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Akhand Jyoti
Year 2002
Version 2
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July 2002
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संसार न माया है, न मिथ्या। वह भगवान का विराट् रूप है। उससे अलग होने पर किसी जीवित का निर्वाह नहीं।
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Page Titles
शिष्यत्व का समर्पण
नैतिकता के यक्ष प्रश्न एवं उनके वैज्ञानिक समाधान
एक ही समय अनेक स्थानों पर एक ही शरीर
मीनल की कहानी
आदत स्वतः छूट जाएगी (Kahani)
ऋषि आदर्श को निभाने वाले कुलपति
भाव दशा में होना ही ध्यान है
VigyapanSuchana
महाशक्ति को समर्पित एक जीवन
आगे की बात (Kahani)
आखिर! बच्चे कहना क्यों नहीं मानते
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स्वयं को मारकर मिलता है निर्वाण
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पक्षाघात निवारण हेतु यज्ञोपचार प्रक्रिया
हर तूफान के बाद मने एक उत्सव
अहंता की गाँठ खुले तो आत्मबोध हो
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शोध-निष्कर्ष - चिंता व तनाव मुक्ति हेतु प्रणव मंत्र का जप
गुरुपूर्णिमा विशेष−1 - तंत्र का प्रयोग मात्र लोक सेवार्थ
राबिया बोलीं (Kahani)
गुरु और शिष्य का सच्चा मिलन
गुरुपूर्णिमा विशेष−3 - बंदउँ गुरुपद पदुम परागा
गुरुपूर्णिमा विशेष−4 - गुरुकृपा से ही सुन सकेंगे वह दिव्य संगीत
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गुरुपूर्णिमा विशेष−5 - आदि जिज्ञासा, शिष्य का प्रथम प्रश्न
अंतर्जगत् की यात्रा का विज्ञान - बस बन जाओ अपने गुरु के यंत्र
परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - भगवान के अनुदान किन शर्तों पर मिलते हैं।
देव दक्षिणा की परिणति : एक आदर्श ग्राम
युगगीता−34 - उठो भारत! स्वयं को योग से प्रतिष्ठित करो
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माता के हृदय से लिखी गई करुणाभरी चिट्ठियाँ
चेतना की शिखर यात्रा
गुरुसत्ता के चरणों में समर्पित होंगे हीरकमाल
केंद्र के समाचार-विश्व भर की हलचलें
पावन पर्व समर्पण का (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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