रम भिन्न-भिन्न रूपों में सारे भारत में संपन्न होते रहते हैं। क्षेत्र में आँदोलनों की गरमी बढ़ी है तो इन आयोजनों की माँग भी बढ़ी है। कई क्षेत्रीय कार्यकर्त्ता अपनी ढपली अपना राग बजाते हुए अव्यावहारिक कार्यक्रम रख लेते हैं एवं फिर केंद्र से टोली भेजने का दबाव डालते हैं। परचे भी छाप लेते हैं एवं उसमें भी अपनी विवशता का रोना रोते हैं। इन सब परिस्थितियों से बचने के लिए एवं क्षेत्र का एक आदर्श अनुशासन स्थापित करने हेतु केन्द्र ने क्षेत्रीय आयोजनों का एक स्वरूप बनाया है। बनाए गए ढांचे एवं शृंखलाबद्ध कार्यक्रमों के अतिरिक्त किन्हीं फुटकर कार्यक्रमों की केन्द्रीय टोली से संपन्न कराने की छूट नहीं दी जाएगी। सभी फुटकर कार्यक्रम अभी 15 अक्टूबर से पूर्व ही पूरे करा लिए जा रहे हैं।

इन आयोजनों के अतिरिक्त इस वर्ष सारे देश में लगभग बीस कार्यक्रम सम्मेलन भी संपन्न होंगे। अक्सर आयोजनों में यह देखा जाता है कि अपने सभी कार्यकर्त्ता विभिन्न स्थानों पर सक्रिय होते हैं, अमुक-अमुक जिम्मेदारियां उन्हें सौंपी हुई होती है। वे चाहकर भी उस महत्त्वपूर्ण कार्यकर्त्ता गोष्ठी में शामिल नहीं हो पाते, जिसे केन्द्रीय प्रतिनिधि संपन्न कर रहे हैं। सुनने वाले वही आम जनता के सदस्य अथवा जिम्मेदारी न निभा सकने वाले परिजन होते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि इस वर्ष के आयोजनों में गोष्ठियाँ नहीं होंगी। चार दिन के इन प्रज्ञोपनिषद्-यज्ञ-प्रज्ञापुराण कथा प्रधान आयोजनों में कार्यकर्त्ताओं की सुविधानुसार ऐसा समय रखा जाएगा जिसमें जिम्मेदार स्तर के सभी कार्यकर्त्ता केन्द्रीय प्रतिनिधि से मिल लें, जोनल स्तर पर एक या दो बड़े कार्यकर्त्ता सम्मेलन दो दिवसीय आयोजन के रूप में इसलिए रखे जा रहे हैं ताकि आँदोलनों की भावी कार्ययोजना की, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में भागीदारी की विस्तार से चर्चा कर संकल्प लिए जा सकें।

इस वर्ष विगत साल की ही तरह महिला जागरण की टोलियाँ निकलेंगी। उनकी संख्या माँग के अनुरूप व यहाँ की परिस्थितियों को देखते हुए निर्धारित की जाएगी। आयोजनों की एकरूपता रखते हुए छह सदस्यीय चार दल, चार दिवसीय आयोजन एवं तीन दिवसीय महिला सम्मेलन सहित आयोजनों की कुल संख्या अभी एक सौ आठ रखी गई है। संभावित स्थानों के चयन भी कर लिए गए हैं। यह संख्या कम या ज्यादा भी हो सकती है।

आयोजन स्थलों का चयन इस पर निर्भर करता है कि जिस स्थान से माँग आ रही है वहाँ समुचित तैयारी पहले से है कि नहीं? अखण्ड ज्योति, युग निर्माण योजना, प्रज्ञा अभियान पत्रिका के सुनिश्चित संख्या में सदस्य पहले से वहाँ बना लिए गए हैं कि नहीं? प्रयाज के रूप में क्षेत्रीय छोटे-छोटे कार्यक्रम वहाँ पहले से संपन्न हो चुके हैं कि नहीं, ज्ञानघट कितने सक्रिय हैं वह कितने संकल्पित? पुराने दीक्षित परिजनों, संस्कारों से जुड़े परिजनों से संपर्क बन सका या नहीं? सातों आँदोलनों में कुछ गति आई या नहीं? यदि आई तो उपलब्धियाँ क्या-क्या हैं? उन सभी का पर्यवेक्षण करके ही यह आयोजन दिए जाएंगे।

रूपरेखा- चार दिवसीय आयोजनों की रूपरेखा इस प्रकार है- प्रथम दिन प्रातः स्थानीय स्तर पर शोभायात्रा का संचालन। टोली का पूर्व के स्थान से पहुँचना, टोली में कुछ छह सदस्य (दो नायक, एक सहायक, एक गायक, एक वादक, एक चालक) होंगे। संध्या 7 से − तक केन्द्रीय प्रतिनिधि द्वारा कार्यक्रम का स्वरूप व गुरुसत्ता के संदेश के साथ भावी तीन दिनों के अनुशासनों का स्वरूप समझना। दूसरे दिन प्रातः 55.3 से 6.3 ध्यान-साधना टेप द्वारा संपन्न कराई जाएगी। 6.3 से 7.3 का समय योग-व्यायाम एवं योग प्रधान परामर्श हेतु रखा गया है। 7.3 से 12.3 यज्ञ का समय रहेगा।

