परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - भगवान के अनुदान किन शर्तों पर मिलते हैं।

July 2002

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(समापन किश्त)

गताँक से आगे−

मित्रों! जहाँ सम्मान होता है, वहाँ सहयोग आता है। महापुरुषों पर सहयोग बरसा, गाँधी जी पर सहयोग बरसा। अरे, मैं तो ये कहता हूँ कि अनेक आदमियों पर सहयोग बरसा है। बाटा एक मोची का नाम है, जिसके माता−पिता का देहाँत हो गया था। बारह तेरह साल का यह लड़का रह गया। कुछ पढ़ा−लिखा भी नहीं था। बाप जो था, पुराने जूतों की मरम्मत करता था। वही काम बेचारा वो भी करने लगा। जो भी आता, यही पूछता कि तुम्हारे पिता जी दिखाई नहीं पड़ते? लड़का कहता कि हमारे पिता जी का स्वर्गवास हो गया, अब आप ही हमारे पिता जी हैं। आपसे रहम तो नहीं माँगते, पर आपसे श्रम माँगते हैं। आप चाहें तो अपने जूतों की मरम्मत हम से करवा लिया कीजिए, उनकी पॉलिश हमसे करवा लिया कीजिए। इससे आपकी सहायता भी हो सकती है और हमारा गुजारा भी हो सकता है। लोगों ने अपने चप्पलों की मरम्मत करवाना शुरू किया। जूतों पर पॉलिश करने को दी। उसने इस वफादारी से मरम्मत की कि लोग बाग−बाग हो गए। सबको लाभ हो गया। उनने औरों से कह दिया कि ऑफिस में किसी को जूतों की पॉलिश करानी हो, तो उस लड़के से कराना। शानदार लड़का है। इतनी तबियत से पॉलिश करता है कि चार दिन तक जूते की पॉलिश खराब नहीं होती। मरम्मत कराना हो, तो उसी से कराना।

सबसे प्रशंसा करनी शुरू कर दी। क्या नाम था? बाटा। कौन−सा बाटा? जिसका आज करोड़ों रुपये का जूते का बिजनेस चलता है। जब लड़का बड़ा हुआ, तो लोगों ने कहा कि बाटा हमारे लिए अच्छे जूते बना सकते हो। हाँ साहब! हम अच्छे जूते बना देंगे, पर पैसा नहीं है हमारे पास, आप पैसा दीजिए, राहत दीजिए। राहत में लोगों ने चमड़ा ला दिया और सामान ला दिया। उसने भी तबियत से अच्छे−अच्छे जूते बना दिए।

सामाजिक जीवन का अध्यात्म

मित्रों! ईमानदारी, वफादारी और जिम्मेदारी तीनों को मिलाकर सामाजिक जीवन में अध्यात्म हो जाता है। अध्यात्म कैसा होता है? अध्यात्म को जीवन में अप्लाइड कैसे करते हैं? अपने विकृत जीवन में संयम के रूप में हम अप्लाइ करते हैं। समाज में हम जिम्मेदारी, वफादारी और ईमानदारी के रूप में प्रयुक्त करते हैं। जीवन में इन तीनों को समाविष्ट कर लेते हैं, तो वह अध्यात्म हो जाता है। नहीं साहब, भजन और माला को अध्यात्म करते हैं। चल....... सब बात में भजन लगा देता है, भजन भी दिमाग का एक खेल है। वह अपने अंतर्मन की एक कसरत है। कसरत कई तरह की होती है। अंतर्चेतना के व्यायाम का एक नाम वह भी है, जिसको आप मंत्र कहते हैं। वह भी अध्यात्म का एक हिस्सा है, लेकिन केवल वही सारा अध्यात्म नहीं हो सकता। वह एक हिस्सा है। मंत्र भी एक हिस्सा है। समस्त अध्यात्म मंत्र नहीं हो सकता है।

