शोध-निष्कर्ष - चिंता व तनाव मुक्ति हेतु प्रणव मंत्र का जप

July 2002

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ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की अनुसन्धान प्रक्रिया में नए आयाम उद्घाटित हो रहे हैं। यहाँ संचालित होने वाले प्रत्येक प्रयोग से आध्यात्मिक साधनाओं की वैज्ञानिकता प्रकट हो रही है। अध्यात्म विद्या के वैज्ञानिक निष्कर्ष स्पष्ट हो रहे हैं। अभी पिछले दिनों एक प्रयोग अध्यात्म विद्या के सारतत्व ‘ओम्’ पर किया गया। इस प्रयोग परियोजना का विषय था- An investigation to study the effect of Pranav (Om) jap on anxiety and stress levels of individuals.. अर्थात् प्रणव या ओम् के जप का व्यक्तियों के चिंता एवं तनाव के स्तर पर प्रभाव की जाँच। शोध कार्य की इस लघु परियोजना से ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की प्रयोगशाला के शोधकर्मियों की उद्देश्यनिष्ठ एवं उनके कार्य की सार्थकता एक बार फिर प्रकाश पुञ्ज बन कर प्रकट हुई।

अध्यात्मवेत्ताओं और अध्यात्मशास्त्रों ने पग-पग पर ओम् की महिमा के बीत गाए हैं। शास्त्रकारों ने ओम् को प्रणव भी कहा है। लोमश ऋषि ने महामृत्युञ्जय स्तोत्र में कहा है- ‘त्वमोंकरोऽसि वेदानाँ देवानाँ च सदा शिवः’ यानि कि प्रभु तुम्हीं वेदों में ओंकार और देवों में सदाशिव हो। विष्णु सहस्रनाम में इसे वैकुण्ठ पुरुष विष्णु का प्राण बताते हुए कहा है- ‘वैकुण्ठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः।’ सप्तशती में समस्त देवगण माता आदिशक्ति की ओंकार से एकात्मकता अनुभव करते हुए प्रार्थना करते हैं- ‘शब्दात्मिका सुविमलर्ग्युजुषाँ निधानमुद्गीथ रम्य पदपाठवताँ च साम्नाम्।’

अध्यात्म साधना करने वाले अनुभव करते हैं कि निश्चल प्रकृति में सृष्टि निमित्त जो क्षोभ की ध्वनि है, वही प्रणव नाद है। आचार्य शंकर एवं उनके दादा गुरुदेव गौड़पादाचार्य ने अपनी इन्हीं साधनात्मक अनुभूतियों को आधार बनाकर ओंकार पर विशद् भाष्य लिखा है। ध्यान बिन्दु उपनिषद् में कहा गया है- ‘यही आदि शब्द है, जो नाद अथवा ध्यान में निहित है। यह सभी वेदों का सार तत्व व सृष्टि के विकास का सूत्र है।’ सभी विरोधों का इससे समाहार व शमन होता है। आचार्यगण कहते हैं- ‘तत् प्रत्यक्चेतना अधिगमः अपि अन्तराय अभावश्च’ अर्थात् ओम् से सभी अन्तराय यानि कि चित्त के विक्षेप दूर होते हैं। यह सभी मंत्रों का सेतु है। सभी वैदिक मंत्र इसी से प्रारम्भ होते हैं। वैदिक वाङ्मय में तो मुनित्व की व्याख्या भी ओम् से सम्बद्ध है- ‘ओंकारो विदितो चे न मुनिर्नेन्तरो जनः।’

गायत्री महामंत्र में सबसे प्रथम स्थान इसी का है, बाद में व्याहृतियाँ एवं मूल मंत्र है। महामृत्युञ्जय मंत्र में भी यही सर्वप्रथम है। श्री मद्भगवद्गीता में इसे अक्षर ब्रह्म कहा गया है। योग सूत्रकार महर्षि पतंजलि ने ‘तस्य वाचकः प्रणव’ कहकर इसे ईश्वर का वाचक बताया है। ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णन है, ‘ओऽमित्य चः प्रतिगर एवं तथैति गाथा या ओमिति वैदेव तथेति मानुषम्।’ यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा में सर्वप्रथम प्रणव का उल्लेख किया है। कृष्ण यजुर्वेद के संहिता भाग में इसकी महत्ता स्पष्ट की गयी है। अथर्ववेद में इसे सेतु कहा है। ऋग्वेद के प्रथम मंत्र ॐ अग्निमीले का प्रारम्भ ओम् से और इसके आरण्यक का अन्त इत्योम् से होता है। इसी प्रकार यजुः में ‘ॐ इषेत्वीर्जेत्वा’ और अन्त में ‘ॐ खं ब्रह्म’ है।

उपनिषदों में तो न जाने कितनी बार कितने रूपों में इसकी मीमाँसा की गयी है। इससे यही समझा जाता है कि यह विश्वात्मक व विश्वातीत दोनों है। अथर्वशिरा के अनुसार जो हृदय में नित्य रहता है, उसी को ‘अ उ म’ तीन मात्रा कहा जाता है। इसमें बताया गया है कि हृदय में स्थित पुरुष का उत्तर भाग ओंकार है। और वही सर्वव्यापी अनादि अनन्त, सूक्ष्मातिसूक्ष्म और ब्रह्म है। वही रुद्र और महेश्वर है। अथर्वशिरा में इसका स्वरूप निर्दिष्ट है। इसके एक बार उच्चारित होने से मन के साथ सकल प्राणवायु षट्चक्र भेदकर सुषुम्ना से शिरोदेश में उठती है। योग संहिताओं में भी इसके जप के महत्त्व को दर्शाया गया है।