कुँडों की संख्या, आयोजकों द्वारा की गई पूर्व तैयारी, क्षेत्रविशेष की परिस्थितियाँ एवं अधिकाधिक प्राणवान परिजनों (जो आगे चलकर समयदानी भी बन सकते हैं) की संभावित संख्या को देखते हुए निर्धारित की जाएगी। पूज्यवर के निर्देशानुसार यज्ञ कुँडी न होकर मुँडी हो, अर्थात् यज्ञीय भाव से जुड़ने वाले समर्पित परिजनों की भागीदारी हमारा प्रधान लक्ष्य हो न कि कुँडों की संख्या। ये यज्ञ 24 कुँडीय, 51 कुँडीय एवं एक सौ आठ कुँडीय भी हो सकते हैं। यज्ञों में संस्कार अधिकाधिक संपन्न हों, यह ध्यान हमारे परिजन रखेंगे।

दोपहर दो बजे तक भोजनावकाश, उसके बाद अपराह्न 2 से 4 बजे तक साधना-संगठन आँदोलन प्रधान गोष्ठियाँ होगी। भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा और उसके अनुयाज, रचनात्मक आंदोलन की रूपरेखा संबंधी चर्चाएँ भी इसी समय कर ली जाएँगी। सायंकाल प्रज्ञोपनिषद् प्रधान ऋषि संदेश मंच से प्रतिनिधियों द्वारा प्रसारित होगा। यह इस वर्ष की विशिष्टता होगी। परमपूज्य गुरुदेव के विराट वाङ्मय में प्रज्ञोपनिषद का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। सूत्र रूप में किए गए अध्यात्म के इन मार्मिक प्रतिपादनों को विज्ञानसम्मत ढंग से तथा रुचिकर दृष्टाँतों-उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया जाएगा।

तीसरे दिन दोपहर भोजन तक यथावत क्रम रहेगा। भोजनोपराँत दीपयज्ञ की तैयारी एवं कार्यकर्त्ताओं-आगंतुकों से भेंट-परामर्श का क्रम चलेगा। सायं 7 से − तक विराट् दीप महायज्ञ संपन्न होगा, जिसमें देवसंस्कृति विश्वविद्यालय ज्ञानघट स्थापना के संकल्प कराए जाएंगे।

चौथे दिन प्रातः स्वल्पाहार तक क्रम यथावत रहेगा। 8 से 12.3 यज्ञ एवं पूर्णाहुति का क्रम संपन्न होगा। आम जनता से केन्द्रीय टोली की भागीदारी इसी के साथ पूरी हो जाएगी। भोजनावकाश के बाद टोली के सदस्य स्थानीय कार्यकर्त्ताओं, ट्रस्टीगणों, आँदोलन समूह के कार्यकर्त्ताओं से मिलते रहेंगे तथा 7 से − संध्या को समाधानपरक गोष्ठी लेंगे। कार्यक्रम का अनुयाज्ञ कैसे हो? स्वस्थ समीक्षा कर भविष्य की कार्ययोजना कैसे बनाई जाए? यह चर्चा स्थानीय स्तर के कार्यकर्त्ताओं के मध्य कर रात्रि विश्राम के बाद पाँचवे दिन प्रातः टोली अगले क्रम के लिए रवाना हो जाएगी।

इसी प्रकार दो दिवसीय कार्यकर्त्ता सम्मेलनों की रूपरेखा बनाई गई है। पूर्व संध्या की वेला में आ चुके कार्यकर्त्ताओं एवं स्थानीय स्तर पर सम्मिलित परिजनों को सम्मेलन का उद्देश्य समझाया जाएगा। साथ ही विभिन्न जिलों से आए कार्यकर्त्ताओं का परिचय आदि का क्रम रहेगा। अगले दिन जो सम्मेलन का प्रथम दिन होगा प्रातः 6 से 7 बजे त्रिवेणी संगम वाला सामूहिक ध्यान संपन्न कराया जाएगा। 7.15 से 8.15 योग-व्यायाम, योग प्रधान परामर्श का क्रम रहेगा। 8.15 से −.15 जलपान −.3 से 11.3 तक प्रथम बैठक संपन्न होगी। इसमें चर्चा का मुख्य आधार रहेगा-युग निर्माण के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए कार्ययोजना का स्वरूप क्या होगा? जो भी जिले इस सम्मेलन में भागीदारी कर रहे हैं, उनकी भौगोलिक एवं सामाजिक स्थिति क्या है? इस स्थिति को दृष्टिगत रख कितने समयदानी, समर्थ परिजनों एवं संगठित इकाइयों की जरूरत पड़ेगी, वर्षवार लक्ष्य चरणबद्ध रूप से क्या रखा जाए? आँदोलनों में परस्पर सहभागिता तथा अन्यान्य संगठनों से अपना संबंध किस तरह हो, यह चर्चा भी इसमें होगी।