मित्रों! बाटा ने जूतों की मरम्मत से उन्हें बनाना शुरू कर दिया और लोगों ने जूता माने बाटा, बाटा माने जूता कहना शुरू कर दिया। उसका व्यापार बढ़ता हुआ चला गया। मैं क्या कहूँ आपसे, करोड़ों रुपये का व्यापार उसने किया। जब में अफ्रीका गया, तो वहाँ भी बाटा की दुकानें देखीं। हरेक देश में बाटा छाया हुआ है। अफ्रीका में बिकता है, हिंदुस्तान में भी बिकता है। मैंने देखा उसकी नेट आमदनी गवर्नमेंट के टैक्स देने के बाद में दो करोड़ के करीब बच जाती है। सहयोग से इस तरह बाटा फैलता हुआ चला गया।

गुरुजी! आप अध्यात्म से अनुदान के विषय में कह रहे थे? बेटा, मैं, कह रहा था कि जब सम्मान आता है, तो सहयोग भी आता है। श्रद्धा आती है। आप क्यों नहीं सुनते? हमें तो कोई जरूरत नहीं है। हमारे सब विरोधी हैं। विरोधी भी बेटे इज्जत करते हैं। क्राँतिकारियों को बेटे अँगरेजों ने फाँसी दे दी थी। उनको फाँसी देने वाले मजिस्ट्रेट ने, उनके जो रिमार्क लिखे हैं, उसे पढ़कर देखिए आप। उन्होंने क्या रिमार्क लिखे हैं? उन्होंने जिस काम के लिए ये गुनाह किए, वो मकसद बहुत ऊँचे थे। इन्होंने गुनाह किए, इसलिए हमारा संविधान, हमारा कानून कहता है कि इन्हें जेल में फाँसी लगनी चाहिए, इसलिए हमने फाँसी लगवा दी, पर फाँसी लगाते हुए हम इनकी इज्जत करते हैं।

सिद्धियों के कई प्रकार− सहयोग एवं अनुदान

मित्रो! आपको इज्जत मिल सकती है। किससे? उस अध्यात्म से, जो हम आपको सिखाने वाले हैं। उससे आपको इज्जत मिलेगी, तो आप देखना आपको सहयोग भी मिलेगा। सहयोग कहाँ से मिलेगा? बेटे, हमको पहले मिली है इज्जत फिर हमको मिली सहायता। सहायता नहीं मिलती, तो हम कहाँ से यह सब काम चला रहे हैं, बताइए? हमारे कितने जीवनदानी मुट्ठी में हैं। ब्रह्मवर्चस एक, ब्रह्मवर्चस में कितने आदमी काम करते हैं? वे क्या हैं? आठ−दस तो वे हैं, जो पोस्ट ग्रेजुएट हैं, पी.एच.डी. हैं, मेडीकल के एम.बी.बी.एस. हैं, एम.एस. हैं, एम.डी. है। कितने लड़के काम करते हैं। इनको नौकरी देकर तो देखिए। एक−एक व्यक्ति कम−से−कम पंद्रह−पंद्रह सौ रुपये की नौकरी छोड़कर आया है। कितने आदमी हैं? बीस हैं। कितने रुपये लगेंगे? तीस हजार रुपये महीने लगेंगे। पहले नौकरी दीजिए, पीछे काम लेना। यह सब कहाँ से आता है। श्रम के रूप में सहयोग, अकल के रूप में सहयोग, भावनाओं के रूप में सहयोग। आप सहयोग का अर्थ केवल पैसा समझते हैं।

