गुरुपूर्णिमा विशेष−1 - तंत्र का प्रयोग मात्र लोक सेवार्थ

July 2002

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अखण्ड ज्योति के पुराने पन्नों में परम पूज्य गुरुदेव के जीवन के नए रहस्य हैं। इनमें गुरुदेव के ‘जन्म कर्म च में दिव्यमेवं’ की झलक है। उनकी सेवा-साधना का प्रकाश है। सन् 1940 ई. की अप्रैल और जून माह की अखण्ड ज्योति के पृष्ठो पर ऐसा ही एक रहस्यमय प्रसंग अंकित है। उन दिनों गुरुदेव ने ‘आनन्द प्रतिष्ठान’ नाम की एक संस्था की स्थापना की थी। यह संस्था तंत्र विज्ञान की साधना-शिक्षण एवं इसकी विभूतियों व उपलब्धियों से लोक सेवा हेतु संकल्पित थी। महायोगी परम पूज्य गुरुदेव तंत्र विद्या के महान् आचार्य भी थे। अखण्ड ज्योति जून 1940 के ये कुछ पृष्ठ उनके इसी आचार्यत्व का प्रामाणिक दस्तावेज हैं।

व्यक्तिगत चर्चाओं में वह यदा-कदा तंत्र विद्या के कतिपय गोपनीय रहस्यों की ओर संकेत कर दिया करते थे। ऐसी ही एक चर्चा में उन्होंने यह भी बताया था कि उनके मार्गदर्शक ने उन्हें तंत्र विज्ञान के उन आयामों की शिक्षा दी है, जो आज लोक में दुर्लभ है। किसी युग में ब्रह्मर्षि विश्वामित्र को तंत्र का यह रहस्यमय विज्ञान मालूम था। विश्वामित्र द्वारा प्रवर्तित ये साधनाएँ कालान्तर में लुप्त हो गयीं। गुरुदेव की मार्गदर्शक सत्ता ने तंत्र विद्या का यह रहस्यमय विज्ञान ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की कारण सत्ता से प्राप्त किया। बाद में समय आने पर इसे अपने सुयोग्य शिष्य हम सबके गुरुदेव को सौंपा। अनेकों वर्षों की कठिन व कठोर साधनाओं के बाद वह इसमें पारंगत व प्रवीण हुए। अनेकानेक विद्याओं व साधनाओं में आचार्य होने के साथ वह तंत्र विज्ञान के भी सुप्रतिष्ठित आचार्य बने। आनन्द प्रतिष्ठान में उनकी तंत्र विद्या का यही साधना सत्य प्रकट हुआ।

यह आनन्द प्रतिष्ठान उत्तरप्रदेश में आगरा शहर के फ्रीगंज मुहल्ले में स्थापित किया गया था। यह तंत्र विद्या की उपासना का केन्द्र था। इसमें परम पूज्य गुरुदेव एवं उनके द्वारा प्रशिक्षित कुछ साधक तंत्र विज्ञान की दुरूह क्रियाएँ करके जो शक्ति प्राप्त करते, उसे जनहित में बाँट देते। गुरुदेव द्वारा प्रवर्तित तंत्रविद्या की इन साधनाओं व प्रक्रियाओं की सूक्ष्मता बहुत अधिक थी। तदानुसार उनका प्रभाव भी बहुत व्यापक व दीर्घकालिक होता था। इसकी गूढ़ क्रियाओं द्वारा उत्पन्न किए गए सूक्ष्म कम्पन इतने शक्तिशाली होते थे कि हजारों मील दूर बैठे हुए आदमी पर भी उतना ही असर पड़ता, जितना कि पास बैठे हुए आदमी पर होता। इसका प्रभाव क्षण भर खेल दिखाकर ही समाप्त नहीं होता, बल्कि जिसके ऊपर उपचार किया जाता, उसके गुप्त मन में इतना गहरा उतर जाता कि उसके शरीर व मन में आश्चर्यजनक व चमत्कारी परिवर्तन हो जाते थे।

आनन्द प्रतिष्ठान ने अपना ऐसा कार्यक्रम बनाया था कि कठिन साधना द्वारा प्राप्त शक्ति को पीड़ितों की सेवा में लगाया जाय। और इसके बदले किसी भी गरीब-अमीर से कुछ भी न लिया जाय। अर्थात् लोगों के कष्टों को दूर करने का उपचार बिल्कुल मुफ्त में किया जाय। हाँ लाभ होने पर यदि कोई बिना माँगे अपने मन से थोड़ा-बहुत कुछ दे दे, तो उसे सन्तोषपूर्वक साधकों के जीवन निर्वाह के लिए ले लिया जाय। यहाँ तंत्र विद्या द्वारा कठिन से कठिन शारीरिक रोग, मानसिक रोग, बुरी आदतों, सन्तान सम्बन्धी चिन्ता, गृहकलह, बुरे दिन, अनिष्ट की आशंका, भूत बाधा, अशान्ति आदि का बड़ी आसानी से उपचार कर दिया जाता था। जिन लोगों को कोई ऐसा रोग होता, जिससे कि उसकी जिन्दगी खतरे में पड़ने की सम्भावना उत्पन्न हो जाती, ऐसे लोगों के उपचार को यहाँ वरीयता दी जाती थी।

