कोतवाल को दादू महाराज से मिलना था। रास्ते में एक आदमी मिला, जो सड़क के काँटे साफ कर रहा था।
उससे पूछा, क्यों रे, दादू महाराज कहाँ रहते हैं? दादू जी ने इशारे से बता दिया कि सामने वाली झोंपड़ी उन्हीं की है।
रूखा जवाब सुनकर कोतवाल नाराज हुए और गाली देते हुए झोंपड़ी पर चले गए। सिर पर काँटे का गट्ठा लादे दादू पहुँचे, तो कोतवाल को गाली देने का दुःख हुआ और क्षमा माँगी। दादू ने कहा, इसमें आपका कोई दोष नहीं। दोष उस पूर्वाग्रह भरी आपकी मनुष्य संबंधी मान्यता का है, जो आपके मुख से ऐसे वचन निकालती है। मनुष्य मात्र में आप ईश्वर को देखने लगेंगे, तो आदत स्वतः छूट जाएगी।