मित्रों! अगर आपका यही ख्याल है कि सहयोग का अर्थ पैसा होता है, तो चलिए मैं अभी देता हूँ। गाँधी जी पर भी पैसा आया था, दूसरों पर भी पैसा आया था, तीसरों पर भी पैसा आया था। विनोबा पर कितनी जमीन आ गई थी? करोड़ों एकड़ जमीन भूदान में आ गई थी। मैं क्या कहूँ बेटे, कोई इतनी जमीन खरीदता, तो दिवाला निकल जाता। हमने जरा−सी जमीन खरीदी है, डेढ़ लाख लग गया और उन्होंने कितनी खरीदी? करोड़ों रुपये की जमीन खरीदी विनोबा ने, भूदान यज्ञ में सहयोग दिया था। आपको सहयोग मिलता है? कि सी का न नहीं मिलता। धर्मपत्नी का मिलता है? नहीं साहब, उसका भी नहीं मिलता। माता जी का मिलता है? नहीं माता जी का भी नहीं मिलता। पिता जी का? पिता जी का भी नहीं मिलता। किसी का मिला सहयोग? नहीं साहब, सब बड़े चालाक हैं और सब दुनिया बेईमान है। हाँ, आपका कहना बिल्कुल सही हैं। दुनिया तो है ही चालाक, लेकिन हर आदमी के भीतर एक और माद्दा है। कौन−सा वाला? जो दूसरों की सहायता करता है। आप पहले अपना सम्मान प्राप्त कीजिए।

मित्रों! लोग सम्मान नहीं देते, सम्मान लिया जाता है। कैसे? उस अध्यात्म से जो हम आपको सिखाने वाले और समझाने वाले हैं। उससे आप क्या करेंगे? उससे उस अध्यात्म की कीमत पर आप जनता का सम्मान खरीदेंगे। फिर क्या होगा? फिर आप पर सहयोग बरसेगा। ये क्या हो गया? ये सिद्धि नंबर दो है। ये किसी सिद्धि हो गई। ये बाहर की सिद्धि हुई। ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन होते हैं। मैं पहले जीव की बात कह रहा था। जीवात्मा के भीतर से हमारे अंतर्मन से जो सिद्धियाँ निकलती हैं, अभी मैं उसका हवाला दे रहा था। अब मैं प्रकृति का हवाला दे रहा हूँ। प्रकृति के साथ समाज जुड़ा हुआ है। बहिरंग से आपको तरह−तरह के सहयोग मिलेंगे, सहायता मिलेगी, तरह−तरह की प्रसन्नताएं मिलेंगी, तरह−तरह के भाव मिलेंगे।

साथियों! जो सिद्धाँत, जो अध्यात्म में सिखाने वाला हूँ और जिसके लिए मैंने आपको बुलाया है, उस अध्यात्म की सफलता पर मेरी उम्मीदें टिकी हुई हैं और जिस सफलता के आधार पर आपका भविष्य टिका हुआ है। आप अगर जंजाल में फँसेंगे, तो मरेंगे। नहीं साहब, मंत्र जपेंगे और पैसा कमाएंगे। यह सब झूठ है। अभी भी यही जालसाजी लिए बैठा है। जादूगरी लिए बैठा है। जादू क्या होता है? मिट्टी में फूँका, हो गया जादू। यही है तेरा अध्यात्म? बाजीगर कहीं का, बाजीगरी सीखने आया है। क्या सिखाएँ? बाजीगरी सिखाइए, मिट्टी में फूँक मारिए और पैसा मँगाइए। गायत्री मंत्र पढ़िए और बेटा पैदा कर दीजिए। हट मूर्ख कहीं का, ये क्या करता रहता है बेअक्ली की बात।

अध्यात्म बेअक्ली का नाम नहीं है। बेअक्ली अलग बात है और अध्यात्म अलग बात है। जिससे आप फायदा उठा सकते हैं, जिसको पाकर हिंदुस्तान शानदार हुआ था और आप भी शानदार हो सकते हैं। वह अध्यात्म अलग है और ये बेअक्ली अलग है। कौन−सी? जो मैं शुरू में ही कह रहा था मनुहार और उपहार की। मनुहार कीजिए और उपहार पाइए। बेटे, ये बच्चों का धंधा है। अगर आप बच्चे हैं, तो मैं नहीं कह सकता और छोटी चीजों तक भी मैं नहीं कह सकता, पर अगर बड़ी चीजों की बात है, तो बड़े लोगों की तरह से आप इजहार करना शुरू कीजिए।