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की लघु शोध परियोजना में ‘ओम्’ के इस शास्त्रीय महत्त्व को वैज्ञानिक प्रयोग के द्वारा परखा गया है, इस प्रयोग में मैच ग्रुप डिज़ाइन एवं कन्ट्रोल ग्रुप डिज़ाइन का इस्तेमाल किया गया। मैच ग्रुप रिसर्च डिज़ाइन से प्रयोगात्मक समूह पर होने वाले प्रभावों की प्रमाणिकता नियंत्रण समूह से तुलना करके जाँच की जाती है। इन दोनों में सदस्यों की संख्या समान होती है। इन रिसर्च डिजाइनों के अनुरूप देव संस्कृति महाविद्यालय के 20 से 30 आयुवर्ग के 12 छात्रों का प्रयोगात्मक अध्ययन के लिए चुनाव किया गया। इनमें से 6 छात्र प्रयोगात्मक समूह में रहे व 6 छात्र कन्ट्रोल ग्रुप या नियंत्रण समूह में रखे गए।

ओम् की जप साधना प्रारम्भ करने से पहले इन सभी छात्रों की चिन्ता व तनाव का परीक्षण स्टैंडर्ड मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा किया गया। इस पहले परीक्षण के बाद कन्ट्रोल ग्रुप के लोग अपनी सामान्य दिनचर्या शान्तिकुञ्ज परिसर में रहकर बिताते रहे। जबकि प्रयोगात्मक समूह के लोगों ने अपनी ओम् जप की 20 दिवसीय साधना प्रारम्भ की। साधना कराने के लिए मार्गदर्शन का दायित्व योगविभाग के आचार्यगणों ने वहन किया। इसके लिए सारे प्रयोग परीक्षण ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की प्रयोगशाला में यहाँ के शोध कर्मियों के द्वारा सम्पन्न किए गए।

महीने की पाँच तारीख के प्रथम परीक्षण के बाद प्रयोगात्मक समूह के व्यक्ति एक स्थान पर समूह में बैठकर प्रतिदिन एक घण्टे की ओम् जप साधना करते रहे। इस जप साधना के अतिरिक्त उनके सभी बाकी क्रियाकलाप कन्ट्रोल ग्रुप के व्यक्तियों की ही भाँति रहे। महीने की 25 तारीख को यानि की साधना के बीस दिन हो जाने पर चिन्ता एवं तनाव का दूसरा मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया गया। इस दूसरे परीक्षण से प्राप्त आँकड़ों का वैज्ञानिक विधि से साँख्यकीय आँकलन किया गया। इसके निष्कर्षों से यह पता चला कि ओम् जप साधना से प्रत्येक व्यक्ति की चिन्ता व तनाव के स्तर में भारी कमी आती है। इस साँख्यकीय गणना व निष्कर्षों का प्रारूप कुछ इस तरह रहा-

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

चिन्ता स्तर

t value= 4.1

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

तनाव स्तर

t value= 3.57

इन दोनों में ही .01 level की महत्ता प्रदर्शित हुई।

सामान्य पाठकों के लिए इस साँख्यकीय गणना का सार इतना ही है कि चिन्ता स्तर के साधना के बाद परीक्षण में कन्ट्रोल ग्रुप की चिन्ता का औसत 11.2 था। वही प्रयोगात्मक समूह के लोगों की चिन्ता का मध्यमान या औसत 3.5 रहा। इसी आधार पर इनका मानक विचलन क्रमशः 3.55 एवं 2.94 रहा। इसमें N नम्बर या संख्या का द्योतक है। जो दोनों में बराबर 6 व 6 थी। यहाँ df का अर्थ डिग्री ऑफ फ्रीडम या स्वतंत्रता का अंश है, जो 5-5 थे। इसकी प्रयोगात्मक महत्ता को देखने के लिए साँख्यकीय का टी टेस्ट लगाया गया। जिसका मूल्य 4.1 आया। जो प्रयोगात्मक परिणामों की महत्ता के .01 लेवल को दर्शाता है। इसका साधारण मतलब यही है कि ओम् जप की साधना से 100 में से 99 लोगों को या 100 में से 99 बार चिन्ता में फायदा होता है।

लगभग यही स्वरूप तनाव के स्तर में प्रदर्शित हुआ। इसमें कन्ट्रोल ग्रुप व प्रयोगात्मक समूह का मध्यमान व मानव विचलन क्रमशः 10.83, 5.66 व 1.37, 3.27 रहा। दोनों में संख्या बराबर 6-6 थी। स्वतंत्रता के अंश दोनों में 5-5 थे। टी टेस्ट के द्वारा इसका मूल्य 3.57 निकला। टी के इस मूल्य से भी साँख्यकीय तालिका के अनुसार प्रयोगात्मक परिणामों की महत्ता .01 लेवल की प्रदर्शित होती है। इसका साधारण मतलब यही है कि ओम् जप की साधना से 100 में से 99 लोगों को या 100 में से 99 बार तनाव में फायदा होता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से ये निष्कर्ष काफी प्रभावकारी परिणाम दर्शाते हैं। इन निष्कर्षों से यह पता चलता है कि ओम् के जप से शास्त्र कथन के अनुसार जहाँ आध्यात्मिक विभूतियाँ जीवन में प्रकट होती है। वहीं इसके जप से सामान्य जन अपनी चिन्ता व तनाव में भारी लाभ उठा सकते हैं। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के ये शोध निष्कर्ष प्रमाणित करते हैं कि चिन्ता व तनाव को दूर भगाने के लिए किसी मनोचिकित्सक के पास जाने या मनोव्याधि की औषधि लेने की जरूरत नहीं है। इसके लिए थोड़ी सी पर भावपूर्वक ओम जप की साधना ही पर्याप्त है।


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