महानता की पहचान (kavita)

September 2003

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क्षुद्रता जीकर, यहाँ कोई महान हुआ नहीं, ‘सत्यवानों’ को वरण करती रहीं ‘सावित्रियाँ’। टसतसेवी, प्राण कोई, ‘सत्यवान’ हुआ नहीं। क्षुद्रता जीकर यहाँ कोई महान हुआ नहीं॥

भूलकर पुरुषार्थ, पौरुष, भाग्य का रोना लिए, पुरुष कोई इस धरा का भाग्यवान हुआ नहीं। क्षुद्रता जीकर यहाँ कोई महान हुआ नहीं॥

वेद की गरिमामयी ऊषा कहाँ से देखते, सूर्य के निकले बिना तो नवविहान हुआ नहीं। क्षुद्रता जीकर यहाँ कोई महान हुआ नहीं ॥

प्राण पाए किस तरह से भावना का रस भला, प्राप्ति से पहले मनुज मन बोधवान हुआ नहीं। क्षुद्रता जीकर यहाँ कोई महान हुआ नहीं।

-लाखनसिंह भदौरिया ‘सौमित्र’

*समाप्त*


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