दैवी अनुग्रह : भगवान की सिद्धि

यहाँ तक दो बातें हो गई। एक जीव की शक्ति हो गई और एक प्रकृति की सिद्धि हो गई। एक सिद्धि और बाकी है। वह सिद्धि कौन−सी है? वह सिद्धि भगवान की सिद्धि है तीसरी सिद्धि है। भगवान की सिद्धि किसे कहते हैं? जिसे हम दैवी अनुग्रह कहते हैं। हाँ, दैवी अनुग्रह भी आते हैं। दैवी अनुग्रह हो सकते हैं? हाँ बेटे, दैवी अनुग्रह भी होते हैं। दैवी अनुग्रह भी आदमी को मिलते हैं, परंतु हरेक को नहीं मिलते। गुरु जो माँगेगा, उसे भी नहीं? नहीं बेटा, सबको नहीं मिलते। दैवी अनुग्रह प्राप्त करने की भी शर्त है। कौन−सी शर्त है? अब हम आपको यही समझाने वाले हैं। जिसके लिए हम आपको अब मजबूर करने वाले हैं, जिसके लिए हम दबाव डालने वाले हैं, जिसके लिए हम जोर लगाते हैं, वह है पात्रता का विकास। जिस दिन आपकी पात्रता विकसित हो जाएगी, उस दिन क्या होगा? दैवी अनुग्रह बरसेंगे।

मित्रों! दैवी अनुग्रह बरसते हैं, माँगे नहीं जाते। ये हवा जो है, ऑक्सीजन लेकर आती है। इतने काम की ऑक्सीजन आपको दी जाती है कि मैं क्या कहूँ आपसे। कितने दाम की ऑक्सीजन है? डॉक्टर साहब से पूछिए कि ऑक्सीजन का सिलेंडर कितने का मँगाया था? छह सौ पचास रुपये का। एक आदमी के लिए कब तक एक सिलेंडर चल सकता है? अगर एक आदमी सारे दिन लगाए रखे तो दो तीन दिन में खत्म हो जाएगा। हवा आपकी नाक में ऑक्सीजन की नली लेकर आती है और हर दिन लगभग तीन सौ रुपये की ऑक्सीजन आपको फोकट में दे जाती है। बेटे, आप देवता का अर्थ समझते नहीं है। देवता कहाँ से आते हैं? सूरज की धूप कहाँ से आती है। सूरज की धूप का दाम निकालिए। हमारे यहाँ लाइट जलती है। सौ वॉट का बल्ब जलता है, यह कितनी बिजली कंज्यूम करता है? अपने मीटर को देख लें। हमारे यहाँ जो बिल आता है, हजार रुपये से ज्यादा का आता है। हमारे यहाँ हजार−डेढ़ हजार रुपये की बिजली जलती है। हम देखते हैं कि रात में कितनी देर बिजली जलती है, तो कहते हैं कि भाई बंद करो बत्ती आपने सौ वॉट का बल्ब लगा रखा है, चालीस वॉट का लगाइए, पंद्रह का लगाइए। हम किफायत करते हैं। सूरज कितने हॉर्स पावर का है? कितने कैंडिल का आप समझते हैं सूरज को? वह आपके मकान पर जलता है। आप हीटर जलाते हैं, कितनी बिजली जल जाती है? ढाई रुपये की और ये हीटर कितने रुपये में आता है?

