पूजा−पाठ, योग−ध्यान अथवा व्यक्ति गत मोक्ष−मुक्ति के लिए साधना करते रहना ही ‘अध्यात्म’ नहीं हैं। सच्चा अध्यात्म है− अपने सारे गुणों, सारी उपलब्धियों और सारी संपदा को समाज−हित पर निछावर कर देना।