भोजनावकाश के बाद समूह चर्चा जिलेवार होगी। व्यक्तिगत भेंट-परामर्श का क्रम इसके बाद सात बजे तक चलता रहेगा। सात से नौ सायंकाल उपलब्धियों पर चर्चा, क्षेत्रवार संगठनों की प्रस्तुतियाँ तथा केन्द्रीय प्रतिनिधियों द्वारा देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के विराट लक्ष्य एवं सप्त आँदोलनों को स्वरूप को सामने रखते हुए मार्गदर्शन दिया जाएगा।

सम्मेलन के दूसरे दिन प्रातः −.15 तक क्रम यथावत रहेगा। −.15 से 11.15 तक जिलेवार संगठनों की स्थिति क्या हैं? कहाँ तक विकसित करने की योजना है, आगे क्या-क्या आँदोलन व संकल्प लेने जा रहे हैं, इस पर समूह चर्चा होगी। यह भी निर्धारण होगा कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के लिए ज्ञानघटों की स्थापना से लेकर अन्य कार्यों में परिजन जिलेवार सहभागिता किस प्रकार करेंगे। आँदोलनों के लिए वे क्या करेंगे, इस पर चर्चा एवं विगत दिन की गोष्ठी निष्कर्षों पर चर्चा होगी। भोजनावकाश के बाद अपराह्न 2 से 4 बजे तक हर जिले के लिए निर्धारित कार्ययोजना के अनुसार पहले चरण के (एक वर्ष में पूरे किए जाने वाले) संकल्पों का स्वरूप निश्चित किया जाएगा। उसमें समर्थ समयदानियों, सहयोगियों की सूचियाँ, संगठन एवं आँदोलनों को पुष्ट और गतिशील बनाने के लिए जिम्मेदार परिजनों का निर्धारण, मंडलों, संगठन समूहों, समन्वय समितियों के विकास-विस्तार के लक्ष्यों आदि का सुनिश्चित निर्धारण होगा। मंच पर स्थापित देव प्रतीकों, गुरुसत्ता, कलश प्रज्वलित (पाँच या अधिक) दीपकों की साक्षी में भाव भरे वातावरण में विधिवत संकल्प कराए जाएंगे। इसके बाद सुदूर क्षेत्रों से आए अपने-अपने स्थान को रवाना हो सकते है। 6.3 से 8.3 के बीच दीपयज्ञ संपन्न होगा, जिसमें वे चाहें तो भाग ले सकते हैं। स्थानीय स्तर पर सभी परिजनों की भागीदारी रहेगी ही। संकल्प की सार्वजनिक घोषणा एवं युगऋषि के संदेश के साथ सम्मेलन का दीप महायज्ञ के माध्यम से समापन हो जाएगा। ये सभी सम्मेलन विभिन्न आयोजनों की शृंखला के बीच रखे जा रहे हैं, जिनमें चल रही टोली के अतिरिक्त केन्द्र के वरिष्ठ प्रतिनिधिगणों की भागीदारी भी दो दिन के लिए रहेगी। जिस जिले में महायोजन होगा, उसमें सम्मेलन नहीं होगा, न ही कोई अन्य विराट आयोजन। सम्मेलन व आयोजन के बची दो समीप के स्थानों में परस्पर दो-तीन माह का अंतर रहेगा।

सामान्यतया विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों की माँग क्षेत्र से रहती है। ये यज्ञायोजन प्रधान होते हैं अथवा प्रज्ञा पुराण की कथा के निमित्त होते हैं। इनके अलावा योग प्रशिक्षण, प्रबुद्ध वर्ग गोष्ठियाँ, सामूहिक विवाह संस्कार, प्राण प्रतिष्ठा आयोजन आदि के निमित्त भी अलग से कार्यक्रम माँगें जाते हैं। प्रयास यह किया जा रहा है कि इन विविध माँगों को छह सदस्यीय टोली द्वारा संपन्न किए जा रहे इन आयोजनों-सम्मेलनों में ही समाहित कर लिया जाए। छोटे-छोटे आयोजन व उपर्युक्त में से भी काफी कुछ स्थानीय स्तर पर भी संपन्न किया जा सकता है। इनके लिए केंद्र की टोली अब अपवाद रूप में ही कहीं भेजी जाएगी। आशा है कि अपना विराट परिवार इस क्षेत्रीय अनुशासन का क्रम इस वर्ष बना लेगा, ताकि आराध्य सत्ता के दिव्य स्वप्नों को आगामी वर्षों में पूरा किया जा सके।


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