मित्रों! आसमान में लाइट बरसती है, रोशनी बरसती है, ऑक्सीजन बरसती है, जीवन बरसता है, प्राण बरसता है, सौंदर्य बरसता है। पानी की तरह से जाने क्या−क्या बरसता है। सब कुछ बरसता है। यह भगवान बरसता है, आदमी नहीं बरसता। ये सब अनुग्रह भी बिना कीमत के मिलते हैं। सुकरात के पास एक शक्ति थी। उसका नाम उन्होंने डेमँन रखा था। सुकरात उसके ऊपर पूरी तरह से निर्भर रहते थे। डेमँन ऊपर से आता था और सहायता करता था। विक्रमादित्य के बारे में भी मैंने सुना है कि उसके पास भी शक्तियाँ आती थीं और उनकी मदद करती थीं। बेटे, कितने देवता होते हैं, जो आदमी की सहायता करते हैं। वे इतनी सहायता करते हैं कि मैं क्या कहूँ आपसे। उनकी सहायता के मारे आदमी धन्य हो जाता है।

देवता कौन होते हैं? देवता अड़ोसी−पड़ोसी नहीं होते। वे संबंधी भी नहीं होते। देवता उन शक्ति यों का नाम हैं, जो आदमी के ऊपर बरसती हैं और आदमी को धन्य करती हैं। किस−किसके ऊपर देवता बरसे? बेटे, ज्यादा तो नहीं कहता मैं, औरों का हवाला तो नहीं देता, बस अपना हवाला देता हूँ कि हमारे ऊपर कौन बरसता है। सुकरात के तरीके से एक डेमँन हमारे भीतर भी बरसता है और सारा−का−सारा अनुग्रह उसी से काम करता है। कैसा अनुग्रह है? आपको मालूम है उसमें अक्ल का अनुग्रह भी है। अक्ल कहाँ से बरसती है? अक्ल कहाँ से आती है? आप कौन से स्कूल में पढ़े हैं? बेटे, कहीं भी नहीं पढ़े हम। ये जो सारी अक्ल बरसती है, वो आसमान से बरसकर हमारे दिमाग में घुस जाती हैं और पैसा कहाँ में बरसता है? पैसा बेटे, आसमान से बरसता है और हमारी तिजोरी में घुस जाता है। इसमें हम कहते हैं कि ठहरिए अभी तिजोरी बंद है, चाबी नहीं मिल रही है। चाबी नहीं मिल रही है तो क्या हुआ, हम ऐसे ही घुस जाएँगे और पैसा तिजोरी से निकाल लाएँगे।

डेमँन− गुरु−देवता

ये कौन घुसाता है? डेमँन। डेमँन कौन−सा होता है? डेमँन कहते हैं भगवान को। आपके डेमँन का क्या नाम है? अपने गुरु को हम डेमँन कहते हैं। गुरु क्या होता है? अरे बेटे, वह भगवान है। भगवान हमको देता है। हरेक को वह नहीं दे सकता। आपका गुरु हमको दे देगा? नहीं बेटे, आपको नहीं देगा। गुरु जी आप हमको अपने गुरु जी का साक्षात्कार करा दें। हाँ बेटे, हम दर्शन तो आपको करा देंगे, लेकिन उससे क्या फायदा होगा? जैसे ही दर्शन करेंगे, वैसे ही वे पैसा दे देंगे। चल बेहूदा कहीं का, इसीलिए तू दर्शन करेगा। देख मैं कुछ नहीं देता। उदाहरण के लिए बैंक में जाइए और कहिए कि मैनेजर साहब! हाँ, हम आपका दर्शन करेंगे, तो आप दर्शन कीजिए न। हाँ साहब, दर्शन हो गए आपके। अब जाइए आप। नहीं साहब, हम जिस काम से आए थे, जिस मनोकामना को पूरी करने के लिए आए थे, उस मनोकामना का क्या हुआ? हमको पंद्रह हजार रुपये दे दीजिए। आपका बैंक में एकाउंट है? नहीं साहब! बैंक में तो कोई एकाउंट नहीं है, तो फिर किस बात के माँगते हैं। दर्शन की फिलॉसफी नहीं समझते और आ गए दर्शन करने। तो हो गया हमारा दर्शन, जाइए। नहीं साहब, अभी तो दर्शन करने को आए हैं। बेकार की बातें करता है। यही समझता है कि हम देखेंगे और देख करके निहाल हो जाएँगे। देखने से कुछ भी नहीं होगा।

