गुरुपूर्णिमा विशेष−3 - बंदउँ गुरुपद पदुम परागा

July 2002

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गुरु चरणों की भक्ति में तप साधना की पूर्णता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी काव्य व्यञ्जना में इसे तात्विक अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने रामचरित का गान करने से पहले सद्गुरु चरणों का चरित बखान किया है। उनकी कालजयी दैवी कृति श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड के प्रारम्भ में यह प्रकरण है- मंगलाचरण के सात श्लोकों व वन्दना के चार दोहों के बाद गुरु चरणों की महिमा का गान है। कलेवर की दृष्टि से अत्यन्त लघु होते हुए भी भक्ति संवेदना की दृष्टि से यह प्रकरण महाविराट् है। इसमें सद्गुरु चरणों के स्वरूप का दर्शन है। इसका आध्यात्मिक तत्व चिन्तन है। साथ ही इनकी भक्ति का साधना विज्ञान है। इसका गुरु भक्ति में लीन साधकों के लिए विशेष महत्व है।

इसके चिन्तन, मनन, पाठ-पठन व निदिध्यासन से अनेकों को अपने गुरुदेव का संग-सुपास मिला है। उन्होंने दिव्य लोक में रह रहे अपने सद्गुरु की चेतना का संस्पर्श पाने में सफलता प्राप्त की गोस्वामी जी के शब्दों का माँत्रिक महत्व है। इसकी गुणवत्ता तब शत-सहस्र गुणित हो जाती है, जब अन्तर्चेतना में इसका अर्थ बोध समाहित हो जाय। गुरुचरण चरित के मंत्रदृष्टा महाकवि तुलसी इसका प्रारम्भ करते हुए कहते हैं-

बंदउँ गुरु पद कंज, कृपा सिन्धु नर रूप हरि। महामोह तम पुञ्ज, जासु वचन रविकर निकर॥

मैं सद्गुरु के चरण कमल की वन्दना करता हूँ। मेरे गुरुदेव कृपा के सागर और नर रूप में स्वयं नारायण हैं। उनके वचन महामोह के घने अंधेरे का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं।

गोस्वामी जी की इन काव्य पंक्तियों में बड़ी स्पष्टोक्ति है कि सद्गुरु मनुष्य देहधारी होते हुए भी सामान्य मनुष्य नहीं हैं। वह नर रूप में नारायण हैं। जो उनके प्रति इसी गहरी श्रद्धा के साथ स्वयं को अर्पित करता है, उसे ही उनके वचनों से तत्व बोध होता है। उसके जीवन में सद्गुरु के वचन सूर्य की किरणों की तरह अवतरित हो हैं। और महामोह के घने अंधेरे को पल भर में नष्ट कर डालते हैं। महाकवि आगे कहते हैं कि गुरुदेव भगवान् के चरण ही नहीं, उनके चरणों की धूलि की भी भारी महत्ता है। वह उसकी भी वन्दना करते हैं-

बंदउँ गुरुपद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिय मूरिमय चूरन चारु। समन सकल भवरुज परिवारु॥

सुकृति सम्भु तन विमल विभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥

जन मन मंजु मुकर मलहरनी। किए तिलक गुन गन बस करनी॥

सद्गुरु के चरण कमलों की धूलि की मैं वन्दना करता हूँ। गोस्वामी जी का कहना है कि यह चरण रज साधारण नहीं है। इसको श्रद्धाभाव से धारण किया जाय, तो इससे जीवन में कई तत्व प्रकट होते हैं। इनमें से पहला तत्व सुरुचि है। वर्तमान में हममें से प्रायः सभी कुरुचि से घिरे हैं। हमारी रुचियाँ मोह और इन्द्रिय विषयों की ओर है। सुरुचि के जाग्रत् होते ही उच्चस्तरीय जीवन के प्रति जागृति होती है। दूसरा तत्व है सुवास। गुरु चरणों की धूलि का महत्व समझ में आते ही जीवन सुगन्धित हो जाता है। वासनाओं व कामनाओं की मलिन, दूषित दुर्गन्ध हटने-मिटने लगती है। इसके साथ ही तीसरा तत्व प्रकट होता है- सरसता का-संवेदना का। निष्ठुरता विलीन होती है, संवेदना जाग्रत् होती है। इन सारे तत्वों के साथ विकसित होता है अनुराग, अपने गुरुदेव के प्रति। जीवन में गुरुभक्ति तरंगित होती है।