परम पूज्य गुरुदेव ने अखण्ड ज्योति के पृष्ठो पर ‘तंत्र विज्ञान की अद्भुत शक्ति! अपने कष्ट मिटाने में हमारी सेवा स्वीकार कीजिए।’ शीर्षक से एक आमंत्रण लेख लिखा था। इसमें गुरुदेव ने लिखा- ‘शारीरिक रोगों की चिकित्सा के लिए अब यह नियम बना दिया गया है कि केवल वे ही रोगी पत्र व्यवहार करें जिन्हें जीवन का खतरा है। साधारण छोटे-मोटे रोगों के लिए अपने यहाँ चिकित्सकों से इलाज करा लेना चाहिए।’ असाध्य शारीरिक रोगों के अलावा स्मरण शक्ति की कमी, चिन्ता, उद्विग्नता, हीनता की भावना, बुरे कामों में प्रवृत्ति, क्रोध, बुरी आदतें आदि मानसिक व्याधियों का यहाँ बड़ी सरलता से उपचार किया जाता था। इस प्रसंग में गुरुदेव ने बहुत ही स्पष्ट करते हुए लिखा- ‘एक बात हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, स्तम्भन आदि पापपूर्ण क्रियाएँ किसी के पक्ष या विपक्ष में किसी भी दशा में नहीं करते। इसके लिए कोई सज्जन लिखा पढ़ी नहीं करें। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि तेजी मन्दी का भाव, दड़ा, सट्टा, गढ़ा धन आदि हम नहीं बताते, इसलिए कोई महानुभाव इन कामों के लिए पूछने-ताछने का कष्ट न उठावें।’

आनन्द प्रतिष्ठान का उद्देश्य तंत्र विज्ञान द्वारा विशुद्ध लोकसेवा का था। इसके द्वारा शारीरिक-मानसिक व बाहरी कष्टों से दुःखी पीड़ित जनों को बचाने के लिए प्रयत्न किए जाते थे। यह प्रक्रिया पूरी तरह से वैज्ञानिक थी। इसके बारे में गुरुदेव ने लिखा भी- ‘किसी अन्धविश्वास, ढोंग, भ्रमजाल फैलाने से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। स्पष्ट है कि जब हम किसी से कोई फीस नहीं लेते, रुपए नहीं ऐंठते, तो क्यों किसी को धोखे में डालेंगे और क्यों ढोंग फैलावेंगे।’ इस केन्द्र की उपचार प्रक्रिया सभी के लिए सुलभ थी। बस इसके लिए बन्द लिफाफे में अपनी परेशानी का विवरण भेजना होता था। इस प्रतिष्ठान में तंत्र विद्या से उपचार करने के लिए रोगी की चार चीजें आवश्यक समझी जाती थी। 1. रोग का कारण- वर्तमान स्थिति और रोगी के वर्तमान समय का पूरा परिचय। 2. रोगी का फोटो (यह पाँच साल से अधिक पुराना न हो), 3. रोगी के शिखा स्थान (चोटी) के 11 बाल, 4. सफेद स्याही सोख (फ्लाटिंग पेपर) पर टपकाया हुआ रोगी के बाएँ अंगूठे में से एक बूँद खून। इन चार चीजों से उपचार में बड़ी आसानी हो जाती थी। साथ ही इसके परिणामों के बारे में सुनिश्चितता भी हो जाती। उपचार इन चारों के बिना भी होता था, पर उस स्थिति में देर लगने की सम्भावना बनी रहती थी।

विभिन्न रोगों के सार्थक, समर्थ व समग्र उपचार के अलावा यहाँ अध्यात्म विद्या व तंत्र विद्या की शिक्षा देने की व्यवस्था भी जुटायी गयी थी। इस प्रशिक्षण क्रम में उन लोगों को प्रवेश दिया जाता था, जो अपनी आध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हों अथवा दूसरों की चिकित्सा करने की ताँत्रिक शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। इस शिक्षा पद्धति में अलौकिक व गुप्त बातों को जानने की योग्यता का शिक्षण भी शामिल था। यह शिक्षा यहाँ बिल्कुल मुफ्त दी जाती थी। बस साधक को इस बात के संकल्पित होना पड़ता था कि वह अपनी विद्या का उपयोग विशुद्ध रूप से परोपकार के लिए करेगा। गुरुदेव अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा ऐसे साधकों की भली भाँति जाँच-परख किया करते थे। इस सम्बन्ध में उनका स्पष्ट कथन था, ‘अपनी नीच वासनाओं की पूर्ति या अपना अनुचित स्वार्थ साधन करने के लिए इस विद्या का उपयोग करने वाले लोगों को हमारे द्वारा किसी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने की आशा न करनी चाहिए।’

रोगियों के उपचार एवं साधकों के प्रशिक्षण का सारा खर्च गुरुदेव स्वयं करते थे। आनन्द प्रतिष्ठान से बहुमूल्य रामबाण दवाएँ, रसायन, जड़ी-बूटियाँ, साधना यंत्र, कवच, रक्षा विधान आदि सब चीजें बिल्कुल मुफ्त भेजी जाती थी। बस लाभार्थी को केवल डाक खर्च वहन करना पड़ता था। इस अद्भुत केन्द्र के द्वारा गुरुदेव ने वर्षों तक जन सेवा की। तंत्र विज्ञान की वैज्ञानिकता को खरा व प्रामाणिक साबित किया। असंख्य लोगों ने यहाँ से लाभ उठाया। अनेकों असाध्य रोगी यहाँ से संपर्क करके स्वस्थ हुए। बहुतों के जीवन में दुःख का कुहासा मिटा। अवसाद के बादलों के स्थान पर आनन्द का सूर्योदय हुआ। कार्य की व्यस्ततावश उन्हें इस प्रतिष्ठान को बन्द करना पड़ा। परन्तु आज भी यह उनके जीवन की पुस्तक का स्वर्णिम अध्याय है। जिसकी आभा और प्रभा अभी भी वैसी ही प्रकाशित है।


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