आप स्वर्ग देखेंगे या नरक, चलिए हम लिखा लाते हैं। अच्छा चलिए पहले लक्ष्मी जी के दर्शन करते हैं। स्टेट बैंक में जब नोटों के बंडल आते हैं, तो खुलते हैं और रख जाते हैं देखिए, लक्ष्मी जी के दर्शन कीजिए, ढिकाने जी का दर्शन करेंगे, बस दर्शन ही दिमाग में सवार हो गया है। एक तो वो वहम सवार हो गया था कि मनुहार करेंगे और उपहार पाएँगे। अब एक और वहम आ गया कि दर्शन करेंगे और निहाल हो जाएँगे। बहुत करेंगे दर्शन? दर्शन की फिलॉसफी समझते नहीं और दर्शन के लिए कहते हैं। दर्शन करने का मतलब क्या है जानते हैं आप? गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया था, उनका नाम था नेहरू। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था पटेल। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था अमुक और अमुक। उनका दर्शन तो हमने भी किया था। अच्छा गाँधी जी का दर्शन किया था तो फिर क्या हुआ आपका? अरे साहब। चप्पल खो गई और हमारी जेब कट गई, जब गाँधी का दर्शन करने गए थे। दर्शन करने गए थे या भाड़ में?

अध्यात्म है साइंस ऑफ सोल

मित्रों! क्या करना पड़ेगा? आपको आध्यात्मिक जीवन में पात्रता का विकास करना होगा। तभी आवाज की प्रतिध्वनि की भाँति भगवान के अनुग्रह बरसते हैं और आदमी अपनी सामर्थ्य से अधिक काम करने में समर्थ हो जाता है। बड़े−से−बड़े काम करने के लिए, अपने लिए और पराये के लिए कुछ करने में वह समर्थ हो जाता है। मेंहदी हम पीसते हैं दूसरों के फायदे के लिए, पर हम स्वयं निहाल हो जाते हैं। ऐसा है अध्यात्म, जो मैं आपको सिखाने वाला था। इस अध्यात्म का बेस बेटे एक ही है। क्या बेस है कि आप अपने व्यक्तित्व को ठीक करें। अपने भीतर वह कशिश पैदा कीजिए। कौन−सी? जिससे जो चीज आप पाना चाहते हैं, पा सकें। इसे क्या कहते हैं? अध्यात्म इसी का नाम है। जो अध्यात्म आपने पढ़ा है, वह अध्यात्म नहीं है। अध्यात्म माँगने की विधा का नाम नहीं है। बाहर से पाने की विधा का नाम नहीं है। अध्यात्म किसे कहते हैं? अध्यात्म कहते हैं, साइंस ऑफ सोल को, सोल की साइंस को। सोल का हम डेवलपमेंट कैसे कर सकते हैं, सोल को परिष्कृत कैसे कर सकते हैं? सोल को हम शानदार कैसे बना सकते हैं, जिससे बाहर की चीजें खिंचती हुई चली जाएँ।