गुरुचरणों की यह धूलि अमरमूल या संजीवनी बूटी का चूर्ण है। इससे समस्त भवरोग अपने पूरे परिवार के साथ नष्ट हो जाते हैं। यह चरण रज महापुण्य रूपी शिव के शरीर पर शोभित होने वाली पवित्र विभूति है। इससे जीवन में सुन्दर कल्याण और आनन्द प्रकट होते हैं। यह गुरु चरणों की रज गुरुभक्तों के मन रूपी दर्पण के मैल को दूर करने वाली है। इसे धारण करने से सभी सद्गुण अपने आप ही वश में हो जाते हैं। गोस्वामी जी के इस कथन में काव्योक्ति तो है पर अतिशयोक्ति जरा भी नहीं है। सद्गुरु के चरणों से तप तेज झरता है। उनकी चरण धूलि धारण करने का अर्थ है कि हम गुरुदेव भगवान् द्वारा बतायी गयी जीवन नीति के अनुगमन-अनुसरण के लिए प्रतिबद्ध हो गए हैं। इससे कुछ भी असम्भव नहीं है। महाकवि आगे कहते हैं-

श्री गुरु पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हियँ होती॥

दलन मोहतम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥

उघरहिं विमल विलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥

सूझहिं रामचरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहं जो जेहि खानिक॥

सद्गुरु के चरण नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान हैं। इनके स्मरण से हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। गुरुदेव चरणों के स्मरण-ध्यान से साधना जगत् के महासत्य का बड़े ही सहज ढंग से साक्षात्कार हो जाता है। इससे हृदय में जो दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है, उससे साधक के जीवन में एक अपूर्व रूपांतरण होता है। जीवन का सारा अन्धकार प्रकाश में परिवर्तित-रूपांतरित हो जाता है। बड़े भाग्यशाली होते हैं वे जो इस रूपांतरण की अनुभूति प्राप्त करते हैं। सद्गुरु के चरणों का ध्यान जब हृदय में प्रगाढ़ होता है, तो हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं। संसार की महारात्रि-कालरात्रि विलीन-विसर्जित हो जाती है। उसके दुःख, दोष भी मिट जाते हैं। हृदय के निर्मल नेत्रों के खुलने से ईश्वर तत्व का, राम चरित या परमात्म तत्व का बोध हो जाता है। इसमें जहाँ-जिस जगह मणि-माणिक के रत्न भण्डार गुप्त पड़े हैं, सबके सब नजर आने लगते हैं। सद्गुरु चरणों की कृपा से उलझी जीवन की पहेली सुलझ जाती है। मानव जीवन का रहस्य उद्घाटित-उजागर हो जाता है। गुरुचरणों के ध्यान से उपजी दिव्यदृष्टि का प्रभाव बताते हुए गोस्वामी जी महाराज की काव्य पंक्तियाँ हैं-

जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान। कौतुक देखत सैल बन भूतल भूमि निधान॥

गुरुपद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिय दृग दोष विभंजन॥

गुरु चरणों की रज को यानि कि गुरु चरणों से निकल रही तप-तेज की किरणों का अपनी आँखों में अंजन लगाने से सारे दृष्टि दोष नष्ट हो जाते हैं। सामान्य क्रम में साधारण आँखों से सभी को सामान्य रूप से दिखता ही है। फिर भी प्रायः सभी की विवेक दृष्टि दूषित होती है। सत् और असत् का भेद समझ में नहीं आता। जीवन की सही राहें समझ नहीं आतीं। यह दृष्टिदोष सद्गुरु के चरणों की धूलि से अर्थात् उनके तप-कणों के प्रसाद से ही ठीक होता है। और तब साधक को बड़ी ही अद्भुत दृष्टि का वरदान मिलता है।

गोस्वामी जी कहते हैं कि कुछ ऐसा होता है, जैसे साधक ने अपनी आँखों में सिद्धाञ्जन लगा लिया हो। यह सिद्धाञ्जन नाथ योगियों की ताँत्रिक परम्परा में तैयार किया जाता है। यह एक तरह का आँखों में लगाया जाने वाला काजल है। इसे लगाने से पर्वत, वन और पृथ्वी में गड़े गुप्त खजाने साफ-साफ नजर आने लगते हैं। गुरु चरणों के तत्वद्रष्टा महाकवि तुलसी कहते हैं कि ठीक ऐसा ही होता है गुरुचरणों के झरने वाले तप-तेज को अपनी आँखों में लगा लेने पर। इससे ऐसी दिव्य दृष्टि का वरदान मिलता है कि संसार की ओट में छिपा हुआ ईश्वर तत्व बड़ा ही साफ नजर आने लगता है। मंत्रद्रष्टा महाकवि तुलसीदास जी महाराज के इस तत्व ज्ञान का कथा सार अत्यन्त सूक्ष्म किन्तु बड़ा ही प्रभावशाली है। वह कहते हैं- गुरुभक्ति से, गुरुचरणों की ध्यान साधना से गुरुभक्त साधक के जीवन में तप-साधना की प्रत्येक उपलब्धि सहज रूप में अवतरित हो जाती है। गुरु चरणों की कृपा से तत्वज्ञान, ब्रह्मतादात्म्य, ईश्वर कृपा सभी कुछ सुलभ हो जाती है। हममें से हर एक के लिए यह गुरुपूर्णिमा- गुरु चरणों की इसी कृपा की अनुभूति का पर्व है।


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