हर तूफान के बाद मने एक उत्सव

July 2002

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संवेदना जब जीवन से झरती है, तो सन्देश बनती है। यदि इसका उद्गम स्रोत अस्तित्व की गहराइयों में समाए सघन अहसास हैं, तो इससे दिल को छूने वाले काव्य के स्वर फूटते हैं। वे स्वर असंख्यों को प्रेरित-परिवर्तित करते हैं। ग्यारह वर्षीय मैटी स्टेपनेक इन दिनों ऐसी ही काव्य सृष्टि कर रहा है। माँसपेशियों की असाध्य बीमारी से उसका जीवन रस लगभग सूख चुका है। लेकिन जो कुछ भी थोड़ी सी बूँदें बाकी है, उन्हें वह उदारतापूर्वक अपने काव्य स्वरों से बाँट रहा है। उसकी कविताएँ बेहद मर्मस्पर्शी है। पढ़ने वाले के निराशा भरे जीवन में बरबस आशा कि किरणों का उजाला बिखेर देती है।

चिकित्सा विशेषज्ञ हैरान और हतप्रभ हैं इस मरणोन्मुख बालक की अदम्य जिजीविषा से। वे स्वयं भी उससे प्रेरणा पाते हैं। पिछले वर्ष ग्यारह सितम्बर को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर हुए हमले के बाद से अमेरिकन सुकून हासिल करने के लिए मैटी की कविताओं से अपने जीवन के लिए प्रेरणा व दिशा पा रहे हैं। मैटी स्टेपनेक की कविताओं का जीवन दर्शन है ‘जिन्दगी में आए हर तूफान के बाद उत्सव मनाया जाय।’ वह इन दिनों अमेरिका में सबसे ज्यादा बिकने वाला लेखकों की सूची में शीर्ष पर है।

न्यूयार्क टाइम्स ने इस वर्ष की पिछली तीन फरवरी के पखवाड़े की बेस्टसेलर सूची में मैटी की किताब ‘जर्नी थ्रू हार्ट साँग्स’ को पहले स्थान पर रखा है। इस पुस्तक में मैटी की वे कविताएँ शामिल हैं, जो उसने बहुत कम उम्र में लिखी थीं। विख्यात प्रकाशकों के सुप्रसिद्ध न्यूज़लेटर ‘पब्लिशर वीकली’ के चार्ल्स एबट का कहना है- अपने जीवन को असाध्य बीमारी के कारण लगभग खो चुका मैटी सबको भरपूर जीवन बाँट रहा है। उसका सन्देश है कि भगवत्कृपा की सघन वृष्टि सब पर लगातार होती रहती है। बात सिर्फ उसे अनुभव करने की है। जीवन के प्रत्येक दुःख व दुर्घटना में भगवत्कृपा समाया रहता है। जब तुम्हें मालुम हो कि तुम्हारा सब कुछ छिन गया है, अब तुम्हारे पास न धन बचा है, न जीवन। तब ऐसे में प्रभु पर विश्वास करके अपने अस्तित्व को एक बार फिर विश्वास पूर्वक निहारो। तुम पाओगे कि तुम्हारे पास अभी बहुत कुछ है। जो खोया वह तो थोड़ा सा था, जो मिला वह बहुत ज्यादा है। भगवत्कृपा से मिले इस अनोखे अनुदान में जीवन की मौलिकता है, नवसृजन की महक है।

पिछले साल जुलाई में मैटी वाशिंगटन के एक अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा था। तब उसने अपनी माँ से अपनी कविताओं को छपवाने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बाद एक स्थानीय प्रकाशक ने हार्ट साँग्स की 200 प्रतियाँ छापी थी, लेकिन बाद में तो इस पुस्तक को एकायक भारी प्रसिद्धि मिल गयी।

मैटी के दो भाई व एक बहिन माँसपेशियों की इसी असाध्य बीमारी से मर चुके हैं। उसकी माँ जेनी को 30 वर्ष की उम्र के आस-पास से यह बीमारी है। वह व्हील चेयर के सहारे ही चल पाती है। लेकिन माँ-बेटे दोनों ही अपने जीवन के कष्टों को भगवान् का वरदान मानते हैं। मैटी का कहना है कि जब मैं अपनी माँ को कम्प्यूटर पर काम करते हुए देखता, तो उनसे कहता मैं बोलता जाता हूँ, आप उसे लिखती जाएँ। बाद में माँ ने बताया कि यह तो कविता है। तब मन में आया, काश! इसे औरों में बाँटा जा सके। और बस प्रभु ने वैसी व्यवस्था भी जुटा दी।

उसकी कविता ‘फ्यूचर इको’ में उसकी जीवन संवेदना बड़ी मार्मिक रीति से उभरी है। इसमें उसने कहा है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब वह बिल्कुल चल नहीं सकेगा। लेकिन ये भी उसके प्रभु प्रेम के क्षण होंगे। इन दिनों यही स्थिति है। वह अब केवल व्हील चेयर से जुड़े वेंटीलेटर के सहारे ही साँस ले सकता है। इसके बगैर वह एक पल जिन्दा नहीं रह सकता। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक हो सकता है वह न रह पाए। लेकिन उसका जीवन सन्देश सदा-सदा मानव जीवन को सुरभित-सुगंधित करता रहेगा। प्रत्येक परिस्थिति में भगवत्कृपा की अनुभूति करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।


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