मित्रों! हमारा अपना मैग्नेट सुरक्षित करने की कला का नाम अध्यात्म है। अपना मैग्नेट जब खींचता है, तो ये बाहरी चीजें खिंचती हैं। प्लाँट जब खींचता हैं तो बादल बरसते हैं। बादलों का मैग्नेट नहीं है। पेड़ जब खत्म हो जाते हैं, तो पानी बरसना बंद हो जाता है। पेड़ों का मैग्नेट ही उन्हें खींचता है। खजाने जब पैदा होते हैं, तो इसके अंदर जो लोहा होता है, वो दूर−दूर तक खींचता रहता है और खजाने में अपने पास जमा कर लेता है। मैग्नेट खींचता रहता है। चोर चोरों को खींचते रहते हैं। आपको मालूम है कि एक जुआरी के पास ढेरों जुआरी जमा हो जाते हैं और वेश्याओं के यहाँ भँवरे जमा हो जाते हैं। कहाँ से भँवरे आ जाते हैं? क्यों साहब, आप कहाँ से आए? हम तो साहब बहुत दूर के रहने वाले हैं। आपका ये कौन लगता है? कोई नहीं लगता। क्यों साहब, फिर ये आपके कमरे में क्यों रहते हैं? कशिश ने इन्हें खींच लिया। जुआरी के पास जुआरी, चोरों के पास चोर, लफंगों के पास लफंगे, विद्वानों के पास विद्वान, ज्ञानियों के पास ज्ञानी खिंचे चले आते हैं। ऐसी आदतें या आदमी के भीतर का मैग्नेट जब उछाल मारता है, कशिश उठती है, तो वह समानधर्मी को अपने पास अनायास ही खींच लेता है।

मित्रों! जब आपका मैग्नेट भीतर से बढ़ेगा, तब आप खींचने में समर्थ हो जाएँगे। वे चीजें जिनका अनुभव मुझे व्यक्ति गत रूप से है, वही आपको बता रहा हूँ। हवा में गायब हो जाने का? बेटे, हवा में गायब हो जाने का अनुभव हमको नहीं है और क्या पेशाब से दिया जलाने का अनुभव आपको नहीं है? बेटा, वो भी नहीं है। हमको जब दिया जलाना पड़ा है, तो मोमबत्ती जलाते हैं और तेल जलाते हैं। पेशाब से जला दीजिए। बेटे, हमको नहीं आता कोई करामातें भी नहीं आतीं। करामातों से कोई अध्यात्मवादी नहीं हो जाता। अध्यात्म अपने आप से सबसे कड़ी करामात है। उससे आदमी महान् आत्मा हो जाता है, देवात्मा हो जाता है, ऋषि हो जाता है और नर से नारायण हो जाता है। ये अपने अपने आप में एक विधा है।

व्यक्तित्व का चुँबक

मित्रों! आध्यात्मिक शक्ति यों को आदमी की कशिश खींचती है। किसको खींचती है? जो सिद्धियाँ आप चाहते हैं, उनको कशिश खींचती है। गुलाब का फूल जब खिलता है, तो भँवरों को खींचता है, तितलियों को खींचता है और शहद की मक्खियों को खींचता है। आदमी जब खिलता है, जब देवताओं को खींचता है, भगवान को खींचता है, पड़ोसियों को खींचता है, समाज को खींचता है और अपने अंतरंग में दबी हुई क्षमताओं को खींचता है। सारी−की−सारी चीजें खिंचती हुई आ जाती हैं और आदमी संपन्न हो जाता है, समर्थ हो जाता है। ये किसके ऊपर टिका हुआ है अपना व्यक्तित्व, अपने आपको सुधार लेने के ऊपर। यही है अध्यात्म के सिद्धाँत, जो मैं आपको सिखाने वाला था, पढ़ाने वाला था।

मित्रो! मैं क्या कहने वाला था? ऋषियों की उसी वाणी को दुबारा दोहराने वाला था, जिसमें यह कहा गया था कि आत्मा वा रे ज्ञातव्य ध्यातव्य निदिध्यासतव्यं। अरे मूर्खों, अपने आपको देखो, अपने आपको समझो और अपने आपको ठीक करो। यह क्या है? यह ऋषियों की वाणी है और यह वो अध्यात्म है, जिसमें भगवान ने कहा है कि यदि इंसानों से आप ऊँचा उठना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं, खुशी होना चाहते हैं, समृद्ध होना चाहते हैं, संपन्न होना चाहते हैं, तो उसके लिए क्या तरीका हो सकता है? फार्मूला क्या हो सकता है? भगवान ने कहा, उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। अर्थात् अपने आपको उठाइए, अपने आपको गिराइए मत।

मित्रों! गिराता कौन है? इंसान। उठाता कौन है? भगवान। इंसान के भीतर उठाने वाला जो माद्दा है, उसको कहते हैं भगवान। भगवान किसे कहते हैं? आदमी के भीतर एक ऐसी प्रेरणा है, जो आदमी को उठा देती है, वही भगवान है। जो व्यापक भगवान है, उसको तो बेटा कौन कहेगा। वह तो बहुत फैला हुआ है, उसकी तो बात ही मत कीजिए। ब्रह्म तो इतना विस्तृत है, इतना विस्तृत है कि हमारी अक्ल भी काम नहीं करती। हमारे भीतर वह भगवान है, जो हमें उठाता है और भगवान नहीं है। जो गिराता है, उसको बेटे, शैतान कहते हैं। शैतान को रोकिए, भगवान का समर्थन कीजिए और आप स्वयं ऊँचे उठिए।

मित्रों! ये किसने कहा है? गीताकार ने कहा है, उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। अपने आपको उठाओ, अपने आपको गिराओ मत। अपने आपको कौन गिराता है? अरे कोई नहीं गिराता, आप स्वयं अपने को गिराते हो। नहीं साहब, हमको पड़ोसी तंग करता है और बीबी तंग करती है और मुहल्ले वाले तंग करते हैं, बुखार तंग करता है। कोई नहीं तंग करता। आप अपने आपको स्वयं तंग करते हैं। आपका अपने आपको तंग करने का माद्दा ही है, जो आपके सामने आ जाता है। आप अपने आपको ठीक करिए। आप एक मित्र से मित्रता बना लीजिए और एक दुश्मन से आप पीछा छुड़ा लीजिए। अध्यात्म में कौन−सा मित्र है कौन−सा दुश्मन है? आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः अर्थात् आप ही अपने बैरी हैं और आपने ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ा मारा है और आप ही हैरान होते हैं। आप ही उद्धरेत् अर्थात् अपने आपको सही कीजिए, अपने आपको ठीक कीजिए।

अपने आपको बदलें

मित्रों! आप अपने आपको बदल लीजिए, फिर देखिए किस तरह से दुनिया बदल जाती है। सारा−का−सारा वातावरण बदल जाता है। आप अपनी आँखों का चश्मा बदलिए, हरा चश्मा छोड़िए और लाल चश्मा पहनिए, फिर देखिए, सारी दुनिया लाल हो जाएगी। आपके पास जो निगेटिव चिंतन है, अंतर्मुखी जीवन है। स्वार्थ से घिरा हुआ चिंतन आपके ऊपर हावी है, इसको आप ठीक करना शुरू कर लें, फिर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ, विश्वास दिलाता हूँ कि आपको तीनों तरह की सहायता मिलेगी। देने के लिए तीनों खड़े हुए हैं, पहला− आपका अंतःकरण, सिद्धियाँ देने के लिए खड़ा है। हमारे भीतर दिव्य शक्तियाँ हैं, दिव्य क्षमताएँ भरी पड़ी हैं और हम आपको उठा सकते हैं। आपके भीतर का वर्चस्व, आपके भीतर का वैभव उठे, तो वह आपको निहाल कर देगा। दूसरा− समाज के लिए आपकी आरती उतारने के लिए खड़े हैं। आप जरा प्रकाशवान तो होइए, फिर देखिए हम आपकी कितने तरीके से सहायता करते हैं। सामाजिक जीवन में लोग कितना सहयोग करते हैं और तीसरे− भगवान का, जीवन देवता का अनुदान−वरदान किस तरीके से आपके ऊपर बरसते हैं। आपके लिए देवता फूलों का विमान लिए बैठे हैं। आप अपने को बदलिए तो सही, ऊँचा तो उठाइए। दैवी अनुदान सतत आप पर बरसते ही रहेंगे। आज की बात समाप्त।


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